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रामभक्ति-शाखा

कार्तिक मास पच्छ उजियारा। तीरथ पुन्य सोम कर वारा॥
ता दिन कथा कीन्ह अनुमाना। शाह सलेम दिलीपति थाना॥
संवत सोरह सै सत साठा। पुन्य प्रगास पाय भय नाठा॥
जो सारद माता करु दाया। बरनौं आदि पुरुष को माया॥
जेहि माया कह मुनि जगभूला। ब्रह्मा रहे कमल के फूला॥
निकसि न सक माया कर बाँधा। देषहु कमलनाल के राँधा॥
आदि पुरुष बरनौ केहि भाँती। चाँद सुरज तहँ दिवस न राती॥
निरगुन रूप करै सिव ध्याना। चार वेद गुन जोरि बखाना॥
तीनों गुन जानै संसारा। सिरजै पालै भजनहारा॥
श्रवन बिना सो अस बहुगुना। मन में होइ सु पहले सुना॥
देषै सब पै आहि न आँषी। अंधकार चोरी के सापी॥
तेहि कर दहुँ को करै बषाना। जिहि कर मर्म वेद नहिं जाना॥
माया सीव भो कोउ न पारा।। शंकर पँवरि बीच रोइ हारा॥

(५) हृदयराम––ये पंजाब के रहने वाले और कृष्णदास के पुत्र थे। इन्होंने संवत् १६८० में संस्कृत के हनुमन्नाटक के आधार पर भाषा हनुमन्नाटक लिखा जिसकी कविता बड़ी सुंदर और परिमार्जित है। इसमें अधिकतर कवित्त और सवैयों में बड़े अच्छे संवाद हैं। पहले कहा जा चुका है कि गोस्वामी तुलसीदासजी ने अपने समय की सारी प्रचलित काव्य-पद्धतियों पर रामचरित का गान किया। केवल रूपक या नाटक के ढंग पर उन्होने कोई रचना नहीं की। गोस्वामीजी के समय में ही उनकी ख्याति के साथ साथ रामभक्ति की तरंगे भी देश के भिन्न भिन्न भागों में उठ चली थी। अतः उस काल के भीतर ही नाटक के रूप में कई रचनाएँ हुई जिनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध हृदयराम का हनुमान्नाटक है।

नीचे कुछ उदाहरण दिए जाते हैं––

देखन जौ पाऊँ तौ पठाऊँ जमलोक हाथ
दूजो न लगाऊँ वार करौं एक कर को।
मीजि मारों उरे ते उखारि भुँजदंड, हाड
तोंरि डारौं बर अवलोकि रघुबर को॥