राष्ट्र द्वारा हीत है। कुञ्जन पद की द्वितीय प्राङ्कत के रूप म
सम्भावित हैं---
| वचनब इन्चन
संस्कृत-पुत्रःोगः---पुत्रः आगताः
प्राकृ—युध अदा-पुते श्रागदे
हिन्दी-लड़झा आय:--लड़के अपये ( अ )
‘लइक' की ही तर म' ' दि त्रिदोश्र र अाया' आदि।
छुदत क्रिया द्रा में लाकरान् बुवाचक संज्ञा नती हैं, इन बोई
की हो रडू } इन के कार, रू न होने डिन्दी में भा-विज्ञान के
जो अन्य निकाले हैं, उन में ह ज शि कि ?” * * ॐ
ब्रज ॐ ' ' असे रूप होते हैं । ६ दिशे; अबश्य अ न्त ।
स्थान की तरह } हो जाते हैं । सत्र कई * जगह देख लीजिए:--
थानी --- ऐ लड़कों को बढ़ा
अज्ञा - छोर देखें और
खड़ी बोल... ऐस; तडक ऐसे लइके
‘ऐस' की ही तर सम तद्भव विशेष रहते हैं।
ऊपर इन ने ईदृशः' से ' व्हिा इतर या ! परन्तु 5%
में विकास-पद्धति से कम नहीं चलतः; प्रकृति-त्यय की कामना करके सर्च
समझाया जाता है । ऋग्रन्था, वैली' का विस कैसे समझाया जाए यार ?
स, 'इ' श्रादि दिई प्र छुन में दन्त हैं; 'दृ घालु सामने हैं ।
परन्तु झिंन्दी में देख तु है ! ईशः' से सः सूमझ में अः क ५३ के
वैस’ समझ में न ए र बङ तना सब समझते हैं । ३ ॐ
कोई प्रत्यय करके बैं!' बताना होगा । 'ऋत्य उस को कहते हैं, जो कि
प्रकृति में ला कर विशेड् प्रत्यय कुरा । जिस का स्वतन्त्र प्रयोग न ६,
है कि *लिया' में ' प्रत्यय हैं, ७ भूताले बतलाता है। ऐसा दिं
में भी ‘स' प्रत्यय ॐ ॐ ॐ बुंशि अनलाई जा सकती थ; परन्तु स’
झा विभक्ति के साथ ‘स रूप ) पृथक प्रया भी होता है--
राम का-स घर
म के-से वचन
पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२६०
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