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सम्बन्ध-पत्र

इन तीनो ( के, २, ने ) विभक्तियों के प्रतिरू सम्बन्ध-प्रत्यय हैं--क, र, न । इन तद्धित-प्रत्यबों में हिन्दी की पुंविभक्ति लग कर रूप बन जाते हैं--- का, रा, ना । “के’ विभक्ति को तथा 'क' प्रत्यय को भी प्रकृति से इटा कर लिखने की चाल है। ने, से, को, में, अदि विभक्तियाँ प्रकृतिं से हटा कर हिन्दी में लिखी जाती हैं, उसी तरह के विभक्ति भी ! रामके चार गौएँ ई’ यो मिला कर भी कोई-कोई लिखते हैं । परन्तु ३' तथा 'ने' सदा मिला कर ही लिखी जाती हैं-तेरे, भेरे, तुम्हारे, हमारे और अपने'। इसी तरह सम्बन्ध-प्रत्यय भी लिखे जाते हैं। विभक्ति की तरह क’ प्रत्यय प्रकृति से इटा-सटा कर लोग लिख सकते हैं-लिखते हैं-रासका लड़का, रामक्री लड़की और ‘म का लड़का, राम की लड़की । इन सम्बन्ध-प्रत्ययों में जब ब्रज या राजस्थानी की 'ओ' घुविभक्ति लगती है, तब को रो’ ‘नो रूप हो जाते हैं-इझ को घर, तेरो घर, अपनो घर । पूरब में-दमक फवन् निहोर' और 'तुम्हार घरु’ ‘अपन्न घरु' । न 'आ' और न 'ओ' । प्रत्यय सर्वत्र ‘कृ’ र न’ हैं ।। विभक्ति और प्रत्यय झा विषय-भेद हिन्दी में सम्बन्ध-विभक्ति तथा सम्बन्ध-प्रत्यय के विषय पृथक्-पृथक और सुव्यवस्थित हैं । जब अस्तित्व-मात्र कहना हो, या उत्पत्ति कृना हो, तब सम्बन्ध-विभक्ति श्राती है राक्ष के चार गौएँ हैं--( रासस्य वतखः बावः सन्ति ) राम के लड़की हुई है-( रमस्य कन्या जाता } राम के चार लड़के हुए थे-(रामस्य चत्वारः पुत्राः अभवन् ) यहाँ ( सम्बन्ध-विभक्ति की जगह ) सम्बन्-प्रत्यय न आ सकेगा ! “तेरे' 'चार गौएँ हैं-'तव वतखः गावः सन्ति’ “तेरे लड़की हुई है:-‘तव कृन्या जाता’ इन की जगह- ‘देरी चार गई हैं,

  • तेरी कन्या पैदा हुई

ऐसे प्रयोग न होंगे। संस्कृत में भी तद्धित-प्रत्यय ऐसी जगह न लगेगा । ऐसे प्रयोग न होगे