पृष्ठ:हिंदी साहित्य का इतिहास-रामचंद्र शुक्ल.pdf/४५३

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
४२८
हिंदी-साहित्य का इतिहास

'खड़ी बोली' का 'मध्यदेशीय भाषा' के नाम से उल्लेख किया गया है। भाषा का स्वरूप दिखाने के लिये कुछ और उद्धरण दिए जाते हैं––

(१) एक यशी वकील वकालत का काम करते करते बुड्ढा होकर अपने दामाद को वह काम सौंप के आप सुचित हुआ। दामाद कई दिन काम करके एक दिन आया ओ प्रसन्न होकर बोला––हे महाराज! आपने जो फलाने का पुराना ओ संगीन मोकद्दमा हमें सौंपा था सो आज फैसला हुआ। यह सुनकर वकील पछता करके बोला तुमने सत्यानाश किया। उस मोकद्दमे से हमारे बाप बढ़े थे तिस पीछे हमारे बाप मरती समय हमें हाथ उठा के दे गए ओ हमने भी उसको बना रखा ओ अब तक भली भाँति अपना दिन काटा ओ वही मोकद्दमा तुमको सौंपकर समझा था कि तुम भी अपने बेटे पोते परोतों तक पलोगे पर तुम थोड़े से दिनों में उसे खो बैठे।

(२) १९ नवंबर को अवधबिहारी बादशाह के आवने की तोपें छूटीं। उस दिन तीसरे पहर को ष्टलिंग साहिब ओ हेल साहिब ओ मेजर फिंडल लार्ड साहिब की ओर से अवधबिहारी की छावनी में जा करके बड़े साहिब का सलाम कहा और भोर होके लार्ड साहिब के साथ हाजिरी करने का नेवता किया। फिर अवधबिहारी बादशाह के जाने के लिये कानपुर के तले गंगा में नावों की पुलवदी हुई और बादशाह बढ़े ठाट से गंगा पार हो गवरनर जेनरेल बहादुर के सन्निध गए।

रीति काल के समाप्त होते होते अँगरेजी राज्य देश में पूर्ण रूप से स्थापित हो गया। इस राजनीतिक घटना के साथ देशवासियों की शिक्षाविधि में भी परिवर्तन हो चला। अँगरेज सरकार ने अँगरेजी की शिक्षा के प्रचार की व्यवस्था की। संवत् १८५४ में ही ईस्ट इंडिया कपनी के डाइरेक्टरो के पास अँगरेजी की शिक्षा द्वारा भारतवासियों को शिक्षित बनाने का परामर्श भेजा गया था। पर उस समय उस पर कुछ न हुआ। पीछे राजा राममोहन राय प्रभृति कुछ शिक्षित और प्रभावशाली सज्जनों के उद्योग से अँगरेजी की पढ़ाई के लिये कलकत्ते में हिंदू कालेज की स्थापना हुई जिसमे से लोग अँगरेजी पढ़ पढ़ कर निकलने और सरकारी नौकरियाँ पाने लगे। देशी भाषा पढ़कर भी कोई शिक्षित हो सकता है, यह विचार उस समय तक लगों को न था। अँगरेजी के सिवाय यदि किसी भाषा पर ध्यान जाता था तो संस्कृत या अरबी