पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/८७

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उपजोविका उपदंशो ६०१ उपज़ीविका--सुज्ञा स्त्री० [सं०] १ जीविका या साधन । उपजीवन । । और उठना । उ०—दोउ फीज निजर दिठात मिल्लि, उपटू २. गेजी [को०)। सिंधु बनु, लहरि जल्लि —पृ० रा०, १॥ ४४६ । | उपजीवी- वि० [सं० उपजीविन्] [स्त्री० उपजीविनी] दूसरे के उपडना- क्रि० अ० [सं० उत्पाटन प्रा० उप्पाडन] १ उखड़ ना । आधार पर रहनेवाला । दूसरे के सहारे पर गुजर । २ उपटना। अकित होना । निशान पद्धना। उ०----देखा कि करनेवाला ! उन चरण चिह्नों के पास एक नारी के पांव भी उपड़े हुए उपजीव्य'- वि० [स०] १ जीविकी या रोजी देनेवाला । २ सग्क्षण है ।—लल्लू ० (शब्द॰) । | देनेवाला [को०)। उपदोकन-सज्ञा पुं० [स०] उपहार । उ०---सफल को उपठौकन ग्रादि उपजीव्य-नज्ञा पु० १. आश्रयदाता। सरक्षक ! २ अावश्यक | ले, उचित है चलना मयुरापुरी ।--ग्रि० प्र० १२ ।। वस्तुएँ प्राप्त करने का साधन । ३ प्राथय । ग्राघार [को०)। उपडवाना-हिं० म० [हिं० 'उपडना' का प्रे० रूप] उडवाना। उपजुष्ट-वि० [सं०] १ -प्राप्त । गृहीत । २ सेवित कि०] । उत्पादन कराना [को०] । उपजोप--संज्ञा पुं० [ज०] १ इच्छा । २ प्रेम । ३ उपभोग। ४. उपडान उपड़ाना--क्रि० स० [हिं० 'उपद्धना' क्रिया का १० रूप] ३० | सेवन को । 'उपडवाना' को]।। उपोषण?--सज्ञा पुं॰ [सं॰] दे॰ 'उपजोप' [को॰] । उपतपन--वि० [म० उप+तपन] कष्टकारक । दु ख देनेवाला उपजोपण-क्रि० वि० [सं०] १ म्वेच्छया । इच्छानुसार । २ हप- झिो०] । पूर्वक ।३ चुपचाप (को०] । उपतप्न--वि॰ [स०] १ ब्यथिन । दुखी । २ जना हुम्रा यः कुना उपज्ञा- सुङ्गा सी० न०] १ अात्मोपार्जित ज्ञान। सहज ज्ञान । हुया । ३ रोगी [को०] । प्रकृतिदत्त प्रतिभा ! २ अाविष्कार । ३ नए सिरे से किसी मी उपत्प्ता --वि० [सं० उपतप्त] १. व या व्यथा पहुँचानेवा।। नई वस्तु का निर्माण (को०] । २ जलानेवाला (को॰) । उपज्ञात- वि० [सं०] १ विना किसी दूसरे के बताए स्वत ज्ञात । उपतप्ता--सज्ञा पुं० १ असाधारण गर्मी या उप्णता । २ गर्मी या उनला अपने अप जाना हुआ। २ जिसे पहले जाना नहीं गया। नए | जलन का कारण । ३ एक प्रकार का रोग [को०] । तिरे से निमित् । अाविष्कृत [को०)। उपतल्प-सुज्ञा पुं० [सं०] १ मकान का ऊपरी तल्ला । 'भवन की पटन-सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'उबटन' । छत पर बना हुआ कक्ष वा कमर । २ बैठने की चौकी (को०] । उपटन-सज्ञा पुं० [सं० उपतन = ऊपर उठना] अक या चिह्न जाँ उपताप--स० पू० [सं०] १ म। उप्णता। ऊमस । २ व्यया । | आघात पहुंचाने, दबाने या लिखने से पड जाय । निशान । पीडा । मनस्ताप । ३ दु-ग्यि । दुर्दैव । ४ बीमारी। अाघात। || साँट । चौट । ५ शीघ्रता। त्वरा [को०] । उपटना---क्रि० अ० [सं० उत्पतन = ऊपर उठना] १ आघात, दाव । उपतापक–वि० [स०] १ जलानेवाला । दुखद । ३ कष्टसहिष्णु या लिखने का चिह्न पडना । निशान पड़ना । साँट पड़ना। [को०] । जैसे, (क) इस स्याही से लिखे अक्षर उपटे नहीं हैं । (ख), उपतापन--संज्ञा पुं० [सं०] १ कप्ट पहुचाना। २ ताप देना । उसने ऐसा तमाचा मारा कि गाल पर उँगलियों ( उँगलियों तपाने की क्रिया (को०] । के चिन) उपट अईि । २ उखड़ना । (ग) मनमोहन की उपतापी--वि० [स उपतापिन्] दे॰ 'उपतापक' [फो०] । वतियों में छटी उटी यह वैनी दिखा परी है ---पद्माकर उपहारक-वि० [म०] सीमा या नट को लांघकर वहता हाकिो}-1 ग्र०, पृ० १०१ ।। उपतिप्यु-मझा पु०[स]१ ग्राश्नेपः नक्षत्र । २ पुनर्वसु नक्षत्र को। उपटा'-सृज्ञा पुं॰ [स० उत्पतन = ऊपर आना] १ पानी को उपतुला--संज्ञा स्त्री॰ [न०] वास्तु विद्या (घर वनाना) में खभे के वाद । करार पर पानी का चढ ना ! २ ठोकर । नौ बराबर भागों में तीसरा माग । उपटा-क्रि० स० [स० उत्पादन] उखड़वाना । उखाडेना। उ०-- उपत्यका--संज्ञा चौ० [सं०] पर्वत के पास की भूमि । नाई। द्विरद को दत उपाय तुम लेत हौ उहै बल आज काहे न उपदंश---मज्ञा पुं० [सं०] १ गरमी । ग्रासशक। फिरग रोग । २. सैमा २—सूर (शब्द॰) । | मद्य के ऊपर सूचनेवाली वस्तु । गजक । चाट । उ०--- विशेप-यह प्रयोग उन प्रयोगों में से हैं जहाँ सर्कमक रूप अर्क राधिका हरि अतिथि तुम्हारे, अधर मुधा उपदश सीक शुचि, मंक के स्थान पर लाया जाता है। विधु-रन-मुखवास मनारे ।—सूर (शब्द०)। ३. वैद्यक के उपटा --क्रि० स० [सं० उद्वर्तन, प्रा० उघद्दण] उवटन लगवाना। अनुसार एक प्रकार का रोग जिसमे पूरुप की लिगेंद्रिय पर उपटारना--क्रि० स० [सं० उत्पटिन] उच्चाटन करना। नाखन या दात नागने के कारण घाव हो जाता है । न । दृटाना। उ०—-कोकिल हरि को बोल सुनाव, उपदशित—वि० [सं०] प्रसग । अवतरण । मप्रसग कही गई (वात) मधुवन तें उपटारि श्याम को यह ब्रज ले कर आत्र ।-नूर | ] । (शब्द॰) । उपदशी-वि० [ उपर्दाशन] उपदश रोग का रोगी । जिसे उपट्टना--क्रि० अ० [स० उत्पतन] ऊपर की ओर चढ़ना ! ऊपर की उपदेश हुआ हो (को०] । ना में