पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/९९

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-*वक्रय उपाय क' प्रज्ञा पुं० [सं०] चोरो से या सदेह की स्थिति में किसी उपवेश-संज्ञा पुं० [सं०] ६० 'उपवैयन' (को०] । माल का खरीदा या बेचा जाना । उपवेशन--सज्ञा पुं॰ [सं०][वि॰ उपवेशित, उपवेशी, उपवेश्य, उपविष्ट विशेप वृहस्पति के अनुसार घर के भीतर, गाँव के बाहर या १. वैटना । २. स्थित होना । जमना। ३ हार मान रात में किसी नीच जाति के अादमी से कम दाम में कोई लेना [को॰] । वस्तु खरीदना उपविक्रय के अतर्गत है । ऐसा माल खरीदने- उपवेशित-वि० [सं०] बैठाया हुआ। वाला अपराधी होता या । पर यदि बह खरीदने के पहले। | उपवेश--वि० [सं०] उपवेशिन्] १ बैठानेवाला । २ अपने को लगा राज्य को सूचना दे देता था तो अपराध नहीं होता था । | देनेवाला [को०] ।। (नारद) । उपवेष्टन--सज्ञा पुं० [सं०] पूर्णतया लपेट देना । अावरितकरना । ५ ११ संज्ञा पुं० [सं०] प्रतिवेश । पड़ोस [को०] ! कपड़े में बांध देना । (पुस्तक ग्रादि) [को०)। ५१।। -संज्ञा जी० [सं०] १ गौण विद्या । साधारण व्यवहार में उपवेष्टित--- वि० [स] लपेटा हूमा 1 वेन में बँधा हुप्रा (को०] । आनेवाली विद्या । २ लौकिक विद्या या लोकज्ञान [को०] । उर्वणव--संज्ञा पुं० [सं०] दिन के तीन भाग, प्रभात, मध्याह्न और १५--संज्ञा पुं० [सं०] इनके विप । कम तेज जहर । जैसे, अफीम, धतुरा इत्यादि । एक मृत से उपविप पांच हैं—(१) मदार सृध्याकाल । त्रिसघ्यू (०] । का दूध, (२) मॅहुई का दूध, (३) कलिहारी या करियारी, उपव्याघ्र-सज्ञा पुं० [सं०] एक छोटा शिकारी चीता [को०] । (४) कनेर, (५) धतूरा, दूसरे मत से सात हैं--(१) मदार, उपव्रज-कि० वि० [स०] व्रज या चौपायो के रहने के स्थान के (२) सेहुड, (३) धतूरा, (४) कलिहारी या करियारी, (५) पास [को०] । उपशम--सज्ञा पुं० [सं०] १ वासनाम्रो को दवाना। इद्रियनिग्रह । कनेर, (६) गुजा, (७) अफीम । निवृत्ति । शाति । उ०—राम 'मलाई अपनी मल कियों न उपविप प्रणिधि–सज्ञा पु० [सं०] विष या यंत्र मंत्र आदि द्वारा मनुष्य को गुप्त रूप से मारनेवाला। काको । चितवत भाजन कर लियो उपशम समता को ।- विशेप कौटिल्य के समय में ऐसे गुप्तचर उन लोगो के वध के तुलसी (शब्द०) । २ निवारण का उपाय । इलाज । चारा । लिये नियुक्त किए जाते थे जिनसे राजा असतुष्ट होता या, उ०--कामानेल को ताप यह हिय जारंगा तोहि । वृया जरो, या जो वागी समझे जाते थे । उपशम कछु सूझत नाही मोहि-रत्नावली (शब्द॰) । उपाश्चमक--वि० [सं०] उपशमन करनेवाला [को०] । उपविपा--संज्ञा स्त्री॰ [सं०] अतीम् ।। उपविष्ट-वि० [सं०] वैठी हुन । उपशमन–सुज्ञा पुं० [स०] [वि॰ उपशमनीय, उपशामित, उपशम्य] १. शाति रखना । दवाना। २ निवारण । उपाय से दूर उपविष्टक-संज्ञा पुं० [सं०] अायुर्वेद के अनुसार वह गर्भस्थ भ्रण, करना। | जो समय पूरा हो जाने पर भी गर्म में टिका रहता है [को॰] । उपाशय-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ किसी वस्तु के व्यवहार से क्लेश का उपवीणा-- संज्ञा स्त्री० [सं०] वीणा वाद्य की बड़ी तू बीवाला निचला । घटना या बढ़ना देखकर रोग का अनुमान। यह रोगज्ञान के | भाग (को॰] । पाँच उपायों में से एक है। निदान । २ सुख या आराम उपवीणित-सज्ञा पु० [सं०] वशो पर गान करना [को०] । देनेवाली वस्तु यी उपाय 1 अनुकूल औषध या पथ्य। मुग्राफिक उपवोत-सज्ञी पुं० [सं०] [वि० उपवीति] १. जनेऊ । यज्ञसूत्र ।। इलाज । ३ पास सोना (को०)। ४ सहसा अाक्रमण करने के २. उपनयन संस्कार । ३०-करणवैध, चूडाकरण श्री लिये एकात स्थान (को॰) । रघुवर उपवीत, समय सकल कल्यानमय मजुल मंगल गीत ।- तुलसी (शब्द॰) । उपशय--वि० १. पास सोनेवाला । सात्वना देनवाला को०] । छपवीतक-संज्ञा पुं० [सं०] यज्ञोपवीत जनेऊ को०) । उपशया–संज्ञा स्त्री० [म०] काम में लाने के लिये तैयार की हुई गीली उपवीती–वि० [सं० उपवीतिन् यज्ञमूत्र या जनेऊ पहननेवाला मिट्टो (को०] । [को०] । उपाशल्य--संज्ञा पुं० [स०] १. नगर के आसपास की भूमि । ३ गाँव उपवर--सुज्ञा पुं० [म०] एक प्रकार का दैत्य [को०] । | का सिवान । ३ भाला । उपवृहण--सज्ञा पु० [सं०] दे॰ 'उपवृहण' [को०]। उपशाति--संज्ञा स्त्री॰ [स० उपशान्ति] १ वासना का त्याग । इद्रिय- उपवेद-मज्ञा पुं० [सं०] विद्याएँ जो वेदो से निकली हुई कही जीती। निग्रह । २. विश्राति । ३. पोड की निवृति । ४ उपवार । है। ये चार हैं-(१) धनुर्वेद---जिसे विश्वामित्र ने यजुर्वेद इलाज [को॰] । से निकाला । (२) गधर्वं वेद--जिसे भरतमुनि ने सामवेद से उपशाखा संज्ञा स्त्री० [सं०] छोटी शाखा । टहनी की। निकाला। (३) आयुर्वेदधन्वंतरि ने ऋग्वेद से निकाला। उपशामक-वि० [सं०] १ शांत करनेवाला । २ (वाडा विद्दन का} (४) स्थापत्य-जिसे विश्वकर्मा ने अथर्ववेद से निकाला । निवारण करनेवाला (को०] । उपावेचक-संज्ञा पुं० [सं०] वह जो रास्ते चलते लोगो को तग करे या उपाशाय-सभा पु० [सं०] पहरे आदि के लिये कई व्यक्तियों का ज्ञा लूट । गुदा । वदमाश (को॰] । वारी से सोना (को॰] ।