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रीतिकाल के अन्य कवि

बीर न चितैया, रनमंडल रितैया, काल
कहर बितैया हौं जितैया मघवान को॥


(४०) नवलदास कायस्थ––ये झाँसी के रहने वाले थे और समथर-नरेश राजा हिंदूपति की सेवा में रहते थे। इन्होंने बहुत से ग्रंथों की रचना की है जो भिन्न भिन्न विषयों पर और भिन्न भिन्न शैली के है। ये अच्छे चित्रकार भी थे। इनका झुकाव भक्ति और ज्ञान की ओर विशेष था। इनके लिखे ग्रंथों के नाम ये हैं––

रासपंचाध्यायी, रामचंद्रविलास, शकमोचन (सं॰ १८७३), जौहरिनतरंग (१८७५), रसिकरंजनी (१८७७), विज्ञान भास्कर (१८७८), ब्रजदीपिका (१८८३), शुकरंभासंवाद (१८८८), नाम-चिंतामणि (१९०३), मूलभारत (१९१२), भारत-सावित्री (१९१२), भारत कवितावली (१९१३), भाषा सप्तशती (१९१७), कविजीवन (१९१८),आल्हा रामायण (१९२२), रुक्मिणीमंगल (१९२५), मुलढोला (१९२५), रहस लावनी (१९२६), अव्यात्म रामायण, रूपक रामायण, नारीप्रकरण, सीतास्वयंवर, रामविवाहखड, भारत वार्तिक, रामायण सुमिरनी, पूर्वशृंगारखंड, मिथिलाखंड, दानलोभसंवाद, जन्म खंड।

उक्त पुस्तकों में यद्यपि अधिकांश बहुत छोटी छोटी हैं फिर भी इनकी रचना की बहुरूपता का आभास देती हैं। इनकी पुस्तकें प्रकाशित नहीं हुई हैं। अतः इनकी रचना के संबंध में विस्तृत और निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। खोज की रिपोर्टों में उद्धृत उदाहरणों के देखने से रचना इनकी पुष्ट और अभ्यस्त प्रतीत होती है। ब्रजभाषा में कुछ वार्तिक या गद्य भी इन्होंने लिखा है। इनके कुछ पद्य नीचे देखिए––


अभव अनादि अनंत अपरा। अमन, अप्रान, अमर, अविकार॥
अग अनीह आतम अबिनासी। अगम अगोचर अबिरल वासी॥
अकथनीय अद्वैत अरामा। अमल असेष अकर्म अकामा॥
रइत अलिप्त ताहि उर ध्याऊँ। अनुपम अमल सुजस मैं गाऊँ॥