पृष्ठ:हिंदी साहित्य का आदिकाल.pdf/३

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इसका विशेष प्रचार विश्वविद्यालयों के क्षेत्र में ही हुआ है। इसके अलभ्य होने पर उस क्षेत्र के साहित्यानुशोलन कत्ताओं की उत्कण्ठा का जो अनुमान हुआ, उससे यह अशा प्रतीत होती हैं कि निकट भविष्य में ही इसके तीसरे संस्करण का प्रकाशन भी संभव हो सकेगा । | इस दृसरे संस्करण के सम्बन्ध में विद्वान् लेखक ने अपनी भूमिका के अन्तर्गत यह स्पष्ट बतला दिया है कि उन्होंने इसमें कौन-सी नवीनता लाने का प्रयत्न किया है। आशा है कि उनका वह प्रयत्न पाठकों के लिए विशेष लाभदायक प्रमाणित होगा। कितने ही जिज्ञासु पाठक प्रायः हमसे लेखक-परिचय पूछा करते हैं। ऐसे सज्जनों के लिए यह बतलाना आवश्यक जान पड़ता है कि आचार्य द्विवेदीजी उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के निवासी है। पहले विश्वभारती-शान्तिनिकेतन में हिन्दीविभागाध्यक्ष थे और अब उसी पद पर काशी-विश्वविद्यालय में हैं। वहाँ की त्रैमासिक पत्रिका 'विश्वभारती' के सम्पादक थे, यहाँ भी काशी-नागरीप्रचारिणी सभा की त्रैमासिक पत्रिका के सम्पादक हैं तथा सभा के सभापति भी रह चुके है। उनकी अनेक महत्वपूर्ण पुस्तके हिन्दी-जगत् में पर्याप्त प्रतिष्ठा और प्रसिद्धि पा चुकी है । आधुनिक हिन्दी-साहित्य से जिनका थोड़ा भी परिचय है, वे उनकी साहित्य-सेवा से कदापि अपरिचित न होंगे। महाशिवरात्रि संवत् २०१३ वि० शिवपूजन स्थ संचालक [ प्रथम संस्करण ] बिहार-राज्य की सरकार के शिक्षा-विभाग द्वारा सस्थापित, सरक्षित और संचालित विहार-राग्ट्रभापा-परिषद् से प्रकाशित होनेवाला यह सवले पहला ग्रंथ है- श्राचार्य डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी-लिखित *हिन्दी-साहित्य का आदिकाल' । इसके साथ या कुछ आगे-पीछे छह अन्ध और भी प्रेस में दिये गये थे, जिनकी छपाई का क्रम नियमित रूप से चल रहा है; पर ईश्वर की कृपा से सर्वप्रथम प्रकाशित होने का श्रेय इ ग्रंथ को मिला, यह व हर्प और सतय की बात है। क्योंकि हिन्दू-विश्वविद्यालय के हिन्दी-विभागाध्यक्ष श्राचार्य द्विवेदीजी हिन्दी-जगत् के परम यशस्वी साहित्यसेवी हैं और उन्हीं के इस महत्वपूर्ण ग्रन्थ के साथ परिपद् के प्रकाशन-कार्य का श्रीगणेश हो रहा है । परिषद् में अनिवप कम-से-कम दा विशिष्ट विद्वानों की भाषणमाला की व्यवस्था की जाती है। प्रत्येक भापण लिखित श्रौर एक सत्र मुद्रा में पुरस्कृत तथा पांच दिनों तक एक-एक घटे के व्याख्यान के रूप में समाप्त होता है। आचार्य द्विवेदीजी का यह भाषण दूसरे वर्ष की भापणमाली का प्रथम भाषण है, जो १३ मार्च १६५२ ई० को पटना में परिषद्