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भक्तिकाल की फुटकल रचनाएँ

साहब सूम, अड़ाक तुरंग, किसान कठोर, दिवान नकारो।
ब्रह्म भनै सुनु साह अकबर बारहौ बाँधि समुद्र में ढारो॥

(९) गंग––ये अकबर के दरबारी कवि थे और रहीम खानखानँ इन्हें बहुत मानते थे। इनके जन्म-काल तथा कुल आदि का ठीक वृत्त ज्ञात नहीं। कुछ लोग इन्हे-ब्राह्मण कहते है पर अधिकतर ये ब्रह्मभट्ट ही प्रसिद्ध है। ऐसा कहा जाता है कि किसी नवाब या राजा की आज्ञा से ये हाथी से चिरवा डाले गए थे और उसी समय मरने के पहले इन्होंने यह दोहा कहा था––

कबहूँ न भँडुवा रन चढ़े, कबहुँ ने बाजी बंब।
सकल सभाहि प्रनाम करि, विदा होत कवि गंग॥

इसके अतिरिक्त कई और कवियों ने भी इस बात का उल्लेख व संकेत किया है। देव कवि ने कहा है––

"एक भए प्रेत, एक मींजि मारे हाथी"।

ये पद्य भी इस संबंध में ध्यान देने योग्य है––

सब देवन को दरबार जुरयो, तहँ पिंगल छंद बनाय कै गायो।
जब काहू तें अर्थ कह्यो न गयो, तब नारद एक प्रसंग चलायो॥
मृतलोक में है नर एक गुनी, कवि गंग को नाम सभा में बतायो।
सुनि चाह भई परमेसर को, तब गंग को लेन गनेस पठायो॥


'गंग ऐसे गुनी को गयद सो चिराइए'।

इन प्रमाणों से यह घटना ठीक ठहरती हैं। गंग कवि बहुत निर्भीक होकर बात कहते थे। ये अपने समय के नर-काव्य करने वाले कवियों में सबसे श्रेष्ठ माने जाते थे। दासजी ने कहा है––

तुलसी गंग दुवौ भए सुकविन के सरदार।

कहते हैं कि रहीम खानखानँ ने इन्हें एक छप्पय पर छत्तीस लाख रुपए में डाले थे। वह छप्पय यह है––

चकित भँवरि रहि गयो, गम नहिं करत कमलवन।
अहि फन मनि नहिं लेत, तेज नहिं बहत पवन वन॥