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सामान्य परिचय

भारतेंदु के साथ हिंदी की उन्नति में योग देनेवालों में नीचे लिखे महानुभाव भी विशेष उल्लेख योग्य हैं––

पं॰ केशवराम भट्ट महाराष्ट्र ब्राहाण थे जिनके पूर्वज बिहार में बस गए थे। उनका जन्म सं॰ १९११ और मृत्यु सं॰ १९६१ में हुई। उनका संबंध शिक्षा-विभाग से था। कुछ स्कूली पुस्तकों के अतिरिक्त उन्होंने 'सज्जाद-सुंबुल' और 'शमशाद-सौसन' नामक दो नाटक भी लिखे जिनकी भाषा उर्दू ही समझिए। इन दोनों नाटकों की विशेषता यह है कि ये वर्तमान जीवन को लेकर लिखे गए हैं। इनमे हिंदू, मुसलमान, अँगरेज, लुटेरे, लफंगे मुकदमेबाज, मारपीट करनेवाले, रुपया हजम करनेवाले इत्यादि अनेक ढंग के पात्र आए हैं। सं॰ १९२९ में उन्होंने 'विहारबंधु' निकाला था और १९३१ में 'विहारबंधु प्रेस' खोला था।

पं॰ राधाचरण गोस्वामी का जन्म वृंदावन में सं॰ १९१५ में हुआ और मृत्यु सं॰ १९८२ (दिसंबर सन् १९२५) में हुई। ये संस्कृत के बहुत अच्छे विद्वान् थे। 'हरिश्चंद्र मैगजीन' को देखते देखते इनमें देशभक्ति और समाज सुधार के भाव जगे थे। साहित्य-सेवा के विचार से इन्होंने 'भारतेंदु' नाम का एक पत्र कुछ दिनों तक वृंदावन से निकाला था। अनेक सभा-समाजों में संमिलित होने और समाज-सुधार का उत्साह रखने के कारण ये कुछ ब्रह्मसमाज की ओर आकर्षित हुए थे, और उसके पक्ष में 'हिंदू बाधव' में कई लेख भी लिखे थे। भाषा इनकी गठी हुई होती थी।

इन्होंने कई बहुत ही अच्छे मौलिक नाटक लिखे हैं जैसे, सुदामा नाटक, सती चंद्रावली, अमरसिंह राठौर, तन-मन-धन श्री गोसाईंजी के अर्पण। इनमें से 'सती चंद्रावली' और 'अमरसिंह राठौर' बड़े नाटक हैं। 'सतीचंद्रावली' की कथावस्तु औरंगजेब के समय हिंदुओं पर होनेवाले, अत्याचारों का चित्र खींचने के लिये बड़ी निपुणता के साथ कल्पित की गई है। अमरसिंह राठौर ऐतिहासिक है। नाटकों के अतिरिक्त इन्होंने 'विरजा', 'जावित्री' और 'मृण्मयी' नामक उपन्यासो के अनुवाद भी बंगभाषा से किए हैं।

पंडित अंबिकादत्त व्यास का जन्म सं॰ १९१५ और मृत्यु सं॰ १९५७