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सामान्य परिचय

मारे हरेपन के श्यामता की झलक दे अलक की शोभा लाई है, बीचोबीच माँग सी काढ मन माँग लिया और पत्थर की चट्टानो पर सुंबुल अर्थात् हंसराज की जटाओं को फैलना बिथरी हुई लटों के लावण्य को लाना है।"

कादंबिनी में समाचार तक कभी कभी बड़ी रंगीन भाषा में लिखे जाते थे। संवत् १९४२ की संख्या का "स्थानिक संवाद" देखिए––

"दिव्यदेवी श्री महाराणी बडहर लाख झंझट झेल और चिरकाल पर्यंत बड़े-बड़े उद्योग और मेल से दु:ख के दिन सकेल, अचल 'कोर्ट' पहाड़ ढकेल, फिर गद्दी पर बैठ गई। ईश्वर का भी क्या खेल है कि कभी तो मनुष्य पर दुःख की रेल पेल और कभी उसी पर सुख की कुलेल है"।

पीछे जो उनका साप्ताहिक पत्र "नागरी नीरद" निकला उसके शीर्षक भी वर्षा के खासे रूपक, हुए; जैसे, "संपादकीय-संमति-समीर", "प्रेरित-कलापिकलरव", "हास्य-हरितांकुर", "वृत्तांत बलाकावलि", "काव्यामृत, वर्षा", "विज्ञापन-बीर-बहूटियाँ", "नियम-निर्घोष"।

समालोचना का सूत्रपात हिंदी में एक प्रकार से भट्टजी और चौधरी साहब ने ही किया। समालोच्य, पुस्तक के विषयों का अच्छी तरह विवेचन करके उसके गुण-दोष के विस्तृत निरूपण की चाल उन्हीं ने चलाई। बाबू गदाधरसिंह ने "बंगविजेता" का जो अनुवाद किया था उसकी आलोचना कादंबिनी में पाँच पृष्ठों में हुई थी। लाला श्रीनिवासदास के "संयोगिता स्वंयवर" की बड़ी विस्तृत और कठोर समालोचना चौधरीजी ने कादंबिनी के २१ पृष्ठों में निकाली थी। उसका कुछ अंश नमूने के लिये नीचे दिया जाता है।

"यद्यपि इस पुस्तक की समालोचना करने के पूर्व इसके समालोचकों की समालोचनाओं की समालोचना करने की आवश्यकता जान पड़ती है, क्योंकि जब हम इस नाटक की समालोचना अपने बहुतेरे सहयोगी और मित्रों को करते देखते हैं, तो अपनी ओर से जहाँ तक खुशामद और चापलूसी का कोई दरजा पाते हैं, शेष छोड़ते नहीं दिखाते।

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नाट्य-रचना के बहुतेरे दोष 'हिंदी-प्रदीप' ने अपनी 'सच्ची-समालोचना' में दिखलाए हैं। अतएव उसमें हमें विस्तार नहीं देते, हम केवल यहाँ अलग अलग उन दोषों को दिखलाना चाहते हैं जो प्रधान और विशेष हैं। तो जानना चाहिए कि यदि यह