पृष्ठ:हिंदी साहित्य का आदिकाल.pdf/६

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भूमिका [ द्वितीय संस्करण ] 'हिन्दी साहित्य का आदिकाल' दूसरी बार छपकर प्रकाशित होरहा है। यह पुस्तक 'विहार-राष्ट्रभाषा परिषद्' के तत्त्वावधान में दिए गए पॉच व्याख्यानों का संग्रह है। ___ उस समय मेरे मन में हिन्दी के प्रारंभिक साहित्य के सम्बन्ध में जो उलझने थीं और उनकाजोसमाधानसमझा था, उसे विद्वानों के सामने यथासंभव स्पष्ट मापा मे मैने कह दिया था। प्रकाशित होने के बाद विद्वन्मंडली का ध्यान इस पुस्तक की ओर आकर्षित हुआ और इसकी अनुकूल-प्रतिकूल चर्चाएँ हुईं। जो आलोचनाएँ मुझे देखने को मिलों, उनकी सहायता से मैने भरसक अपनी जानकारी को ठीक करने का प्रयत्न किया। मुझे इस बात से कुछ संतोप है कि विद्वानों ने मेरे विचारों को महत्व दिया और ऐसे सुझाव दिये जो उन्हें उचित जान पड़े। कई सुझावों से मै अपनेको बहुत लाभान्वित नहीं कर सका, क्योंकि वे प्राप्त प्रमाणो के आधार पर युक्ति-संगत नही जेंचे। परन्तु, कुछ सुझाव स्वीकार-योग्य जान पड़े। यथास्थान मैने इस दूसरे संस्करण में इनका उपयोग किया है। कई मित्रों ने सलाह दी कि जिन अपभ्रंश पदों की व्याख्या व्याख्यानों में नहीं आ सकी हो, उनका हिन्दी-भापान्तर दे दिया जाय । इस संस्करण में मैने उनकी सलाह मान ली है। परन्तु जहाँ केवल भाषाविषयक उदाहरण देने के लिए एकाध पंक्तियाँ उद्धृत की गई है, उनका अनुवाद छोड़ दिया गया है। इन पंक्तियों का उद्देश्य केवल भाषा-संवन्धी वैशिष्ट्य का उदाहरण प्रस्तुत करना था और वह अहेश्य अनुवाद दिए विना भी सिद्ध हो जाता है; परन्तु ऐसे स्थलों पर भी जहाँ पूरे पद्य उद्धृत किए गए हैं, उनका भी भाषान्तर दे दिया गया है। इस प्रकार इस दूसरे संस्करण मे थोड़ी-सीनबीनताबागई है। जिन विद्वानों ने उस पुस्तक की आलोचना की है, उनके प्रनि मै हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करता हूँ। विहार-राष्ट्रभाषा-परिपद् ने पुस्तक के दूसरे संस्करण में भी उतनी ही रुचि और तत्परता दिखलाई है, जितनी प्रथम संस्करण मे दिखलाई थी। ___ इस दूसरे संस्करण का प्रूफ मै नहीं देख सका, इसलिये कदाचित कुछ अशुद्धियाँ रह गई हों। गुणन्न पाठक उन्हें सुधार ले । परिपद् के अधिकारियों ने जिस उत्साह और प्रेम से इसे निर्दोप बनाने का प्रयत्न किया है, उसके लिए किन शब्दों मे आभार प्रकट करूँ। काशी-विश्वविद्यालय फाल्गुन-शिवरात्रि हजारीपसाद द्विवेदी स. २०१३