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बुझाते हैं, उसे पानी' कहते हैं । ‘पानी’ शब्द आप ने बोला और सुनने वाला झट समझ गया वह अर्थ ( वस्तु ), जिसका संकेत इस शब्द में ग्रहीत है । जो इस संकेत-ग्रह से दूर है, वह न समझ सकेगा । हिन्दी से अनभिज्ञ कोई सजन पानी' शब्द से वह अर्थ न समझ सकेंगे। उन की भाषा में इस अर्थ का संकेत जिन (वाटर' या 'ब' आदि ) शब्दों में है, उनके उच्चारण से ही वे वही अर्थ ग्रहण करेंगे । इसी तरह ‘पढ़' शब्द का संकेत जिस क्रिया में है, उसे ( इसके उच्चारण से ) वे लोग तुरन्त समझ लेंगे, जो इस फी संकेत-शक्ति से परिचित हैं। दूसरे लोग कुछ न समझ पाएँगे । वे अपनी भाषा के संकेतित ( ‘रीड' आदि ) शब्दों से वह अर्थ ग्रहण करेंगे । ‘अर्थ’ शब्द से हिन्दी-संस्कृत के जानने वाले जो अर्थ समझते हैं, उस से एक- दम भिन्न अर्थ ( ‘पृथ्वी’ ) अंग्रेज लोग समझेगे; क्योंकि इस शब्द का संकेत वहाँ इसई (पृथ्वी-रूप ) अर्थ में है। इसी तरह के संकेतित शब्दों का समूह ‘भाषा है। भाषा की अनन्त इकाइयाँ ‘वाक्य' कहलाती हैं । ‘वाक्य' का विश्लेषण कर के अनेक ‘पर्दी में विभक्त किया गया । पदों को ही 'शब्द' भी हिन्दीवाले कहते हैं। वैसे

  • शब्द” तो वह है, जो कान से सुनाई दे ताली बजने की आवाज भी ‘शब्द

है; पर उसकी यहाँ चर्चा ही नहीं है एक लम्बा व्याख्यान भी 'शब्द' ही है। और उस व्याख्यान के पृथक-पृथक हजारे या लाखों वे बाक्य भी ‘शब्द' ही हैं। पर वे वाक्य भी यहाँ ‘शब्द' शब्द से हीत नहीं हैं। वाक्य के प्रधान- प्रधान अंग यहाँ ‘शब्द' कहलाते हैं, ‘पद' कहलाते हैं । ‘पानी लाओ' वाक्य में दो पद हैं, एक नाम-पद’ ‘पानी' और दूसरा ‘क्रिया-पद' है----‘लाओं' । इन पदों का या शब्दों का भी विश्लेषण करने पर जो मूल अवयव निकलते हैं, उन्हें ‘वर्ण' या 'अक्षर' कहते हैं । | ‘पानी' शब्द को द्विधा विभक्त कीजिए, तो दो ध्वनियाँ सामने आई -‘पा' और 'नी' । इन दोनों का भी सूक्ष्म विश्लेषण करने पर ( दो-दूनी ) चार खंड समझ में आते हैं---q आ न् ई'। ये चारो मूल ध्वनियाँ ‘वर्ण हैं । इन्हें ही 'अक्षर' भी कहते हैं । 'अक्षर' इसलिए कि इनके अब टुकड़े नहीं हो सकते; ये क्षरणशील नहीं हैं। वाक्य के अपने दो टुकड़े कर दिए और उसके एक टुकड़े (पानी) के फिर दो टुकड़े किए। उन दोनो के भी दो-दो टुकड़े कर दिए–“ए अ' और 'न् ई। बस, अब आगे इनके