पृष्ठ:हिंदी साहित्य का आदिकाल.pdf/२

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बकल्य [ तृतीय संस्करण } परम हर्ष का विषय है कि ‘हिन्दी-साहित्य का आदिकाल के तीसरी बार पुनर्मुद्रण को हमें सौभाग्य प्राप्त हुआ। जिज्ञासु पाठकों ने इस पुस्तक को अधिक अपनाया और इसकी मॉग उनकी ओर से बराबर बनी रही--यह इस बात का प्रमाण है कि साहित्यानुरागियों को यह पुस्तक बेहद पसंद आई। परिषद् के लिए यह परम संतोष और आनन्द की बात है । तीसरा संस्करण निकालने के पहले हमने चाहा था कि यदि लेखक आवश्यक समझे, तो वे दूसरे संस्करण की तरह इस सस्करण के लिए भी अपेक्षित परिवर्तन परिवर्द्धन कर दें। तदर्थ हमने उनकी सेवा में प्रेस-कॉपी भेजकर उनसे अभिप्राय प्रकट करते हुए अनुरोध किया। संभवतः कार्याधिक्य के कारण आचार्य द्विवेदीजी हमारे अनुरोध का पालन न कर सके। परन्तु, हमारे पास इस पुस्तक की माँग इतनी इकट्ठी हो चुकी थी कि अधिक काल तक रोक रखना कठिन हो उठा । फलतः, हम ज्यों-का-त्यों इसे प्रकाशित कर रहे हैं। विश्वास है, पूर्ववत् ही इस संस्करण का भी समादर होगा, विश्वविद्यालयों में भी और उनके बाहर भी । श्रीरामनवमी भुवनेश्वरनाथ मिश्र ‘पाधव २०१८ वि० सचानक [ द्वितीय संस्करण 3 बिहार-राष्ट्रभाषा-परिपद् की ओर से प्रकाशित हुई पुस्तकों में सबसे पहले यही पुस्तक (हिन्दी-साहित्य का आदिकाल) प्रकाशित हुई थी। दूसरे संस्करण का सौभाग्य प्राप्त करनेवाली पहली पुस्तक भी यही है। अतः, इसकी उपयोगिता और लोकप्रियता स्वयंसिद्ध है। सन् १९५६ ई० के मध्य में ही यह पुस्तक अप्राप्य हो गई। प्रथम संस्करण की समाप्ति से पूर्व ही इसके संशोधन-संवर्द्धन के लिए, इसकी प्रति, आचार्य द्विवेदीजी की सेवा में भेज दी गई थीं। किन्तु ३ केन्द्रीय शासन के राजभाषा आयोग के सदस्य होकर देश के विभिन्न स्थानों में भ्रमण करते रहे, इसलिए इसकी संशोधित एवं परिवर्द्धित प्रति वहुत विलम्ब से प्रेस मैं जा सकी। फलस्वरूप, पूरे नवे महीने के बाद यह पुनः सुलभ हुई है।