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रीतिकाल के अन्य कवि

पावन पतित गुन गावैं मुनि ताके छवि,
छलै सबिता के जनता के गुरुता के हैं॥
नवौ निधि ताके सिद्धता के आदि आलै हठी,
तीनौ लोकता के प्रभुता के प्रभु ताके हैं।
कटै पाप ताकै बढैं पुन्य के पताके जिन,
ऐसे पद ताके वृषभानु की सुता के हैं॥


गिरि कीजै गोधन मयूर नव कुंजन को,
पसु कीजै महाराज नंद के नगर को।
नर कौन? तीन जौन राधे राधे नाम रटै,
तट कीजै वर कूल कालिंदी-कगर को॥
इतने पै जोई कछु कीजिए कुँवर कान्ह,
रखिए न आन फेर हठी के झगर को।
गोपी पद-पंकज-पराग कीजै महाराज,
तृन कीजै रावरेई गोकुल नगर को॥


(२२) गुमान मिश्र––ये महोबे के रहनेवाले गोपालमणि के पुत्र थे। इनके तीन भाई और थे। दीपसाहि, सुमान और अमान। गुमान ने पिहानी के राजा अकबरअली-खाँ के आश्रय में संवत् १८०० में श्रीहर्षकृत नैषध काव्य का पद्यानुवाद नाना छंदों में किया। यही ग्रंथ इनका प्रसिद्ध है और प्रकाशित भी हो चुकी है। इसके अतिरिक्त खोज से इनके दो ग्रंथ और मिले हैं––कृष्णचंद्रिका और छंदाटवी (पिंगल)। कृष्णचंद्रिका का निर्माण-काल संवत् १८३८ है। अतः इनका कविताकाल संवत् १८०० से संवत् १८४० तक माना जा सकता है। इन तीन ग्रंथों के अतिरिक्त रस, नायिकाभेद, अलंकार आदि कई और ग्रंथ सुने जाते हैं।

यहाँ केवल इनके नैषध के संबंध में ही कुछ कहा जा सकता हैं। इस ग्रंथ में इन्होंने बहुत से छंदों का प्रयोग किया है और बहुत जल्दी जल्दी छंद बदले है। इंद्रवज्रा, वंशस्थ, मंदाक्राता, शार्दूलविक्रीड़ित आदि कठिन वर्णवृत्तों से