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हिन्दी-साहित्य का आदिकाल

हिन्दी-साहित्य की प्रादिकाल बीच-बीच में इंछिनी का पतिव्रता रूप भी स्पष्ट हो उठता है। इन्हीं किन्ही प्रसंगों में मूल रासो का अन्तिम अंश प्रच्छन्न है। यह प्रसिद्ध है कि चन्द के पुत्र ने इस ग्रंथ को पूरा किया था। पता नहीं, इस 'पुत्र' ने कितना विस्तार किया है। सहज ही अनुमान किया जा सकता है कि इन 'पुत्रों की संख्या बहुत अधिक रही है और दो-तीन शताब्दियों तक उनका प्रभुत्व रहा है। प्रारम्भ में हमने ऐतिहासिक व्यक्तियों के नाम से संबद्ध भारतीय कान्यो की मूल प्रवृत्तियों का विश्लेषण किया है। उस पृष्ठभूमि मे रासो का यह रूप अनुचित नहीं मालूम होता। सभी ऐतिहासिक कहे जानेवाले काव्यों के समान इसमे भी इतिहास और कल्पना का-फैक्ट और फिक्शन का मिश्रण है। सभी ऐतिहासिक मानी जानेवाली रचनाओं के समान इसमें भी काव्यगत और कथानक प्रथित रूढियों का सहारा लिया गया है। इसमे भी रस-सुष्टि की ओर अधिक व्यान दिया गया है, सम्भावनाओं पर अधिक जोर दिया गया है और कल्पना का महत्त्व पूर्ण रूप से स्वीकार किया गया है ।