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( १०४ ) अकारान्त धातु न हो, तो कभी-कभी ‘अ’ को ‘ब हो जाता है--सोखि न जाय कहूँ अब ही यह ‘शंकर' को वृत्र भानुलली को' । 'जाए' राष्ट्रभाषा में । ‘जावै भी ‘बै’ के वजन पर बना । परन्तु ‘जाये' सर्वथा गलत हैं । 'इ' को

  • होगा, या फिर ' । दोनो चीजे नही हो सकती । “जा तथा जाए

का संकररूप है-“जाये । इसी तरह जायेगा, संकर है, गलत है ।। यदि धातु दीर्घ-इकारान्त हो, तो ( धातु के ) 'ई' को विकल्प से इय्? हो जाता हैं । और इस ‘इयु के यू' का विकल्प से लोप हो जाती है। जी+एडजिम् - ए, जिये : ‘’ का लोप हो जाने पर रूप होगा - जिए । और 'ई' को जब ‘इयु’ होगा ही नहीं, तब जीए इसी तरहः---

  • पी के पिये, दिए, पीए

‘सी’ के लिये, लिए, सीए पहले बताया जा चुका है कि प्रत्यय को ( या प्रत्ययादेश का ) व इ- ई तथा * में मिलने पर विकल्प से लुत हो जाता है--सव प्रबल स्वर निर्बल व्यंजन को दबा देता है । इसी लिए --- गए - गये, आए - आये, लाये - लाए तथा • राई,- गयी, आई - अायी, लायीलाई यो द्विविध रूप होते हैं । लोप हो जाने पर सव दीर्थसन्धि भी हो जाती है- किया+ई - कि-+ ई = की, वियाई - पि+ई = पी लियाई -- लि+ई = ली, सिया+ई- सि+ई = सी यहाँ पुंविभक्ति का जन् स्त्रीलिंग ने 'ई' के रूप परिवर्तित हो गई, तब यु’ का नित्य लोप और नित्य सुवर्ण-दीघरका देश । “कियी’ ‘पियी' आदि प्रयोग नहीं होते, गलत हैं। ‘गया’ यो’ आदि मे यू की स्पष्ट श्रुति है, असद स्वर में । इसी लिए लोग नहीं । यह लोप-लाप का बखेड़ा क्यो, यह पूछा जा सकता है । जवाब बहुत सरल तो थह हो सकता है कि तब यही प्रश्न संस्कृत के वैयाकरणों से भी कीजिए कि “हरथिह' का ‘ह रइह