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रीतिकाल के अन्य कवि

समसेर सटकंत, सर सेल फटकंत,
कहूँ जात हटकत, लटकत लगि झूक॥


दब्बत लुत्थिनु अब्बत इक्क सुखब्बत से।
चब्बत लोह, अचब्बत सोनित गब्बत से॥
चुट्टित खुट्टिन केस सुलुट्टिन इक्क, मही।
जुट्टित फुट्टित सीस, सुखुट्टित तंग गही॥
कुट्टित घुट्टीत काय बिछुट्टित प्रान सही।
छुट्टित आयुध, हुट्टित गुट्टित देह दही॥


धड़धद्धर, धड़धद्धर, भड़भब्भरं भड़भब्भरं।
तड्तत्तर तड्तत्तर कड़कक्ऱ कड़कक्करं॥
घड्घग्घर घड्घग्घर झड्झज्झर झड़झज्झरं।
अररर्ररं अररर्ररं, सररर्ररं सररर्ररं॥


सोनित अरघ ढारि, लुत्थ जुत्थ पाँवड़े दै,
दारूधूम धूपदीप, रजक की ज्वालिका।
चरबी को चंदन, पुहुप पल टूकन के,
अच्छत अखंड गोला गोलिन की चालिका॥
नैवेद्य नीको साहि सहित दिली को दल,
कामना विचारी मनसूर-पन-पालिका।
कोटरा के विकट बिकट जंग जारि सूजा,
भलो विधि पूजा कै प्रसन्न कीन्हीं कालिका॥


इसी गल्ल धरि कन्न में बकसी मुसक्याना।
हमनूँ बूझत हौं तुसी 'क्यों किया पयाना'॥
'असी आवन भेदनूं तुने नहिं जाना।
साह अहम्मद ने तुझे अपना करि माना'॥