पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/९६

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उपराजा परूपक उपरिक ९ पुनवती साँस डीला० ६०, उपराजा- सज्ञा पुं० [सं० उप+राजन्] प्राचीन काल में राजसभा में राजस्थानीय, कुमारामात्य तया उपरिक शब्द मिले हैं। के एक अधिकारी का पद जिसे उपसभापति कहते हैं । यह कहना उचित है कि ये तीनो पदवियाँ गवर्नर के लिये उपरांठना -क्रि० स० [स० उपरक्त या उपरत, प्रा० उवस्त, उवरय प्रयुक्त की जाती थी ।-पूर्व म० भ०, पृ० ११७ ।। या देशज पीठ फेरना । विमुख होना । उ०—(क) सखि हे राजिद उपरिकर--सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का कर जो उन किसानो से चालियउ पल्लाणियाँ दमाज । किहि पुनवती समहउ, ह्यो लिया जाता था जिनका जमीन पर मौसी या अन्य किसी उपराठउ अाज ।–ढोला० दू०, ३५० । (ख) प्री मारुवणी प्रकार का हक नहीं होता था। सामुहउ, म्हां उपराठउ अज्ज 1:–ढोला० ० ३६३ । । उपरिचर- संज्ञा पुं० [स०] १ एक वस्तु को नाम । २ दे० उपराना —क्रि० अ० [हिं० ऊपर] १ ऊपर आना । उठना । 'चेदिराज' । पक्षी ४ वसुओं में से एक ]ि । २. प्रकट होना । जाहिर होना। ३ उतराना । उपरिचर--वि० ऊपर चलनेवाला (जैसे पदी) (बे० ।। उपराना- क्रि० स० ऊपर करना। उठाना। उपरिचित--वि० ऊपर एकत्र किया हुआ । ऊपर से गृहीत (को॰] । उपराभ- संज्ञा पुं० [सं०] १ त्याग । उदासीनता । विराम । उ०— उपरितन –वि० [सं०] और ऊपर का। और ऊँचा (को०] । साधन सहित कमें सब त्यागे, लखि विपसम विषपन ते भागे । उपरिष्ठा--सज्ञा पुं० [सं०] पराठा | पौठा । पौवठा । उपरौठा । नारी लखे होय जिय ग्लाना यह लक्षण उपराम बखाना - उपरिसद'-सज्ञा पुं० [सं०] देवताओं का वर्गविशेष (को०] । (शब्द०)। २ ग्राम। विश्राम । उ०—-नियकाल तजि उपरिसद-वि० १ ऊपर लेटा हुआ । २ ऊपर बैठा हुआ [को०] । नित प्रति होई, र ति दिवस उपराम् न सोई ।--श० दि० उपरी--सज्ञा स्त्री॰ [हिं० उपल] दे॰ 'ऊपरी' और उपली' । (शब्द॰) । ३ निवृत्ति । छुटकारा ।। उपरीउपरा--सज्ञा पुं० [हिं० ऊपर] १ एक ही वस्तु के लिये कई उपराला –सज्ञा पुं० [हिं० उपर+ला (६९य०)] पक्षग्रहण । अदिमियो का उद्योग । चढाउपरी । उपराचढी । २ एक दूसरे सहायता । रक्षा । उ०-- चहु दिसि घेरि कोटा लीन । जूझ से बढ़ जाने की इच्छा। स्पर्धा । उ०—(क) कटकटात भट लतीफ मास हैं कीनो 1 उपराला करि सक्यो न कोई। सकित भयो लतीफ गळोई ।-लाल (शब्द०)। 