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नहीं । इसी लिए ऐसी क्रियाओं को ‘अर्सङ' कहते हैं । परन्तु “पीना' क्रिया सुकर्मक है। कोई चीज ही पी जाएगी। जो चीज पी जा रही है, वही ‘पीना' क्रिया का ‘फस' । “म पानी पीता है' में 'पानी' कर्म-कारक है । ‘राम दूध पीता है' में दूध कर्म हैं ।। फर्ता के अनन्तर कर्म ही महत्वपूर्ण कारक है, जिसका क्रिया से निकट तम सम्बन्ध है । क्रिया का फल भी इन दो कारकों पर ही पड़ता है, कभी कत पर, कभी कर्म पर । अकसक क्रियाओं में कर्म” की कोई चर्चा ही नहीं ! वह क्रिया का फल ‘क’ पर ही पड़ता है। सोना, उठना, बैठना, ऊँचना आदि अकर्मक क्रियाएँ हैं । म प र लोला हैं। *सोने' का परिणाम या फले १ अचेत हो जाना') 'म' में ही है, अधिक (लँग ) में नहीं। इसी तरह अन्य सभी अकर्मक क्रियाएँ समझिए । सब का फल कर्तृ--:मी होता है । सकसक क्रियाओं का फल भी लेत दिखाई देता है, कभी कर्म त । अन्य किसी भी कारक पर, कभी भी, क्रिया का फल या परिणाम नहीं पड़ता ! “राम पानी पीता है' में क्रिया का फल पानी' पर पड़ावही मुंह से ले के रास्ते पेट में पहुँचा है। परन्तु यह पहुँचने वाली चीज { *पाली ) यह क्रिया में स्वतन्त्र नहीं है। यदि राम उसे मुँह में न लें और फिर गले के नीचे न उडेले, तो वह कभी भी पेट में पहुँच नहीं सकता। राम’ स्वतन्त्र है इस क्रिया में, चाहे पानी पीए, चाहे न पाए। | इसी तरह ‘राम चावल दाता है' में 'पकौन क्रिया का फल चावल पर हैं । वे ही क्लिन-नरभ होते हैं, २कने दर। इस क्रिया का कत तो “राम' है, परन्तु फल चावलों पर हैं। परन्तु “भ पुस्तक पढ़ती है, तब ‘पढ़ना सकर्मक क्रिया का फल कर्म ( पुस्तक ) पर नहीं दिखाई देता । पुस्तक को कोई जानकारी या उससे इप- विषाद् श्रादि नहीं होता है यह सब पढ़ने वाले { कृत ) 'राम' में होता है । इस लिए क्रिया का फल ‘कर्तृगामी’ हुआ ! | प्रक क्रियाओं में नदी में पानी बहता है-*बहने का फुल पानी एर है । वही श्रागे सरकत है; नदी जहाँ की तहाँ रहती है। यहाँ पानी बइने मैं स्वतन्त्र है, कत है। उसी पर क्रिया को फल है । ‘पेड़ पर असि पकता हैं'। 'आम' से मतलब है, उस का फल । यहाँ फुर्सी ‘श्राम (थानी शाम का