पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/८९

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व न ६०३ उपनयन विशेप-प्रधान धातु के समान उपधातु भी सात गिनाई गई उपमान-सज्ञा पुं॰ [सं०] १. गोठ । साँस लेना । मुंह से हैं—सोनामक्खी, पामाखी, तूतिया, काँसा, मुर्दासुख, सिंदूर, फूकना [को०] ।। शिलाजतु या गेरू (भावप्रकाश) पर किसी किसी के मत से उपध्मानी--वि० [सं० उपध्मानिन्] हेवा करनेवाला । जोर से सात उपधातु ये हैं—सोनामाखी, नीलायोया, हुरताल, सुरमा, फेंकनेवाला [को०] । अवरक, मैनसिल और स्वपरिया। उपध्मानीय-सज्ञा [सं०] ‘प' वर्ग अर्थात् , फ्, व्, भ, म्, के ३ शरीर के रछ, रक्त आदि सात धातु से बने हुए दूध, चरबी, पहले आनेवाला महाप्राण विसर्ग जिसका उच्चारण ओठ से | पसीना आदि पदार्य । होता है कि । 1वान—सुज्ञा पुं० [सं०] [वि॰ उपहित] १. ऊपर रखनी या विशेप-- और 'फ' के पहले आनेवाला विसर्ग महाप्राण ठहराना। २ वह जिसपर कोई वस्तु रखी जाये। सहारे हो जाता है, और बू, मु, म्, के पहले ग्रानेबाला विसर्ग की चीज। रिफ' या 'प्रोत्व' में बदल जाता है ।। यौ॰—पादोपधान । उपध्वस्त-वि० [सं०] १ नष्ट या वरवाद किया हुआ । २ मिश्रित । ३ तकिया गया। वालिश । उ०—-विविध वसन उपधान तुराई, घुला मिला [को०] । छीर फेन मम विसद नुहाई 1—मानस, २ । ६१ ! ४ मत्र जो उपनद—सज्ञा पुं० (सं० उपनन्द) १ ब्रज के अधिकारी नद के छोटे यज्ञ की ईंट रखते समय पढ़ा जाता है । ५ विशेपता । ६. भाई । २. वसुदेव के एक पुत्र । ३ गर्गसंहिता के अनुसार वह प्रणय } प्रेम ।। जिसके पास पाँच लाख गाएँ हो । --संज्ञा पुं० [सं०] १ बालिश । तकिया 1 शिरोपधान । २ । उपनक्षत्र--संज्ञा पुं० [सं०]सहायता नक्षत्र । गौड नक्षत्र या तारा [को०]! एक व्रत 1 ३ प्रेम । ४. विप चै०] । उपनख-सज्ञा पुं० [सं०] अँगुली के नखो मे होनेवाला एक प्रकार का ५५ –सज्ञा स्त्री० [सं०] १. पादपीठ पर रखने की चौकी । २. | रोग । गलका [को०] । तकिया । ३ गद्दा [को०]। उपनगर-संज्ञा पुं० [सं०] नगर का वाह भाग नगर के ग्रामपास उपचनीय-वि० [सं०] पाम रखने योग्य (को०] । बसा हुआ हिस्सा [को॰] । उपचानीय–अज्ञा पुं० तकिया । उपवई (को॰] । उपनत-वि० [सं०] १ पास अया हुअा। २.पास लाया हुअा। ३. उपवायी वि० [स० उपधायिन्] १ तकिया की भाँति प्रयुक्त । २ । प्राप्त । ४. उपस्यित । ५ विनत । नम्र। ६ (शरणागत के तकियों का व्यवहार करनेवा कौ०] ।। लिये) आश्रित) ७. पास का या सनिकट का (समय या उपवारण--सूज्ञा पुं० [सं०] १ ऊपर रखी हुई किसी वस्तु को लगी स्थान) (को०)। अादि से खीचना । २ चितन 1 विमर्श (को०)। उपनति-सज्ञा स्त्री० [सं०] १. समीप अनि । २ नमन । नमस्कार। उपधावन--संज्ञा पुं० [सं०] १ अनुगमन । २. विचारण । चितन । ३ प्रणय को। ३ भक्ति । पूजा । अनुगामी । अनुचर [को०] ।। उपनद्ध–वि० [सं०] बँधा हुआ । २ नधा हुआ । नद्ध । उपधि----संज्ञा पुं॰ [सं॰] [वि० पधिक] १ जानबूझकर और कारपनना(G)-हिं० To To1 उपनना -क्रि० अ० [सं०] पैदा होना । उत्पन्न होना । उपज़ना। और कहना । छल । कपट । २. चक्र या पहिया (को०) । ३. उ०—-चैन वन बृच्छ न चदन होई, तन तन विरह न उपने (वौद्ध मत के अनुसार) अावार या नींव (को॰) । सोई !-जायसी (शब्द॰) । उपघक–वि० सं०) १ घतं । विश्वात्तवाती । २ झिडकी और उपनय--संज्ञा पुं० [सं०] १ समीप ले जाना। २ वालक को गुरु धूर्तता से काम लेनेवाला [को०]।। के पास ले जाना । ३. उपनयन सस्कार। ४, न्याय में वाक्य उपधियुक्त–सज्ञा पुं० [सं०] कौटिल्य के अनुसार वह माल जो असली के चौथे अवयव का नाम । कोई उदाहरण लेकर उस या खालिम न हो । मिलावटी माल । उदाहरण के धर्म को फिर उपहार रूप से साध्य में घटाना । उपवूपित--वि० [सं०] १ धूप के धुएँ मे सुवासित । २. मृत्यु के जैसे,--उत्पत्ति धर्मवाले अनित्य हैं, जैसे, घट (उत्पत्ति निकट पहुचा हुआ। ३ कठिन और असह्य पीड़ा से पीडित धर्मवाला होने से) अनित्य है, वैसे ही शब्द भी अनित्य हैं। [को०] । (उपनय)'। उपनय वाक्य के चिह्न ‘वैसे ही', 'उसी प्रकार उपधुमित योग-सज्ञा पु० [सं०) फलित ज्योतिष में वह योग जिसमे ' ' ग्रादि शब्द हैं। 'उपनय’ को ‘उपनीति' भी कहते हैं। यात्रा तथा अौर एम कर्मों का निषेध है, जैसे प्रत्येक दिन का उपनयन संज्ञा पु० [सं०] [वि० उपनीत,उपनेता, उपनेतव्य] १. पहला पड़र ईशान कोण की यात्रा के लिये, दूसरा पूर्व के निकट लाना। पास ले जाना। २ यज्ञोपवीत संस्कार । लिये, तीसरा अग्निकोण के लिये, चौथा दक्षिण के लिये | व्रतवघ । जनेऊ } । | उपघूमित है। ' उपनहन-सज्ञा पुं० [सं०] १ वह कपडा जिम्मे कोई चीज वैवी हो। उपधृति-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ किरण । २. ग्रहण । पकड़ना [को॰] । २, एक दुसरे को बंधनयुक्त करना [को०] । २-१० | - 1