पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/९१

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उपाय 471 1 --वि० [ हिउपन+इत (प्रत्य॰)] उत्पन्न । उ०- जैसे,—एक कहता है शब्द अनित्य हैं क्योकि उसकी उत्पत्ति | छकैई रहत रैनिद्यौस प्रेम प्यासे असे, कीनी नेम धरम कहानी। होती है। दूसरा कहता है जिस प्रकार उत्पत्ति घमंवाला उपनेत है ।—घनानद, पृ० ६० । होने से शब्द अनित्य कहा जा सकता है उसी प्रकार स्पर्शवाला ५नेता–वि० सज्ञा, पु० [सं०उपनेतृ][स्त्रीउपनेत्री] १. लानेवाला। में होने से नित्य भी हो सकता है। पहुचानेवाला । २ उपनयन करानेवाला । आचार्य । गुरु। उपपत्नो–सच्चा स्त्री० [सं०] विना विवाह किए ही जिस स्त्री को पत्नी ३ नेता का प्रधान सहायक (को॰) । | के समान रख लिया जाय ! रखेली (को०)। ५नन-चज्ञा पुं० [सं०] चश्मा [को०] । उपपथ-क्रि० वि० [सं०] सडक के पास । राजमार्ग के समीप (को०] । २५refव० [सः उत्पन्न, प्रा० उप्पण्ण] दे॰ 'उत्पन्न' । उ०-मारू उपपद--सच्चा पु० [स०] १ पहले कहा गया शब्द। वह शब्द जो देस उपन्नियाँ, तह का देत सुवेत । कूझ बचा गोरगिया, पहले आ चुका है । २ स्थिति विशेप में लाना । ३ उपाधि । उजर जेहा नेतृ –ढोला०, ६०, ४५७।। | पदवी [क]। •न्। सुज्ञा पुं॰ [सं॰] [हिं० उपरना] दे॰ 'उपरना' । । उपपद समास-सज्ञा पुं० [सं०] वह समास जो नाम या संज्ञा के साथ •५ - वि० [सं० उत्पन्न, प्रा॰उपग्ण] उत्पन्न । उ०—सुचा। कूदत के मिलने से होता है । जैसे—स्वर्णकार, हुलघर आदि मने साचु न मैला होई, अापे अयि उपनी सोई -प्राण, कौ] । उपपन्न - वि० [स०] १ पास ग्राया हुआ । पहुँचा हुग्रा । २ शरण पृ० २२१।। उपन्यस्त-वि० [सं०] १ पास रखा हुआ । २ धरोहर रखा हुआ । में आया हुआ । शरणागत । ३ प्राप्त । लब्ध । पाया हुआ। अमानत रखा हुआ । ३ उल्लिखित । दर्ज । कहा हु। मिला हुआ । ४. युक्त । सपन्न । ५ उपयुक्त । मुनासिव । ६. उपन्यास-सज्ञा पुं० [स०] [वि॰ उपन्यस्त] १ वाक्य का उपक्रम । पूर्ण (को०)। ७ सुभव (को०)। ८ प्रमाणित । सिद्ध किया बधान । बात की लपेट। वात का लच्छा २ कल्पित हुआ (को०)। आख्यायिका । कया । नावेल । ३. धरोहर। गिरवी । ४ । उपपशु का संज्ञा स्त्री॰ [सं०] अमुल्य पसली [को०] । प्रसादन (को०) 1 ५ प्रसग । सुदर्भ । सुकेत (को०) । ६. प्रस्ता उपपति—सज्ञा पुं॰ [सं०] १ अप्रत्याशित घटना। २. दुर्घटना । वना ! भूमिका । उपोद्घात (को०] १ ७ नियम । विघान (को॰) । विपत्ति 1 विनाश । [को०)।। उपन्याससधि- सुज्ञा सी० [सं० उपन्याससधि] वह सधि जो किसी