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जान गिल क्राइस्ट द्वारा इस स्वतंत्र अस्तित्व की स्वीकृति, ४१४; गद्य की एक साथ परंपरा चलाने वाले चार प्रमुख लेखक,-(१) मुंशी सदासुख लाल और उनकी भाषा, ४१४-१६; (२) ईशा अल्ला खां और उनकी भाषा, ४१६-१६; (३) लल्लूलाल और उनकी भाषा, ४१६-२१; सदासुख लाल की भाषा में इनकी भाषा की भिन्नता, ४२०; (४) सदल मिश्र और उनकी भाषा, ४२१• २२; लल्लूलाल की भाषा से इनकी भाषा की भिन्नता, ४२२; इन चारो लेखकों की भाषा का सापेक्षिक महत्व, ४२१; हिंदी में गद्य-साहित्य-परंपरा का प्रारंभ, ४२२; इस गद्य के प्रसार में ईसाइयों को योग, ४२३:-ईसाई धर्म प्रचारकों के भाषा का रूप, ४२३:२४; मिशन सोसाइटियों द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की हिंदी, ४२४-२६; ब्रह्म-समाज की स्थापना, ४२६: राजा राममोहन राय के वेदांत-भाष्य अनुवाद की हिंदी, ४२७; उदंत मार्तंड' पत्र की भाषा, ४२७-२८; अँगरेजी शिक्षा-प्रसार, ४२८-२९; सं० १८६० के पूर्व की अदालती भाषा, ४२६-३०, अदालतों में हिंदी-प्रवेश और उसका निष्कासन, ४३०;, उर्दू-प्रसार के कारण, ४६०; काशी और आगरे के समाचार-पत्रों की भाषा, ४३१-३२; शिक्षा-क्रम में हिदी-प्रवेश का विरोध, ४३३; हिंन्दी-उर्दू के सम्बंध में गार्सा द तासी का मत,

प्रकरण २

हिंदी के प्रति मुसलमान अधिकारियों के भाव, ४३६; शिक्षोपयोगी हिंदी पुस्तकें, ४३७; राजा शिवप्रसाद की भाषा, ४३७-३६; राजा लक्ष्मण सिंह के अनुवाद की भाषा, ४४०: फ्रेडरिक पिंकाट का हिंदी प्रेम, ४४१; राजा शिवप्रसाद के गुटका की हिंदी, ४४२; लोकमित्र' और 'अवध-अखबार की भाषा, ४४२-४३; बाबू नवीनचद्र राय की हिंदी-सेवा, ४४३; गासो द तासी उर्दू-पक्षपात, ४४४; हिंदी गद्य-प्रसार में आर्य-समाज का योग, ४४५; ५० श्रद्धाराम की हिंदी-सेवा, ४४५-४७; हिंदी-गद्य-भाषा का स्वरूप:निर्माण, ४४७-४८},