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हिंदी-साहित्य का इतिहास

(काव्यमय गद्य का नमूना)

"सरद पूनी के समुदित पूरनचंद की छिटकी जुन्हाई सकल-मन-भाई के भी मुँह मसि मल, पूजनीय अलौकिक पदनचंद्रिका की चमक के आगे तेजहीन मलीन और कलंकित कर दरसाती, लजाती, सरस-सुधा-धौली अलौकिक सुप्रभा फैलाती, अशेष मोह जढ़ता-प्रगाढ-तम-तोम सटकाती, सुकांता, निज भक्तजन-मनवांछित वराभव मुक्ति मुक्ति सुचारु चारों मुक्त हाथों से मुक्ति लुटाती। x x x मुक्ताहारीनीर-क्षीर-विचार-चतुरकवि-कोविंद-राज-राजहिय-सिंहासन निवासिनी मंदहासिनी, त्रिलोक-प्रकाशिनी सरस्वती माता के अति दुलारे, प्राणों से प्यारे पुत्रों की अनुपम अनोखी अतुल बलवाली परमप्रभावशाली सुजन-मन-मोहिनी नवरस-भरी सर सरससुखद विचित्र वचन-रचना का नाम ही साहित्य है।"

भारतेंदु के सहयोगी लेखक प्रायः 'उचित', 'उत्पन्न उच्चरित' 'नव' आदि से ही संतोष करते थे पर मिश्रजी ऐसे लेखकों ने बिना किसी जरूरत के उपसर्गों का पुछल्ला जोड़ जनता के इन जाने बूझे शब्दों को भी––'समुचित', 'समुत्पन्न', 'समुच्चरित', 'अभिनव' करके––अजनबी बना दिया। 'मृदुता', 'कुटिलता', 'सुकरता', 'समीपता', 'ऋजुता' आदि के स्थान पर 'मार्दव', 'कौटिल्य', सौकर्य', 'सामीप्य', 'आर्जव' आदि ऐसे ही लोगों की प्रवृत्ति से लाए जाने लगे।

बाबू श्यामसुंदर दास जी नागरी-प्रचारिणी सभा के स्थापनकाल से लेकर बराबर हिंदी भाषा, कवियों की खोज तथा इतिहास आदि के संबंध में लेख लिखते आए है। आप जैसे हिंदी के अच्छे लेखक है वैसे ही बहुत अच्छे वक्ता भी। आपकी भाषा इस विशेषता के लिये बहु दिनों से प्रसिद्ध है कि उससे अरबी-फारसी के विदेशी शब्द नहीं आते। आधुनिक सभ्यता के विधानों के बीच को लिखा पढ़ी के ढंग पर हिंदी को ले चलने में आपकी लेखनी ने बहुत कुछ योग दिया है?

बाबू साहब ने बड़ा भारी काम लेखकों के लिये सामग्री प्रस्तुत करने का किया है। हिंदी पुस्तकों की खोज के विधान द्वारा अपने साहित्य का इतिहास, कवियों के चरित्र और उनपर प्रबंध आदि लिखने की बहुत सा मसाला इकट्ठा करके रख दिया। इसी प्रकार आधुनिक हिंदी के नए-पुराने लेखको के संक्षिप्त