पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१७

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कारक की विभक्ति कहा करते थे ! 'जब-तब' अदि को क्रिया-विशेषण कह। करते थे ! राम को घर जाना है' इत्यादि बास्यों को अनियमित’ बतलाया करते थे ! कहाँ तक लिखा जाए ! मैं ने अपने ब्रजभाषा-व्याकरण के भूमिका भाग में इन सब बातों की समीक्षा की है। वही हिन्दी-व्याकरण की नीदें समझिए । इस व्याकरण में अप को हिन्दी की ‘सिद्ध और साध्य क्रियाओं का स्पष्टीकरण भी मिले गा । इस से पता चले गा कि हिन्दी का विकास कितना वैज्ञानिक है ! निःसन्देह हिन्दी की पद्धति संस्कृत से भी अधिक कलात्मक तथा वैज्ञानिक है; यह श्राप स्वयं इस पुस्तक का अध्ययन कर के कहें गे । बहुत बड़ा काम हो गया है। अाचार्य पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी, श्राचार्य पं० अम्बिका प्रसाद वाजपेयी, महापण्डित राहुल सांकृत्यायन तथा डा अमरनाथ झा के प्रोत्सा- इन और क्रियात्मक प्रेरणा का फल है कि यह ग्रन्थ सामने आ सका । “सुभा' के अधिकारी डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी, डा० राजबली पाण्डेय, पं० करुणा- पति त्रिपाठी तथा पं० विश्वनाथ प्रसाद मिश्र जैसे विद्वान् धन्यवाद के पात्र हैं, जिन के सहयोग से यह ग्रन्थ इतनी जल्दी प्रकाशित हो सका और मेरी इच्छा के अनुसार छपाई में इस की वर्तनी रखी जा सकी । पुस्तक में मुद्रण की ऐसी और इतनी गलतियाँ नहीं हैं कि शुद्धि-पत्र छापना आवश्यक समझा जाए । व्याकरण-संबन्धी इतने बड़े जटिल ग्रन्थ में यदि कहीं छापे की भूल न रहती, तो अवश्य इस देश के लिए आश्चर्य की बात होती । “सभा' का मुद्रण-विभाग बहुत योग्य है और पर्याप्त सावधानी से काम उस ने किया है; तदर्थ धन्यवाद ।

  • विद्वद्वर अचार्य पं० हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ग्रन्थ का परिचय लिख

कर गौरव प्रदान किया और डा० श्रीकृष्ण लाल जी ने अपने प्रकाशकीय वृक्तव्य में व्याकरण-संवन्धी अावश्यक जानकारी दी है। इस के लिए कृत- ज्ञता प्रकट करना मेरा सब से प्रथम कर्तव्य है। कनखल ( उ० प्र०) ! -किशोरीदास वाजपेयी १६-३-५८