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सर्वनाम का काम देते हैं। ये दोनो और सदा एकरूप रहते हैं। परन्तु सभ कारकों में चलते नहीं हैं। अब नाम आप इन के चाहे जो रख लीजिए । प्रयोग के अनुसार शब्दों के नाम चलते हैं। बहुत लोगों ने खाया है' में

  • बहुत संश:-विशेष है, संख्या-वाचक्र । ‘लोगों ने बहुत खाना खाया' में

भी बहुत संज्ञा-विशेषण है--‘खाने' { भोजन ) को परिभाशि बतलाता है ! वह अनिश्चित परिमाणु-चक विशेषशा है । आज तो हमने बहुत पढ़ा' में

  • बहुत’ क्रिया-विशेषण है--‘पड़ने का परिमाण बतलाता है।

| इमी तरह कह सकते हैं, 'क्या' तथा 'कुछ' सर्वनाम भी हैं, अव्य भी हैं; या व्यय भी है और सर्वनाम भी हैं । देवदत्त मिठाई बनाने-बेचने का काम करे, तो ‘हलवाई' कहलाएगा और कपड़े बेचने लगे, तो “बजाज । दोनों का करे, तो यथास्थान हलवाई भी और बजाज भी ।

क्रोडीकृत शब्दों का तिरोभाव

जब किसी संज्ञा या सर्व-संज्ञा’----नाम ः सर्वनाम---का काम उसकी अपनी प्रत्यक्ष उपस्थिति के बिना ही निकल जाता है, तो उसका प्रत्यक्ष प्रयोग अनावश्यक हो जाता है। तब वह सामने न आकर अपने साथी- सहयोग के द्वारा ही अपना काम कर लेता है। रेल के एक डिब्बे में लिए हैं-५० अदभी बैठ सकते हैं, तो इसका मतलब होगा कि

  • पचास स्त्री-पुरुष बैठ सकते हैं। ‘ादमी के साथ 'औरत' लिखने की।

श्रावश्यकता नहीं; क्योकि लोग्न-व्यवहार से उसकी प्रतीति वैसे ही हो जाती हैं। श्चेदवगतः किं शब्देन ?' अर्थ निकल जाता है, तो फिर तदर्थ शब्द का प्रयोर किंस काम का है परन्तु, यदि कहीं लिखा हो---‘इस कमरे में दस महिलाए” उहर सकते हैं, तो फिर महिला मात्र का बोध होगा;

  • सुरु' की नई । कहीं लिखा है-*दन पाखाना' तो ‘मर्द के साथ

कारित' का अरा न हो; क्योंकि मर्दाने पाखाने में श्रोरतें नहीं जाती हैं।

  • इस ३ में दस धोर्बः रहते हैं' कहने से धोविने स्वतः गृहीत हैं। परन्तु
  • घर में दो धोनें रहती हैं। कहने से चौबी' की उपस्थिति प्रायः द

हो । क जंगल में हिरनों और हिनियों को चरते देख कोई कह देता है-- चर रहे हैं, तो उसका मतलब यह नहीं होता कि वहाँ हिरनियाँ न हैं। बहू पुंस्त्री दोन वग के लिए सामान्य प्रयोग ‘हिरन’ झरती हैं।