पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/९३

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उपभोग्य ६०७ उपमित उपभोग्य---वि० [सं०] उपभोग के योग्य । व्यवहार के योग्य । सम सुदर कुसुम ढूढ़े हु मिलिहै नाहि (उपमान का लोप) । उपभोज्य–वि० [सं०] १ खाने योग्य । २ व्यवहार में लाने योग्य । (ग) नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन वारिज नयन (उपमा- | ग्रानद लेने योग्य किये ।। वाचक शब्द का लोप) । इसी प्रकार जिस उपमा के दो उपभोज्य---संज्ञा पु० भोजन । आहार (को॰] । अगों का लोप होता है उसके चार भेद हैं-वाचकधर्मलुप्ता, उपमत्रण- सज्ञा पु० [सं० उपमन्त्रण] १ सवोधन करना । धर्मोपमानलुप्ता, वाचकोपमेयलुप्ता, वाचकपमानलुप्ता, जैसे- आमत्रण । २ अपनी राय मे मिलाना। खुशामद करना [को०)। (क) धरनधीर रन टरन नहि करन करन अरि नाश । राजत उपमंत्री-सुज्ञा पुं० [सं० उप +मन्त्रिन्] १ वह मश्री जो प्रधान नृप कुजर सुभट यस तिहुँ लोक प्रकाश (सामान्य मत्री के नीचे हो । २ दूत को॰] । धर्म और वाचक शब्द का लोप) । (ख) रे अलि । मालति उपमंत्री–वि० १. अमत्रण देनेवाला । २ अनुरोध करनेवाला । सम कुसुम ढूढेहु मिलिहे नाहि (उपमान और धर्म का ३ स्वपक्ष में मिलाने का यत्न करनेवाला को०] । लोप) । (ग) अंटी उदय हो तो भयो छविघर पूरनचद उपमंथनी--सुज्ञा स्त्री० [सं० उपमन्यनी] चलाने की लकडी या (वाचक और उपमेय का लोप) । हुडा । वह लकडी जिससे ग्राग को उलटा पलटा जाता है। उपमा -संज्ञा स्त्री॰ [गु० उपमान ==वर्णन, दृष्टात] वर्णन ! (को०] 1 वयान । प्रशसा । उ०—जो मई में सि पाई। या प्रकार सगरे उपमथिता--वि० [सं० उपमन्यितृ] उपमथन करनेवाला । (अग्नि ब्रजवासी बहू की उपमा करने लागे ।-दो० सौ बावन०, भा० को) खुडैरनेवाला (को०]; २, पृ॰ ३ । । उपमज्जन--सुज्ञा [स०] नहाना । स्नान । अवगाहन [को०]। | उपमाता'--संज्ञा पुं० [स०उपमातृ] [स्त्री० उपमात्री उपमा उपमन्यु'-.-सुज्ञा पुं॰ [स०] गोत्रप्रवर्तक एक ऋषि जो अयोदधौम्य के शिष्य थे । देनेवाला । मिलान करनेवाला । उपमाता-'सुज्ञा स्त्री० [सं०]दूध पिलानेवाली स्त्री। दाई । धाय (को०]। उपमन्यु--वि० १ प्रतिभाशाली 1 व्युत्पन्नमति । ३ उद्योगी [को०] । उपमर्द-संज्ञा पुं० [१०] १ ममलना । रगडना । २ विना 1 वध । उपमाति--सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ निवेदन 1 अाग्रह । ३. तुलना । ३ ३ अपमान । 'मत्संना { ४, आरोप का खडन । ५ हिलना । मारण (को०] । गति देना (को०)। उपमाद' - संज्ञा पुं० [सं०] १ हर्ष । खुशी । २. उपभोग (को॰] । उपमर्दक–वि० [सं०] १. नष्ट करनेवाला । २ अारोप का । उपमाद-वि० खुश करनेवाला । हर्ष पहुंचानेवाला [को०] । खुडन (को॰) । उपमान- संज्ञा पुं० [सं०] १ वह वस्तु जिससे उपमा दी जाय। वह उपमर्दन-सज्ञा पुं० [सं०] १ दवाना । क्लेश देना [को०] । जितके समान कोई दूसरी वस्तु वतलाई जाय । वह जिसके उपमा- संज्ञा स्त्री० [सं०] [वि॰ उपमान, उपमापक, उपमित, उपमेय धर्म का आरोप किसी वस्तु में किया जाय । जैसे,—उसका मुख कमल के समान है' इस वाक्य मे 'कमल' उपमान है। १. किसी वस्तु, व्यापार या गुण को दूसरी वस्तु, व्यापार या गुण के समान प्रकट करने की क्रिया । सादृश्य। समानता । २ न्याय में चार प्रकार के प्रमाणो में से एक 1 किसी प्रसिद्ध पदार्थ के साधर्म्य से साध्य का साधन । वह निश्चय जो किसी तुलना । मिलान । पटतर। जोड 1 मुशावत । उ०—सव उपमा कवि रहे जुठारी । केहि पटतरों विदेहकुमारी --- वस्तु को किती अधिक परिचित वस्तु के कुछ समान देखकर मानस, १॥ २३० । २. एक अथलकार जिसमे दो वस्तु होता है। जैसे--'गाय नीलगाय की तरह होती है इस बात (उपमेय यौर उपमान) के बीच भेद रहते हुए भी को सुनकर यदि कोई जंगल में गाय की तरह का कोई उनका समान धर्म बतलाया जाता है । जैसे,—-उसका जानवर देखेगा तो समझेगा कि यह नील गाय है । वास्तव में मुख चद्रमा के समान है । उपमान अनुमान के अंतर्गत आ जाता है। इसी से योग में विशेप-उपमा दो प्रकार की होती है पूर्णोपमा और लुप्तोपमा । तीन ही प्रमाण माने गए हैं। प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द । पूर्णोपमा वह है जिसमे उपमा के चारों अग उपमान, उपमेय, ३. २३ मात्राग्री का एक छद जिसमें १३वी मात्रा पर विराम साधारण धर्म, और उपमावाचक शब्द वर्तमान हो । होता है । उ०—अव वोलि लै हरिनामै, काल जात वीता । जैसे,---‘हरिपद कोमल कमल से इस उदाहरण में हाथ जोरि विनती करों, नाहि जात रीता 1---छद०, पृ० ५२ ‘हरिपद' (उपमेय), कमल (उपमान), कोमल (सामान्य उपमानलुप्ता–सज्ञा मो० [सं०] वि० दे० 'उपमा ।। घ) और 'से' (उपमासूचक शब्द) चारो अाए हैं । उपमानापु)---क्रि० स० [हिं०] समता करना । वरावरी दिखाना । लुप्तोपमा वह हैं जिसमें उपमा के चारो अगो में से एक दो, तक हो उपमालिनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक वर्णवृत का नाम [को॰] । या तीन न प्रकट किए गए हो। जिसके एक आग का लोप उपमित'वि० [सं०] जिसकी उपमा दी गई हो। जो हो उसके तीन भेद हैं, घर्मलुप्ता, उपमानलुप्ता और वाचकलुप्ता के समान बनलाया गया हो। जिसपर उपमा घटती हो। जैसे,—(क) विज्जुलता सी नागरी, सजल जलद से श्याम जैसे, ‘उसका मुख कमल के ऐमा है इसमे मुख उपभित है। (प्रकाश अादि घर्मी का लोप) । (ख) मालति उपमित सुज्ञा पुं० कर्मधारय के अंतर्गत एक संज्ञा