पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२१६

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इन का कहना है कि भोजपुरी आदि मूरन बँगल' श्रादि के परिवार की हैं। इन पर विचार करना है। | पली बात तो वहीं क, २, नु सम्न्ध-प्रत्यय की तथा 'के' रे, ने विभ- क्तियों की है । यदि विहार की उपयुक्त भाषा में थे दोनों तरह हैं, तो ये ‘हिन्दी की बोलियाँ हैं, हिन्दी-परिवार की भाषाएँ हैं। और यदि बैंगलु। आदि की तरह सर्वत्र ‘र' विभक्त है, तब बँड़-परिवार को सहीं, ठीक हैं । देख लीजिए । दूसरी बात भी देखि | हिन्दी-उरिवार के सच भएँ अपने नाम ईकारान्त रखती हैं और इन के पड़ोल की दूनी भी भाषाएँ भी-» रे, ब्री, बैलाड़ी, पी, राजस्थान, और सार्ट-अनु; अदि । परन्तु यूद्री परम् ॐ भो के झारान्त स हैं--- इन्, उइ, ले- मियः अादि ! यदि एरवी ( बँगला आदि के ) परिवार की ज*, मग, मेंथिली भएँ होतीं, तो इन ने लाभ भी अकारान्ड अवश्य --- - शुर’, ‘मैल’, ‘मगइ। श्रादि । मुहू' का ‘इयः' प्रत्यय से महिमा रूप बहुत सम्भव है; पर झुरिया मैथिलिय” कैसे ? खैर, हृमें इत्र से कोई मतलम नहीं । इन तो यह शब्दानुशासन लिख रहे हैं, व्याकरण पर विचार कर रहे हैं। सो, सम्बन्ध-प्रत्यय तथा सम्ज़न्ध- विभक्तियों के प्रकरण में इतना प्रसंग से कह दिया बदबू । सच बात तो यई है कि अभी तक हमारी भाषा का, या बोलियों कः साधाइ विश्लेयर हुआ ही नहीं है । अन्न क्षेई हिंन्दी की चिभक्तियों के ३ ले तलने में भी शास्त्रार्थ करना पड़ रहा हैं और का, के, की आदि का त्रिभक्ति-निरहन के लिंद महोद्योग करना पड़ रहा है। । विभक्ति या पर कुछ लो। हिन्दी की ने’ को आदि विक्ति को दर्ग' कहते हैं । यह एक ना अईगर, नई झंझट ! 'बिनाक' झब्द इमें पर से प्राप्त है, प्रसिद्ध हैं। उस की २: सर्ग' चन्द जि काम के है ! लाग्न कहते हैं ये को 'ने' आदि विभक्तियाँ न, रस' हैं; क्योंकि किन्हीं शब्दों के ये थिटे हुए य ई-मूलतः जिभ नहीं । इन्दु संस्कृत ही विभक्ति भी तो किन्हीं शब्दों के घिसे हुद रूप कही जा सकती हैं न ? और,