'भालु विकट मर्कट करि केहरि नाद । कूदत करि रघुनाथ उपरावटा -वि० [सं० उपरि + आवत्त पा प्रा० उपल्ल (अध्यासित, सपथ उपरीउपरी करि बाद ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) प्रारूढ़) + हि० वटा (प्रत्य॰)] तना हुअा। अकडा विरुझे विर देत जे खेत अरे न टरे इङि वैर बढावन के । रन हुा । जो अपना सिर गर्व से ऊँचा किए हो । उ4-कहा रारि मची उपरीउपर भले वीर रघुपति रावन के ।- चलत उपरावढे अजहू खिसी न गात ! कस सौंह दे पूछिए जिन तुलसी ग्र०, पृ० १६१ ।। उपरीतक--सज्ञा पुं० [स०] रतिबघ विशेष, जिसमें कामी अपना एक पटके हैं सात ।—सूर (शब्द॰) । उपराह+--क्रि० वि० [हिं० ऊपर] दे॰ 'उपराही' । उ०—बदन पैर जाँघ पर और दूसरा कधे पर रखकर कामिनी के साथ उघारा हैं पुहुप, अली भ्वहि उपराहे की समुझत पति झा र केति क्रीडा करता है को०] । को, अहे छिपी पट माह ।---इद्रा०, पृ० ४८ । उपरुद्ध'--वि० [सं०] १ रोक दिया गया। बाधित । २ अवरुद्ध । उपराहना(यु–क्रि० स० [हिं०] प्रशसा करना । सराहना ।। घेरे में ले लिया गया। अवरुद्ध । वदीकृत । कैद । ३ छिपाया उपराहणे--क्रि० वि० [हिं०] दे॰ उपाही' उ०—ले मोती दोउ हाथ न . | हुआ। ४ रक्षित (को०] ।। उपरुद्ध-सज्ञा पुं० वदी । कैदी (को॰) । माहाँ, झारू रतन सीर उपराहीं ।- इद्रा० पृ० ५। । उपराही –क्रि० वि० [हिं० ऊपर] ऊपर। उ०—(क) छाहि उपरुद्धसैन्य- संज्ञा पुं० [सं०] शत्रु के द्वारा रोकी हुई सेना। वान जाहि उपराही । गर्व कैर सिर सदा तराही ।--जायसी विशेप-कौटिल्य ने लिखा है कि उपरुद्ध हुथा परिक्षिप्त (सव ओर से घिरी हुई) सेना मे उपरुद्ध अच्छी है, क्योकि (शब्द०)। (ख) सेंदुर आग सीस उपराही । पहिया वरवन चमकत जाहीं ।—जायसी (शब्द०)।। वह किसी एक अोर से निकलकर युद्ध कर सकती है । उपराही –वि० बढकर। वेहतर । श्रेष्ठ । उ०—(क) वह सुजोति परिक्षिप्त सव ओर से घिर जाने के कारण ऐसा नहीं कर सकती । हीरा उपराही । हीरा जति सई तेहि परछाही --जायसी ताह परछाहा जायसा उपरूढ-वि० [सं०] १ बदला हुआ । २ (व्रण) भरा हुआ या अच्छा ग्र०, पृ० ४४ । (ख) कहूँ अस नारि जगत उपराही । कहूँ अस हुआ (को०]। जीव मिलन सुख छाहीं ।---जायसी (शब्द॰) । (ग) उपरूप—सज्ञा पुं० [सं०] आयुर्वेद के अनुसार रोग का यत्किचित् । अाम जो फरि के नवै तराही, फल अमृत भा सब उपराही । लक्षण । रोग का अारभिक लक्षण [को०)। जायसी (शब्द॰) । उपरूपक-संज्ञा पुं० [स०] नाटक के भेदो में दूसरा भेद । छोटा उपरि--क्रि० वि० [सं०] ऊपर । नाटक । इसके १८ भेद हैं--(१) नाटिका, (२) त्रोटक, यौ--उपयुक्त। (३) गोष्ठी, (४) सट्टक, (५) नाट्यरिसक, (६) प्रस्थानक, उपरिक—सुज्ञा पुं० [स] प्राचीन काल मे बहे अधिकारी के लिये (७) उल्लाप्य, (८) काव्य, (६) प्रेखण, (१०) रासक, प्रयुधत पदवी । राज्यपाल । गवर्नर । उ०—हुप के ताम्रपत्रो (११) सलापक, (१२) क्षीगदित (ौरासिका), (१३)