पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६२८

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‘पाताल अइसन दुःप्रवेश, स्त्रीक चरित्र अइसन दुर्लक्ष्य, फालिन्दीक कल्लोल अइसन मांसल, काजरक पर्बत अइसन निविड़, आतंकक नगर श्रईसन भयानक, कुमंत्र अइसन निफल, अज्ञान अइसन सम्मोहक, मन अइसन सर्वतोगामी, अहंकार अइसन उन्नत, परद्रोह अइसन अभव्य, पाए अइसन मलिन; एवंविध अतिव्यापक दुःसंचार, दृष्टिबन्धक, भयानक, गम्भीर, सूचीभेद्य अन्धकार देख् ।” संस्कृत-शब्दों के बाहुल्य से कोई भी भारतीय भाषा सम्पूर्ण भारत के लिए कितनी सुबोध हो जाती है ! ऐसा' का प्रयोग जैसा' की जगह भी करते हैं--पातील जैसा दुःप्रवेश’ और ‘राम ऐसा वीर और कहाँ मिले गा १ ‘ऐसा’ को ‘ऐस’ ("श्रइस ) रूप पञ्चाल तथा अवध में ही प्राप्त हो जाता है। 'अइसन' माने ‘ऐसा' । राष्ट्रभाषा में संबन्ध का 'क' प्रत्यय ( पुंविभकि लगा कर ) का, के, की रूपो में आता है; परन्तु मैथिली में सुदी एकरस ‘क’ ही रहता है। ( पुंबिभक्ति ) व्रजभाषा में 'ओ' लगकर ‘को’ ‘के' की' । मैथिली के आगे बँगला भाषा है । मैथिली का साहित्यिक रूप अप ने देखा । कैसा मोहक है ? अब जनपदीय रूप देखिए:-~। जे हो मुँदरि छल श्राँगुरि कसि कृसि, से हो भैल हाथक कंगन ! वियोग की कृशता पराकाष्ठा पर है ! जो मुंदरी ( अँगूठी ) किंसी समय अँगुली में खूब कसी आती थी, वही अब हाथ का कंकण बन गई है ! जे’ –'नो' 'सो'। अवघी में लो' र 'सो' एकवचन हैं और जे’ ‘ते’ बहुवचन | मैथिली में ‘जे से एकवचन हैं । “हाथ क कंगन' में ‘कृ’ अपने रूप में है। भेल' अवधी में ‘भई' या भै' के रूप में आए गी“हो गई। मैथिली में स्वार्थिक प्रत्यय पुंस्त्री में व” तथा “इया’ होते हैं। समस्त बिहार में यही बात है। अनार' का अनरवा' और 'जामुन' का जमुनियाँ रूप हो जाता है । टिकट' का 'टिकटिया' और जामुन' का ‘बमुनियाँ' । यानी अनुनासिकान्त को अनुनासिक ‘वाँ थाँ'-‘जमुनियाँ ‘मुइवाँ' । कभीकभी ‘बाँ’ को ‘भा’ भी हो जाता है--‘मुवाँ'-मुहमा । 'मैथिली लोकगीत का उदाहरणः मुहमा उघारि चब प्रभु देखलिन्ह' जब मुहँ ( पूँघट ) खोल कर प्रियतम ने देखा ।