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हिंदी-साहित्य का इतिहास

तिमि प्रचंड सायक जनु ब्याला। हने कीस-तन लव तेहि काला॥
भए विकल अति पवन कुमारा। लगे करन तब हृदय बिचारा॥

(३३) मनियार सिंह––ये काशी के रहनेवाले क्षत्रिय थे इन्होंने देव पक्ष में ही कविता की है और अच्छी की है। इनके निम्नलिखित ग्रंथो का पता है––

महिम्न भाषा, सौंदर्य लहरी (पार्वती या देवी की स्तुति), हनुमत छबीसी, सुंदरकांड। भाषा महिम्न इन्होंने संवत् १८४१ में लिखा। इनकी भाषा सानुप्रास, शिष्ट और परिमार्जित हैं और उसमें ओज भी पूरा है। ये अच्छे कवि हो गए हैं। रचना के कुछ उदाहरण लीजिए––

मेरो चित्त कहाँ दीनता में अति दूबरो है,
अधरम-घूमरो न सुधि के सँभारे पै।
कहाँ तेरी ऋद्धि कवि बुद्ध-धारा-ध्वनि तें,
त्रिगुण तें, परे ह्वै दिखात निरधारे पै॥
मनियार यातें मति थकित जकित ह्वै के,
भक्तिबस धरि उर धीरज बिचारे पै।
बिरची कृपाल वाक्यमाल या पुहुपदंत,
पूजन करन काज चरन तिहारे पै॥


तेरे पद-पंकज-पराग राज-राजेश्वरी।
वेद-बंदनीय बिरुदावलि बढी रहै।
जाकी किनुकाई पाय धाता ने धरित्री रची,
जापै लोक लोकन की रचना कढ़ी रहै॥
मनियार जाहि विष्णु सेवैं सर्व पोषत में,
सेस हू के सदा सीस सहस मढ़ी रहै।
सोई सुरासुर के सिरोमनि सदाशिव के,
भसम के रूप ह्वै सरीर पै चढ़ी रहै॥