पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२९१

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ध्यान होने के कारन , मैं तथा करी आदि की प्रधानता है। गौ के साथ बैला भी रहे हों, तो भी यह कहा जाएगा---‘गौएँ चर रही हैं। हस्ते तर मैले कर रही है’ ‘बकरियाँ बुर रही हैं इत्यादि । संस में माना और दा के लि ‘ति वैकल्पिक प्रयोग होता है। बन रक्षा अनुचरित । *दिव” इस द्विवचन से 'माता' की भी प्रतीति । लाई है । पर हिन्दी में है नहीं हैं ! यह 'माता-पिता भयो।'

; ; ; आ रहे हैं कहूने से यह न सस एगा कि ताज
  • ऋः रही हैं। माता के अप्रधानतः यहाँ नहीं दी गई है। माता की

पृथक् सः ।। मयुरुप, मधु त तुपुष शब्द के उमघट में उत्तम सुरु प रहा है। ग्रन्थ लुप्त रहते हैं। मेले में तु है लेगा. मेहून भी T, दुः । दुले में भी चलें, तो सम४ि झह दिशा जा --म सब चले । 'म सब ८ वे सब झूह में मतलव न निकले । युद्ध उत्तमपुरुष का अभाव हों और अन्य पुरुष तथा सध्यम पुरुष इन्दः छः जमघट हो, तो फिर मध्यम पुरुष क्षेत्र रहे; अन्य पुरुष खुला था अनुरित रहेंगे। मेले में बम भी जाना चाहता है, सुशील भी जाना चाहती हैं, तू भी जाना चाहता और दादी-नान भी जाना चाहती हैं; तः ‘तुचले जा’ | यहाँ तुझ ब’ की जगह 'वे सब न कह सकेंगे। वैसा कहने से मध्यमपुरुष गृहीत न हो सकेधा ; भो सामने है, जिससे बातें की जा रही है, उसे ही प्रधानता मिलेगी; तब कान चले । “तुम सब चले छ, में ‘दे ' हैं सुम्निलित हैं। परन्तु वें सङ्ग में तू या तुम नहीं गृहीत हो सकढ़े। अब ‘उचम’ ‘मध्यम' और वाद में अन्य स्पष्ट हु८।। यह एकशेष' या शब्दान्तर का क्रोडकारण भाषा में स्वभावतः हुआ। करता हैं। यदि ऐसा न हो, तो अनावश्यक शब्दों की भरमार से भाषा भद्दी हे छाए बाड़ों से और घोड़ियों से बेझ देने का भी काम लेते हैं अच्छा लगता है ? ‘ाई से पर्याप्त है। | कितने छात्र इह वर्ष दी० ६० में बैठे ? यहाँ से छात्रा' भी हीत है । परन्तु 'छों को और छात्रों के अपने-अपने जीवन की दृष्टि से पाय थिय चुनने चाईए' व 'कृ ' को पृथकू निर्देश जरूरी है । छात्र के दिन में और अॐ ॐ ॐवन में अन्तर हैं।