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जैसा कि हम ने कहा, “सहरी’ शब्द का मछली’ अर्थ लोगों ने किया है, चाहे सोच-समझ कर, पता लगा कर और चाहे अटकाल से ही ! इम ने भी ‘सहरी' शब्द का मछली' ही अर्थ किया है और हिन्दी निरुक्त' में लिख कर प्रकाशित भी , कराया है। उस के बाद वर्मा जी ने उपर्युक्त विचार प्रकट किया है । यद्यपि उन्हों ने कोशकारों को ही नाम लिया है; पर श्री जाते हैं वे सब, जो सहरी” का अर्थ मछली करते हैं । इसीलिए व्रजभाषा चर्चा में इसे ले लिया है-शब्द-चिन्तन की गतिविधि दिखाने के लिए।

वर्मा जी ने सहरी' शब्द का अर्थ जल में चलने वाला' या रहनेवाला' इस ढंग से बतलाया है कि जैसे वह बहुत प्रसिद्ध हो, सब जानते-मानते हो ! हो गा ! मैं सब की नहीं जानता, अपनी बात कहता हूँ कि ‘सहरी' का अर्थ वह मुझे मिला नहीं, जो बर्मा जी ने बतलाया हैं । “भरी' का अर्थ 'तुल्य' या ‘बराबर भी मुझे नहीं मिला ! हम तो पात भरी सहरी' को अर्थ सीधा करते हैं-पत्तल भर मछलियाँ । 'सहरी' तथा 'भरी' शब्द् विचारणीय हैं, पर बहुत स्पष्ट हैं। भाषा में वर्गीय महाप्राण व्यंजनों से अल्पप्राीय अंश घिस कर नष्ट हो जाता है और शक्तिशाली (‘महाप्राण’ ) 'ह' बचा रहता है। क्रोध' के *ध' से इट गया, 'ह' रह गया–कोह' | 'नख' के 'स्व' से ' उड़ गया, 'ह' बचा रहा हैं। संस्कृत शफरी' शब्द हैं, एक प्रकार की मछजी’ का वाचक। भाषा में श’ की ‘सु' हो ही जाता है । 'फ' से 'पू' अयप्राणु घिस कर उड़ गया ‘ए’ बाकी रहा और फरी' बन गया “सहरी' । काशी के हैं इधर-उधर “सहरी’ शब्द मत्स्यविशेष के लिए प्रसिद्ध है; इसलिए अभरको के टीकाकार शक्तिधर ने फरी' इति, सहरीतिरख्यातसत्त्यः' लिखा है ।। | भर’ अव्यय हैं, जो ब्रभाषा तथा अवधी में भरि' हो जाता है“थाली भर खीर–थारी भरि खीर। यही भरि’ कविता में भरी है । ‘तुल्य या सदृश अर्थ में हमें यह नहीं मिला ! परन्तु विद्वद्वर वर्मा जी का विचार धत्ते की तरह उड़ाया नहीं जा सकता; विशेषतः जब इतने जोर से उन्होंने कहा है। यह ‘शब्दानुशासन’ है; कोश-ग्रन्थ नहीं कि इस तरह के विचार पल्लवित किए जाएँ। प्रसंगतः इतना कहना था—जैसा कि वर्मा जी ने भी कहा है-- कि ब्रजभाषा-साहित्य में अर हुइ बहुत से शब्द विचारणीय हैं। इन का अध्ययन होना चाहिए ।