पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१०८

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व्याकरण ही नहीं, कोश तथा भाषा-परिष्कार के ग्रन्थ भी यदि इधर-उधर जाएँगे, तो अपनी अवज्ञा कर लेंगे ! संस्कृत के शब्द-कोशों में 'कमल' शब्द पुल्लिंग भी लिखा है; परन्तु लिख का लिखा रह गया ! सब नपुंसक लिए में ही उसका प्रयोग करते हैं । कोई कोश-प्रमाण के बल पर 'कमलाः सरोवरे विकसन्ति' लिख दें, तो अपना मजाक उड़वाए ! इसी तरह हम हिन्दी-प्रयोग बताने के लिए कोई पुस्तक लिखें और अपनी नई चाल निकाल कर कुछ का कुछ चलाने का प्रयत्न करें, तो वही हाल होगा ! राम के सब कुछ है। ‘राम का सब कुछ है और सब कुछ राम को है' इन वाक्य में 'के' 'का' तथा 'को' के कार; जो अर्थ-भेद है, सब समझते हैं। इस तरइ अर्थ-भेद समझाने की शक्ति भाषा में जल्दी नहीं आ जाती है-सहस्त्रों वर्ष लग जाते हैं ! अब इस मात्रा-भेद के झगड़े को हटा कर यदि कोई वैय्यर यह नियम बना दे कि सर्वत्र का रहेगा, कहीं भी की' या 'को न होगा, तो उसके नियम की क्या दशा हो ? परन्तु हाँ, व्याकरण भाषा का नियमन तब अवश्य कर सकता है, जब कि उसके पास अनुकूल तर्क हो और वह तर्क भाषा की प्रकृति के विरुद्ध न हो ।

  • प्रमाणुवल्लादावात प्रवाहः केन वार्यते' उस वाह को कौन रोक सकता

है, जिसे प्रमाण का बल भी प्राप्त है ! उदाहरण लीजिए। साधारणतः ‘रखना क्रिया का भूतकाल में प्रयोग करते समय हिन्दी- भाषी जनता प्रायः एक ‘कू’ का श्राम कर लेती है। बोला जाता है-“पुस्तक मेज पर रक्खी है‘पानी घर में रक्खा नहीं है' इत्यादि । परन्तु लिखना आदि के प्रयोग में वह बात नहीं ! बोला जाता है—चिट्ठी लिखी हैं। पुत्र लिखा है' इत्यादि । तो, इस पर व्याकर विचार करेगा, सार्वभौम दृष्टि से । देखा जाएगा कि अहिन्दी-भाषी बन जब राष्ट्र-भाषा का प्रयोग करेंगे, तो क्या स्थिति होगी ! क्या सब लोग पहले मेरठ पहुँच कर उच्चारण सुनेंगे और लन कुछ वोलेंगे ? सम्भव नहीं, श्रावश्यक नहीं } तच फिर वे रख' का प्रयोग भी ‘लिख’ की ही तरह करेंगे न ? वे लिखेंगे - पानी रखा है। क्या यह दवा गलत है ? निःसन्देह उस अनियन्त्रित जन-बोली को देखते गलत कहा जाएगा; परन्तु व्याकरण यहाँ अनुशासन करेगा। नियम बनाया जाएगा कि राष्ट्रभाषा में ‘पानी रखा’ लिग्ना सही है; ‘एखा' रालत है । ऐसा नियम • बनाने में भाषा का ईठन सहायक है-‘पत्र लिखा’ अादि प्रयोग प्रसाई हैं। धातु ‘रख' है, रक्ख' नहीं । कोई पुस्तक 'रक्खता नहीं, सब ‘रखते हैं।