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(संवत् १९००-१९८० )

गद्य खंड

'प्रकरण १

गद्य का विकास

आधुनिक काल के पूर्व गद्य की अवस्था

( ब्रजभाषा-गद्य)

गोरखपंथी ग्रथों की भाषा का स्वरूप ४०३-०४; कृष्ण-भक्ति शाखा के गद्यग्रंथों की भाषा का स्वरूप, ४०४-०५; नाभादास के गद्य का नमूना, ४०५; उन्नीसवीं शताब्दी मे और उसके पूर्व लिखे गए अन्य गद्य ग्रंथ, ४०५-०६; इन ग्रंथों की भाषा पर विचार, ४:६; काव्यों की टीकाओं के गद्य का स्वरूप, ४०६-०७ ।।

शिष्ट समुदाय में खड़ी बोली के व्यवहार का आरंभ, ४०७; फारसी-मिश्रित खड़ी बोली या रेखता में शायरी, ४०८; उर्दू-साहित्य का आरंभ, ४०८; खड़ीबोली के स्वाभाविक देशी रूप का प्रसार, ४०८; खड़ी बोली के अस्तित्व और उसकी उत्पत्ति के सबंध में भ्रम, ४०८; इस भ्रम का कारण, ४०८; अपभ्रंश काव्य-परपरा में खड़ी बोली के प्राचीन रूप की झलक, ४०६; संत कवियों की बानी की खड़ी बोली, ४०६; गंग कवि के गद्य-ग्रंथ में उसका रूप, ४०६-१०; इस बोली का पहला ग्रंथकार, ४१०-११; पंडित' दौलतराम के अनुवाद-ग्रंथ में इसका रूप, ४११-१२; ‘मडोवर का वर्णन' में इसका रूप,४१२; इसके प्राचीन कथित साहित्य का अनुमान,४१२; व्यवहार के शिष्ट-भाषा रूप में इसका ग्रहण, ४१३. इसने स्वभाविक रूप का मुसलमानी दरबारको रूप-उद्-से भिन्नता, १५३; गद्य साहित्य में इसके प्रादुर्भाव और व्यापकता का कारण, ४१३-१४;