सुपपातक--सबा पु० [सं०] छोटा पाप । उ०—जे पातक उपपतिक | अहही, करम बेचने मन 'भव कवि कहही --मानस, २५१६७ । कल्याणकारी कर्म की इच्छा से की जाय (कामद०) । विशेष--मनु के अनुसार परस्त्रीगमन, गुरुसेवीत्याग, अात्मविय, उपपक्ष-सज्ञा पुं॰ [सं०] १. कधा । ३ काख । कुक्षि । ३. काँख का गोवध ग्रादि उपपातक हैं। | वाल किये। उपपाद -सच्ची पुं० [सं० 1 बड़े स्तभ के ऊपर लगा हुआ उसका सहायक उपपति--सज्ञा पुं० [सं०] वह पुरुप जिससे कोई दूसरे को व्याही हुई छोटा खभा [को॰] । स्त्री प्रेम करे । जार । यार । अना। उपपादक-वि० [सं०] १. सिद्ध करनेवाला । २ प्रकट करने (लि।। उपपतित- वि० [सं०] उपपातक करनेवाला । छोटा पाप करनेवाला ३. अच्छी तरह विचारा हुमा किये। | कौ] ।। उपपादन--सपा पुं० [सं०] [वि॰ उपपादक, उपपादित, उपपन्न, उपतत्तिरस-सज्ञा पुं॰ [स० उपयति+रस] पर पुरुप का प्रेम । उपपादनीय, उपपाद्य] १. सिद्ध करना । साबित करना । उ०---जौ कहौ उपपति-रस नहि स्वच्छ, सब को निदत अरु ठहराना। प्रतिपादन । युक्ति देकर समर्थन करना। २. अति तुच्छ - नद० ग्रं॰, पृ० ३२१ । सुपादन कार्य को पूरा करना। उपपत्ति- संज्ञा स्त्री० [सं०] १ हेतु द्वारा किसी वस्तु की स्थिति का उपपादनीय–वि० [स] प्रतिपादनीय । सिद्ध करने योग्य । सावित निश्चय । २ प्राप्ति । सिद्धि । प्रतिपादन । घटना ! चरितार्थ करने योग्य । । होना । मेल मिलना । सगति । ३. युक्ति 1 हेतु । ४. समाधान उपपादित--वि० [सं०] १ जिसका उपपादन या समर्थन किया गया (को०)।५ ग्राश्रय । अाधार (को०)। ६' सन्निकर्ष । सपर्क हो । प्रतिपादितः । सिद्ध किया हुआ । सावित किया हुआ। (को०) । ७ उचित होना । युक्तता (को०) । ८, साधन (को॰) । ठहराया हुआ । २ दिया हुअा। प्रदान किया हुआ [को०] . ६. सिद्धात (को०)। १० प्रमाण । प्रक्रिया ( गणित ) ३. चिकित्सा किया हुअा (को॰) । (को०)। ११ समाधि (को०) । १२ सयोग (को॰) । उपपादक:--वि० [सं०] १. जिसके पैर में पादुका हो । जूते पहना उपपत्तिसम–सुच्चा पुं० [सं०] न्याय में दो कारों की प्राप्ति । बिना हुमा । ३. जिसके पैरो मै नालें लगी हो (चोड आदि) वादी के कारण और निगमन अादि का खडन किए हुए ३. स्वत सभूत । स्वयभू [को॰] । प्रतिपादन करना । प्रतिवादी का यह कहना कि जिस प्रकार उपपादुक’---सबा पुं० परमात्मा । ईश्वर [को०)। बादी के दिए हुए कारण से वह वात हो सकती है, उसी उपपाद्य-वि० [सं०] प्रतिपादन के योग्य । सिद्ध हि । प्रकार हमारे दिए हुए कारण से भी यह बात हो सकती है। उपपा-सा पै० [सं०] दे॰ 'उपपातक' (को० ।