पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/९७

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उपललिका शिल्पक, (१४) विलासिका, (१५) दुमल्लिका, (१६) प्रकर- उपलभन-तज्ञा पुं॰ [स० उपलम्भन] १. अनुमव । २. नाम । प्राप्ति णिका, (१७) हल्लीश, (१) भाणिका । ०] ।। २ --सज्ञा पुं० [हिं० उपरना] दे॰ 'उपरना' । उ०-पाछे उपन—संज्ञा पुं० [स०] १. पत्थर । २ गोला । उ०—जिमि हिय श्री गुसाईं जी स्नान करि घौती उपना पहरि अपरस की उपन कृषी दलि गरही --मानस, १४ । ३। रत्न । ४. मेघ। गादी पर विराजि कै संखचक्र घरत हुते ।—दो सी बावन०, बादल । ५. वालू । चीनी । | भा० १, पृ० है ! उपलक्ष--संज्ञा पुं॰ [सं०] दे॰ 'उपलक्ष्य' । रना—मज्ञा पु० [हिं० ऊपर+ना (प्रत्य॰)] दुपट्टा । उपलक्षक-वि० [सं०] १. उद्भावना करनेवाला । २. अनुमान चद्दर। उ० -सीस मोर मुकुट लकुट कर लीने ओढे पीत । करनेवाला । ताडनेवाला । लखनेवाला ।। उपरेना जा टॅक्यौ चार गोबरू ।—भारतेंदु ग्र०, भा॰ २, उपलक्षक संज्ञा पुं॰ वह शब्द जो उपादान लक्षण से अपने वाच्य पृ० ८२६।। या अर्य द्वारा निर्दिष्ट वस्तु के अतिरिक्त प्राय उसी कोटि को | उपरेनी-सुज्ञा स्त्री० [सं०] योढ़नी। इ० घोखे उारैना के जो ओढे और वस्तुप्रो का भी वोध कराए। जैसे “कौमों से अनाज उपरेनी रहे ताही को ले दियो तो तुबै ले अली गई। फूलन को बचाना इस वाक्य मे लक्षण द्वारा ‘क’ शब्द से और को हार लिए रही तात्तो मारि फेरि हाथन पसारि के सरापत पक्ष भी समझ लिए गए । चली गई ।-रघुनाथ (शब्द॰) । उपलक्षण-संज्ञा पु० [सं०] [वि॰ उपलक्षक, उपलक्षित] १ बोध उपरोक्त--वि० [हिं० ऊपर+सं० उक्त अथवा सु० उपयुक्त] ऊपर करानेवाली चिह्न । सकेत । २ ब्दि की वह शक्ति जिससे | कहा हुआ। पहले कहा हुआ । उसके अर्थ से निर्दिष्ट वस्तु के अतिरिक्त प्राय उसी की कोटि उपरोध-सज्ञा पुं० [H०] १ रोक । अटकाव । २ ड । अाच्छादन । की और और वस्तुओं का भी वोध होता है । यह एक प्रकारे दुकना। की अजहृत्स्वार्थ लक्षणा है। जैसे, 'खेत को कौस्त्रों में बचाना' उपरोधक-मज्ञा पु० [नं०] १ रोकनेवाला । वाघा इालनेवाला । २ इम वाक्य मे कौस्रो शब्द से और और पक्षी भी ममझ भीतर की कोठरी । गमगार । वासगृह । लिए गए। उपरोधक- वि० उपरोध करनेवाला । बाघक (०] । उपलक्षित-वि० [सं०] १ अनुमानित । २ लक्ष्य किया हुआ । ३ उपरोवन-सज्ञा पु० [सं०] रुकावट । अटकाव । अडवन । सत से बताया हुआ । ४ शब्द की लक्षण शक्ति द्वारा उपरोधी-सुज्ञा पुं० [सं० उपरोवन्] [स्त्री उपरोधिनी] रोकने- उद्भावित [को०] । वाली । वाधा डालनेवाला । उपलक्ष्य--पुज्ञा पुं० [सं०] १ सकेत । चिह्न । २. दृष्टि। उद्देश्य । उपरोहित--सुज्ञा पुं० [सं० पुरोहित] १० 'पुरोहित' । उ०—तुम्हरे यौ०——उपलक्ष्य मे= दृष्टि से विचार से 1 बदले में । एवज में। उपरोहित कहु राया । हरि आनव मैं करि निज माया ।--- । उ०—-पडित जी को हिंदी के सुलेखक होने के उपनक्ष्य में एक मानस १५१६६ । | एड्स भी दिया गया था ।—सरस्वती (शब्द॰) । उपरोहिती----सजा बी० [हिं० उपरोहित] दे० 'पुरोहित' । उ०--- उपलबिप्रिय—संज्ञा पुं० [सं०] चमर नामक मृग, जिसे बालधि प्रयत् उपरोहिती करम अति मदा । वेद पुरान सुमृति कर निदा - पूछ प्रिय होती है को०] । मानस, ७1४६। उपरांछा--क्रि० वि० [हिं० ऊपर+द्यछा (प्रत्य॰)] १. ऊपर की । उपलव्ध–वि० [सं०] १ पाया हुआ । प्राप्त । २ जाना हुआ। | ओर।३ ऊपर का ! उपलव्धा--वि० [सं० उपलव्धृ] १, प्राप्त करनेवाला । लाभ उठाने- | उपरौटा–सञ्चा पु० [हिं० अपर+झौटा (प्रत्य॰)] (किसी वस्तु के) वाला । २. अनुभव करनेवाला । जाननेवाला (को०] । ऊपर का पल्ला । अतरौटा का उनटा। उपलव्वि-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. प्राप्ति । १ बुद्धि । ज्ञान । | उपरौठा--वि० [हिं० ऊपर औठा (प्रत्य॰)] ऊपर की ग्रोर का । उपलब्बिसम--संज्ञा पुं० [सं०] न्यायदर्शन के अनुसार एक प्रकार ऊपरवाला । जैसे—उपरौठो कोठरी ।। | का हेत्वाभास रूप तार्किक खडन । जैसे, यह कहना कि 'शब्द उपरोना-लौ० पू० [हिं०] दे॰ 'उपरना' । अनित्य है क्योकि इनकी उत्पत्ति यत्नपूर्वक होती है। उपर्युपरि–क्रि० वि० [सं० उपरि +उपरि] ऊपर ऊपर। उ०- उपलम्य-वि० [सं०] १. प्राप्त । प्राप्त हो सकने योग्य । २ अादर, उपयु परि लेखक भी शान्वित जान पड़ता है ! यो० णीय । संमान के योग्य [वै]] उ० सा०, पृ० ६७ ।। उपला-सज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री०, अल्पा० उपली ईंधन के लिये उपलंभ---संज्ञा पुं० [सं० उपलम्भ] १ अनुभव। २. प्राप्ति । लाभ । | गोवर के सुखाए हुए टुकड़े । कडा । गोहरा । | ३ ध्वनि ]ि । उपलाभ—सज्ञा पुं॰ [सं०] १. प्राप्ति । २ ग्रहण किये। उपलंभक-वि० [सु० उपलम्भक] १ जानने या अनुभव करनेवाला । उपलालन-संज्ञा पु० [सं०] दुलरामा ! प्यार करना [को०1।। २ प्राप्त करनेवाला । लाभ उठानेवाला (को०] । उपलालिका—संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ प्यासा । तृषा । २ उत्पीड़न । २-११ ३. कुशासन । [को॰]