तनुज एक राजा के रहा। अंत:करन नाम सब में सब कहा॥
सौम्यसील सुकुमार सबाना। सो सावित्री स्वांत समाना॥
सरल सरनि जौ सो पग धरै। नगरे लोग सूधै पग परै॥
वक्र पंथ जो राखै पाऊँ। वहै अव्य सब होइ बटाऊ॥
रहे सँघाती ताके पत्तन ठावँ।
एक संकल्प, विकल्प सो दूसर नावँ॥
बुद्धि चित्त दुइ सखा सरेखै। जगत बीच गुने अवगुन देखै॥
अतःकरन पास नित आवैं। दरसन देखि महासुख पावें॥
अंहकार तेहि तीसरे सखी निरंत्र।
रहेउ चारि के अंतर नैसुक अंत्र॥
अतःकरन सदन एक रानी। महामोहनी नाम सयानी॥
बरनि न पारौं सुंदरताई। सकल सुंदरी देखि लजाई॥
सर्वमंगला देखि असीसै। चाहै लोचन मध्य बईसै॥
कुंतल झारत फाँदा ढ़ारै। चख चितवन सों चपला मारै॥
अपने मंजु रूप वह दारा। रूप गर्विता जगत में मँझारा॥
प्रीतम-प्रेम पाइ वह नारी। प्रेमगर्विता भई पियारी॥
सदा न रूप रहत है अंत नसाइ।
प्रेम, रूप के नासहिं तें घटि जाइ॥
जैसा कि कहा जा चुका है नूरमुहम्मद को हिंदी भाषा में कविता करने के कारण जगह जगह इसका सबूत देना पड़ा है कि वे इसलाम के पक्के अनुयायी थे। अतः वे अपने इस ग्रंथ की प्रशंसा इस ढंग से करते हैं––
यह बाँसुरी सुनै सो कोई। हिरदय-स्रोत खुला जेहि होई॥
निसरत नाद बारुनी साथा। सुनि सुधि-चेत रहै केहि हाथा॥
सुनतै जौ यह सबद मनोहर। होत अचेत कृष्ण मुरलीधर॥
यह मुहम्मदी जन की बोली। जामैं कंद नबातें घोली॥
बहुत देवता को चित हरै। बहु मूरति औंधी होई परै॥
बहुत देवहरा ढाहि गिरावे। संखनाद की रीति मिटावै॥