पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१५८

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( ११३ ) अन्य भाषा का शब्द संस्कृत शब्द के साथ समास-बन्धन में आता है, तो सन्धि नहीं होती । कांग्रेस’ अंग्रेजी भाषा का शब्द हिन्दी में चल रही है, एक बड़े संगठन के नाम के कारण । इसका समास किसी संस्कृत शब्द से करें, तो सन्धि न होगी । ‘कांग्रेस-अध्यक्ष' और 'पत्रिका' को कांग्रेस-अंक यॊ विना सन्धि के ऐसे ‘समस्त' पद रहेंगे । कांग्रेसाध्यक्ष या कांग्रेसक’ न हो । समास करना तो ऐसे स्थलों में जरूरी हो सकता है । कांग्रेस अध्यक्ष की आज्ञा से ऐसा हुआ है इसे 'कांग्रेस के अध्यक्ष की आज्ञा से कर भी दें, तो कांग्रेस-अंक में अच्छी सामग्री छौ है इसे कांग्रेस के अंक में नहीं कर सकते । सो, समास अवश्यक, परन्तु सन्धि : निषेध । यह भा की स्वाभा- विक स्थिति है। ऐसा क्यों है ? हिन्दी किसी भाषा के शब्द को ज्यों का त्य रखना चाहती है । ज्ञानोदय’ ‘ज्ञानेन्द्र आदि समस्त शब्द संस्कृत से बने-बनाए आए हैं । और मान लीजिए कि यहाँ समास करके बनाए गए; पर संस्कृत-शब्दों का ही सुसास, संस्कृत-पद्धति पर । इबिपति' की तरह ‘धराधिपति' न चले । “घर’ को ‘धरा' देखना पसन्द नहीं । काग्रेस को ‘काग्रेस’ कर देना अच्छा नहीं लगता, इसी लिए कांग्रेसाध्यक्ष बुरा जिलाधीश' में जिला’ दिखाई देता है; पर तहसीलाधीश’ कभी भी न हुआ ! ‘तहसीला भला नहीं लता । अर्थागम' अच्छा लगता है। संस्कृत की चीज है । विदर्गसन्धि में ही एक रूप ( संस्कृत में ) “पुनरियन' ‘अन्ताराष्ट्र ऐसा बन जाता है । हिन्दी ने यह सन्धि स्वीकार नहीं की है। ‘चुनः' तथा अन्तः के विसर्गों को २' के रूप में देखने का अभ्यास हिन्दी को है—“चुनर्विचार “अन्तर्जगत् श्रादि में शतधा यह रूप अखों के सामने आता है, परन्तु

  • पुनरचना' जैसे शब्द-रूप यहाँ नहीं चलने । सौक, मुत्रोता तथा स्पष्ट

हिन्दी को प्रिय है। केवल २’ परे होने से जो रूर संस्कृत में बनता है, उसके चक्कर में पड़ कर क्लिष्टता क्यों बढ़ाई जाए ? हाँ, ‘नीरोग जैसे दो-चार बने-बनाए वैसे शब्द ले लिए गए हैं, जो चल रहे हैं । वृनाने की जरूरत नहीं है उससे बहुत क्लिष्टता बढ़ जाएगी । यहाँ ‘पुनरंरचना' या 'पुनः-- रचना' जैसे शब्दरूप लें ये । संस्कृत के जो पण्डित हैं, उन्हें पुनर्रचना जैसे शब्द-रूप अखरेंगे, खटकें । परन्तु उन्हें समझना चाहिए कि यह हिन्दी झू क्षेत्र है। यहाँ अपना स्वरूप हैं, अपनी गति है। संस्कृत के पंडितों को