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हिंदी-साहित्य का इतिहास

बँगला के शब्द और मुहावरे तक ज्यों के त्यों रख दिए जाते थे––जैसे, "काँदना" "सिहरना", "धू धू करके आग जलना", "छल-छल आँसू गिरना" इत्यादि। इन अनुवादों से बड़ा भारी काम यह हुआ कि नए ढंग के सामाजिक और ऐतिहासिक उपन्यासों के ढंग का अच्छा परिचय हो गया और उपन्यास लिखने की प्रवृत्ति और योग्यता उत्पन्न हो गई।

हिंदी-गद्य की सर्वतोमुखी गति का अनुमान इसी से हो सकता है कि पच्चीस पत्र-पत्रिकाएँ हरिश्चंद्र के ही जीवन-काल में निकलीं जिनके नाम नीचे दिए जाते हैं––

१ अलमोड़ा अखबार (संवत् १९२८; संपादक पं॰ सदानंद सनवाल)
२ हिंदी-दीप्ति-प्रकाश (कलकत्ता १९२९; सं॰ कार्तिकप्रसाद खत्री)
३ बिहार-बंधु (१९२९; केशवराम भट्ट)
४ सदादर्श (दिल्ली १९३१; ला॰ श्रीनिवास दास)
५ काशी पत्रिका (१९३३; बा॰ बालेश्वरप्रसाद बी॰ ए॰, शिक्षा-संबंधी मासिक)
६ भारत-बंधु (१९३३; तोताराम; अलीगढ़)
७ भारत-मित्र (कलकत्ता सं॰ १९३४; रुद्रदत्त)
८ मित्र-विलास (लाहौर १९३४, कन्हैयालाल)
९ हिंदी प्रदीप (प्रयाग १९३४; पं॰ बालकृष्ण भट्ट, मासिक)
१० आर्य-दर्पण (शाहजहाँपुर १९३४: बख्तावर सिंह)
११ सार-सुधानिधि (कलकत्ता १९३५; सदानंद मिश्र)
१२ उचितवक्ता (कलकत्ता १९३५; दुर्गाप्रसाद मिश्र)
१३ सज्जन-कीर्ति-सुधाकर (उदयपुर १९३६; वंशीधर)
१४ भारत सुदशाप्रवर्तक (फर्रुखाबाद १९३६; गणेशप्रसाद)
१५ आनंद-कादंबिनी (मिरजापुर १९३८; उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी; मासिक)
१६ देश-हितैषी (अजमेर १९३९)
१७ दिनकर-प्रकाश (लखनऊ १९४०; रामदास वर्मा)
१८ धर्म-दिवाकर (कलकत्ता १९४०; देवीसहाय)