पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/८३

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उपकारक उपक्लेश (शब्द०)। ३ समारभ । तैयारी (को०) ! ४. प्राभूषण । अल- उपकृति-संज्ञा श्री० [स०] उपकार । मलाई। कार (को०) १५. पर्व या उत्सव के अवसर पर द्वारशोभा के लिये उपकृती-वि० [सं० उपतिन्] उपहारी। दूसरे का हित करने- बदनवार बनाना, विशेषतया फूला और मालानो द्वारा (को०)। वाला [को० । उपकारक-वि०नि०मात्री उपसारिका] १. उपकार करनेवाला। उपक्रता-वि० [सं० उपक्रन्] शुरू करनेवाला । ग्रारभ करनेवाला भलाई करनेवाला । २. लाभप्रद (को०)। [को०)। उपक्रम--सज्ञा पु० [सं०] १ कारिन की पहली अवस्था । प्रथमा- उपकारिका'-वि० [सं०] उपकार करनेवाली। उपकारिकार--सज्ञा लो०१ राज भवन । २ खेमा। तबू । पटगृह । रम । अनुष्ठान । उठान । २. कित्ती कार्य को प्रारम करने के पहले का आयोजन। योजना । तपारी। शिविर | ३ उपकार करनेवाली स्त्री। ४. मिष्टान्न विशेषांको। क्रि० प्र०—करना . उपकारिता-सज्ञा स्त्री० [१०] १ मलाई । २. प्रयोजन की सिद्धि । उपकारी'-वि० [स० उपकारिन] [बी० उपकारिणी] १. उपकार ३. भूमिका । तमहोद । क्रि० प्र०-बांधना। करनेवाला। भलाई करनेवाला । २. लाभ पहुंचानेवाला । ४ चिकित्सा । इलाज । ५. समीप जाना (को०)। ६ प्रस्तावना । फायदा पहुंचानेगला । उ०-ससि सपन्न सोह महि कसी। उपकारी के सपति जैसी-मानस, ४१५॥ पूर्ववचन (को०)। ७ शुयूपा (को०)। ८ सत्य का परीक्षण या उपकारो'--सज्ञा ली [स०] दे० 'उपकारिका' [को०] । सचाई की जांच (को०)। ६ वह सस्कार जो बेदारभ के उपकार्य-वि० [सं०] [वि० स्त्री० उपकार्या] उपकार किए जाने पूर्व किया जाता था किो०] । उपक्रमण--सज्ञा पु० [सं०] [स्त्री० उपकारणी] १. प्रारम । योग्य । जिसके साथ उपकार करना उचित हो । अनुष्ठान । २. ग्रायोजन । तवारी ३. भूमिका। तमहीद । उपकार्या-वि० [स० उप-कार्या] जिस (स्त्री) के साथ उपकार करना ४. चिकित्सा । इलाज (को०)। ५ समीप जाना (को०)। उचित हो। उपक्रमणिका--मज्ञा ली० [स०] १ किसी पुरतक के आदि मै दी हुई उपकार्या- सज्ञा श्री० १. खेमा । तबू । पटगृह । २ राजभवन । शाही विपयसूची। किती पुस्तक के विपयो का सक्षिप्त विवरण। २ महल [को०] 1 एक पुस्तक जिसमे वेद के मंत्र और सूक्तो के ऋपि, छद और उपकिरण-ज्ञा पुं० [स०] १ विकीर्ण करना । फैलाना । छितरा देवता लिखे रहते हैं। देना । २ फेंक देना । ३ ढकना । ४ गाड़ना [को०] । उपक्रमणीय-वि० [सं०] १. पास जाने योग्य । २ ग्रारम करने उपकिरण-० वि० किरणों के पास (को॰) । योग्य । ३. रोगी के परिचारक से संबधित । प्रौपधि विषयक उपकोण-वि० [सं०] १ ढका हुआ। २ फैला हुआ। विकीर्ण (को०] । काम किो०] । उपकु चि-सज्ञा [म. उपकुञ्चि] दे० 'उपकुचिका' [को०] उपक्रमिता--वि० [सं० उपक्रमित] उपक्रम करनेवाना। १ प्रारम उपकु चिका-संज्ञा स्त्री॰ [स० उपकुञ्चिका] १. छोटी इलायची। २ करनेवाला । २ चिकित्सा करनेवाला । पात जानेवाला। ३ कालाजीरा को । सत्यता की परख या मालिकता की जांच करनेवाला 1 ५. उपकुर्वाण'--सज्ञा पुं० [स०] ब्रह्मचारियो के दो भेदो मे से एक । वह विहित सस्कार करनेवाला [को०] ! ब्रह्मचारी जो स्वाध्याय पूरा कर गुरु दक्षिणा देकर गृहस्थ उपकात–वि० [सं० उपकान्त] १ शुरू किया हुअा। प्रारब्ध । २ प्राथम मे प्रवेश करे, अर्थात यावज्जीवन ब्रह्मचारी न रहे । जिसके पास जाया जा चुका है । ३. दया किया हुया । चिकि- उपकुर्वाण- वि० उपकार करनेवाला [को०] । त्सित । [को०] । उपकुल्या-तना ली [स०] १. खाई। परिखा। २ नहर । ३. उपनिया-संज्ञा स्त्री॰ [स०] उपकार ।हित । मलाई (को०] । पिप्पली या पीपरि फो। उपक्रीडा-सज्ञा ली० [सं०] खेल का मैदान । खेलने का स्थान [को०] । उपकुश-तज्ञा पु० [सं०] मसूडो का एक रोग, जिममें दांत हिलने उपक्रोत-वि० [स०] पोप्य । पालन पोपण किया हुवा (पुत्र)। उपक्रष्ट --वि० [मं०] १ निदित । २ झिडकी खाया हुमा । फटकारा उपकूजित--वि० [स०] १ प्रतिध्वनित । २. प्रतिध्वनिपूर्ण (को०] ! हुमा [को०] 1 उपकप-सज्ञा पुं० [स०] छोटा कुबा । वह कुप्रा जो इंट पत्थर से नही उपक्रष्ट-संज्ञा पु० [सं०] १ एक नीव जाति । २ वढदै [को०] । बंधा होता, कच्चा हो रहता है । पोडा (दश०) [को०] । उपकाश-सज्ञा पु० [१०] १. निंदा । २. मिडकी [को०] ! उपकन--सज्ञा प० [स०] १ किनारा । तट ! २ तट के पास की उपक्रोशन-मज्ञा पुं० [सं०] १ निंदा करना । २ झिडकना । कामना उपक्रोशत-मता fo भूमि। तीर के पास को जमीन । उपकूल-क्रि० वि० तट पर स्थित । तट के पास किो॰] । उपक्रोप्टा'-वि० [स० उपकोष निंदरू। दोप लगानेवाना [को। उपकृत--वि० स०] १ जितके साय उपहार किया गया हो। जिसके उपक्रोप्टा-सज्ञा पु० गया । गर्दभ [फोन। साय भलाई की गई हो। उपकारप्राप्त २ । कृतज्ञ । एहसान- उपक्लिन्न-वि० [म०] १ भीगा हुप्रा । गीला।२ नद्रा हा किोन मद। उपक्लेप-संज्ञा पुं० [सं०] १. बौद्ध धर्मानुमार लघु कलेश । हनका उपकूलित , उनमे मद मद पीडक रोग, जिसमें दांत