पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२६०

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राष्ट्र द्वारा हीत है। कुञ्जन पद की द्वितीय प्राङ्कत के रूप म सम्भावित हैं--- | वचनब इन्चन संस्कृत-पुत्रःोगः---पुत्रः आगताः प्राकृ—युध अदा-पुते श्रागदे हिन्दी-लड़झा आय:--लड़के अपये ( अ ) ‘लइक' की ही तर म' ' दि त्रिदोश्र र अाया' आदि। छुदत क्रिया द्रा में लाकरान् बुवाचक संज्ञा नती हैं, इन बोई की हो रडू } इन के कार, रू न होने डिन्दी में भा-विज्ञान के जो अन्य निकाले हैं, उन में ह ज शि कि ?” * * ॐ ब्रज ॐ ' ' असे रूप होते हैं । ६ दिशे; अबश्य अ न्त । स्थान की तरह } हो जाते हैं । सत्र कई * जगह देख लीजिए:-- थानी --- ऐ लड़कों को बढ़ा अज्ञा - छोर देखें और खड़ी बोल... ऐस; तडक ऐसे लइके ‘ऐस' की ही तर सम तद्भव विशेष रहते हैं। ऊपर इन ने ईदृशः' से ' व्हिा इतर या ! परन्तु 5% में विकास-पद्धति से कम नहीं चलतः; प्रकृति-त्यय की कामना करके सर्च समझाया जाता है । ऋग्रन्था, वैली' का विस कैसे समझाया जाए यार ? स, 'इ' श्रादि दिई प्र छुन में दन्त हैं; 'दृ घालु सामने हैं । परन्तु झिंन्दी में देख तु है ! ईशः' से सः सूमझ में अः क ५३ के वैस’ समझ में न ए र बङ तना सब समझते हैं । ३ ॐ कोई प्रत्यय करके बैं!' बताना होगा । 'ऋत्य उस को कहते हैं, जो कि प्रकृति में ला कर विशेड् प्रत्यय कुरा । जिस का स्वतन्त्र प्रयोग न ६, है कि *लिया' में ' प्रत्यय हैं, ७ भूताले बतलाता है। ऐसा दिं में भी ‘स' प्रत्यय ॐ ॐ ॐ बुंशि अनलाई जा सकती थ; परन्तु स’ झा विभक्ति के साथ ‘स रूप ) पृथक प्रया भी होता है-- राम का-स घर म के-से वचन