पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/९०

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उपना ६०४ उपनृप । उपना--क्रि० अ० [म० उत्पन्न, प्रा० उप्पण्ण] १ उत्पन्न होना) उपनियम--समा पु० [सं०] १. नियम प्रतगत नेत्रपा छोटा उ०--कुधर सहित चढ़ौ विसिप, ३गि पठयो सुनि हरि हिय नियम । २ गौण नियम (०]। गुरवे गुढ़ उपयो है।--नुन सी ग्र०, पृ० ३९८ 1 २ जन्म ग्रहण उपनिविष्ट---वि० [२०] सभा उपनिवेश] दूगर म्यान ३ प्रकर करना 1 जनमना ।। वसा झुप्रा । । उपनागरिका--संज्ञा स्त्री० [सं०] अलंकार में वृति अनुप्राय का एक उपनिविष्ट (सन्य)--वि० [स०] मुशिशिन पर पनुनी (ग-)। भेद जिममे कान को मधुर लगनेवाले वर्ण अाते हैं। इसमें विशेप----कौटिल्य निद्रा हैं कि उपनिविष्ट नया माप्त (एक ट ठ ४ ढ को छोड़ 'क' से लेकर म तक सय वर्ण, तथा ही ऋगे की लड़ाई जाननेवाली) नैना में पनि पिट में हैं। अनुसार रहित अक्षर रह सकते हैं। समास इसमें पा तो राम है, श्योंकि उपनिविष्ट से भिन्न भिन्न स्थानों में नि । न हो और हो भी तो छोटे छोटे । जैसे--कजन, वजन, गजन अाता है और वह छावनी के प्रfifरक्त भी 71 हर हैं अलि अजन हूँ मन रजनहारे ।- (शब्द॰) । सकती है। उपनाना - क्रि० म० [हिं० ‘उपना का सक० प] उत्पादने उपनिवेश-सया पुं० [ग] [वि॰ उपनिवेशिन, उपनिष्टि] १ एक करना । पैदा करना। स्यान से दूसरे स्थान पर जा बनना। २, अन्य स्थान ने माए हुए लोगो की वस्ती। एक देश के लोगों को दूरे दे। उपनाम--संज्ञा पुं० [सं० उपनमिन्] १ दूसरा नाम । प्रचलित ना। | २ पदवी । तल्लुस । उपाधि । में दी। कालोडी (१०) ।। उच्/निवेशित-वि० (१०) दूसरे स्थान से माफ बगा उप । उपनाय-सज्ञा पुं० [म०] ६० 'उपनयन (ो०] । उपनिवेशो-वि० [सं० उपनिवेदिन] १ उपनिवेश में नि हुने उपनायक-सज्ञा पुं० [सं०] नाटको मे प्रधान नायक का साथी या सहकारी । योला । २ विदेश में बन जाने । ३ बगानेवाला (चै०] उपनायन- सज्ञा पु० [१०] ३० 'उपनयन' । उपनिपद्-सपा नौ० [न०] १ पास वैठना । २ 1ि7 का उपनापिका–सज्ञा ‘नी० [ग०] नाटक में अमित नायिका की प्रधान प्राप्ति के लिये गुरु के पास पैठना। ३ पद की शाम के | सपी और सहायिका (को०]। ब्राह्मण में प्रतिम भाग जिसमें प्रमुख पर्यन् प्रामा, परमात्मा अादि का निरूपण रता है। उपनासिक----सज्ञा पुं० [सं०] नामिका के पाक की 'भाग । ना ।। विशेष----कोई कोई उपनिदै मताप में भी मिलती हैं, ३१ | निकटवर्ती भाग (को०] । ईश, जो शुक्ल यजुर्वेद का ०१uqय माना जाता उपनाह--सज्ञा पुं० [मं०] १ सितार की खूटी जिसमें तार बंधे रहते हैं । २ फोडे या घाव पर लगाने का लैप। मरहम । ३ है। प्रधान जगनिपर्दे में --*ग या वा जनप, केन या अाँख का एक रोग । बिलनी। गुहाजनी। ४ गठरी । तयकार, कठ, प्रश्न, मडक, गाय, तैत्तिरीय, ऐतरेय, वडे (को॰) । छादोग्य, बृहदारण्य । इनके अतिरिक्त कोपीतकी, मंत्राणी, उपनाहन-सा पुं० [सं०] १ मरहम या लेप लगाना। ३ पलस्तर मोर श्वेताश्वतर भी अपं मानी जाती हैं । उपनिषदों को | करना [को॰] । सन्या कोई १८, कोई, ३४, को ५२ पौर कोई १०८ तक उपनिक्षेप-- j० [म०] १ धरोहर । २ घुली धरोहर । ३ मानते हैं पर इनमें से बहुत सी बहुत पीछे की बनी हुई हैं। मुहरवद धरोहर [को०)। ४ वेदव्रत ब्रह्मचारी के ४० तुम्कारों में से एक को गोदान अर्यात केशात सरकार के पहले होता है । ५ निर्जन स्थान । उपनिधाता--वि० [मु उपनिधातृ] धरोहर रवानेवाला [ये०] । ५. धर्म। उपनिधान--सज्ञा पुं० [सं०] धरोहर रपना (मे०] । उपनिषादी-वि० [सं० उपनिषादिन्] गुरु के पास रहनेगा। 13 उपनिवयिक–वि० [न०] दे० 'उपनिधाता' [को॰] । | वशीकृत । वश में लाया हुप्रा [२] । उपनिधि—मज्ञा स्त्री० [सं०] [वि० श्रोपनिधिक] घरोहर । अमानत । उपनिष्कर-सम्रा पुं० [सं०] राजप।। सडक (को०] । उपनिधिभोक्ता-सच्चा पु० [सं० उपनिधि भोवतृ] वह मनुष्य जिसने उपनिष्क्रमण-सृप पुं० [म०] १ बाहर जाना। २ एक सस्कार दूमरे की रखी धरोहर को स्वयं प्रयोग किया हो। जिसमें नवजात शिशु को पहले पहले घर के भीतर से बाहर विशेप-चद्रगुप्त के समय में ऐसे लोग देश काल के अनुसार | निकालते हैं । ३ राजमार्ग । प्रधान सडक (०] । उसका वदना या 'भगवेतन देने के लिये वाघ्य किए जाते थे। उपनिहित-वि० [सं०] उपधान या धरोहर के रूप में रमा उपनिपात–सुद्धा पुं० [सं०] कौटिल्य मत से राजा, चौर, अग मौरा किये। पानी अादि से भाल का खराब या नष्ट होना। वि० दे० 'दीप'। उपनीत--वि० [सं०] १ लाया हुआ । २ जिसका उपनयन सफार उपनिपातन-संज्ञा पुं० [सं०] १ सहसा घट जाना । १ सहसा हो गया हो । उपनोति--सम बी० [सं०] दे० 'उपनयन' (को०)। माक्रमण करना (को०)। उपनन्न-वि० [सं०] वायु द्वारा धीरे धीरे प्रेरित । हवा से धीरे धीरे उपनिबंधक--सज्ञा पुं० [सं० उपनिबन्धक] निबंधक का सहायक । | ले जाया गया [को०] । सहायक निवधक (को०] । उपनृत्य-सा पुं० [सं०] नृत्यशाना । नाचघर (फो०] ।