पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/८०

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उन्नोसव ५६४ उन्माद कल से कुछ उन्नोस अवश्य है । (मात्रा के सवध में इस यो०-उन्मत्त पंचक = धतूरा, बकुची, भाँग, जावित्री और खसु- मुहावरे का प्रयोग केवल देशा सूचित करने के लिये होता खास इन पाँच मादक द्रव्यो का समुच्चय । उन्मत्तरपारा, है, जिसमे गुण का कुछ भाव आ जाता है ।) उन्नीस बीस गधक, सोठ, मिर्च और पीपल के सयोग से बनी हुई एक होना=(१) मात्रा में कुछ कम होना । थोडा घटना । जैसे, रसोपध जिसे नाक में नात देने से सन्निपात दूर होता है । कहिए इस दवा से अापका दर्द कुछ उन्नीस वीस है। (मात्रा उन्मत्तक–वि० [स०] उन्मत्त । पागल [को०] । के सुवध में इस मुहावरे का प्रयोग केवल दशा सूचित करने उन्मत्तकीति–सज्ञा पुं० [सं०] शिव । महादेव (को०] । के लिये होता है जिसमे गुण का कुछ भाव झा जाता है) उन्मत्तलग--वि० [स० उन्मत्तलिङ्गन् उन्मत होन या पागलपन (२) गुण में घटकर होना । जैसे, यह कपडा उससे किसी तरह उन्नीस नहीं है । (२) अापत्ति प्राना ! बुरी घटनी उन्मत्तवेश-सज्ञा स० [सं०] शिव । रुद्र [को०] । का होना । ऐसी वै । वात न होना ! भला बुरा होना । जैसे, उन्मत्तता-संज्ञा स्त्री० [सं०] मतवालापन । पागलपन । क्यो पराए लड़के को अपने घर रखते हो कुछ उन्नीस बीस उन्मथन--सज्ञा पु०[स०] १ मथना । विलोना] २ क्षु मत करना । हो जाय तो मुश्किल हो । (दो बस्तुमो का परस्पर) ३ हिलाना । ४, मारण। ५ फेंकना [को॰] । उन्नीस वीस होना = एक का दूसरे से कुछ अच्छा होना । उन्मथित---वि० [सं०] १ मया हुआ । २ क्षुभित । ३ मिलाया जैसे मैंने दोनो धोतियाँ देखी हैं। कुछ उन्नीस बीम जरूर । हैं। उन्नीस बीस का फर्क = वे द्वैत ही योङ। अतर। उन्मद-वि० [सं०]१ पागल करनेवाला । उन्मत्त बनानेवाला (को०] । उन्नीसवाँ--वि० [हिं० उ:नीत +वाँ (प्र०)] गिनती मे उन्नीस के उन्मद--सज्ञा पुं० १ उन्माद । पागलपन । २ नशा (j । | स्थान पर पड़नेवाला । अठारहवें के बाद का । उन्मदन-सज्ञा पुं० [सं०] कामगीड़ित । प्रेम मे मत्त । गभीर प्रेम में उन्नेता'-सच्चा पुं० [सं०] यज्ञ करनेवाने सोलह शृत्विजों में से अपने को भूला हुप्रा [वै । चौदहवाँ, जो तधार सोमरस को ग्रहों या पात्रा में उन्मदिडण--वि० [सं०1१ मा । मतवाला। २ मद व माती हुआ। ढालता है । (हाथी) [को॰] । उन्नेता--कि० १ उत्कर्ष या अभ्युदय करनेवाला या लानेवाला । २ उन्मन--वि० [सं०] अन मना । उदास । प्रन्यमनस्क । ऊपर ले जानेवाला [को॰] । उन्नैना--क्रि० अ० [सं० उन्नयन] झुकना। नत होना। उ०—- उन्मनस्क- वि० [सं०] १ खोए हुए मनवाला । अन्य मनमक । २ व्याकुल । व्य५ । ३ लानावित । ४ शोकमग्न (को॰] । लागि सुहाई हरफारयो । उन्नै रही केरा की बौरी ।-- उन्मना--वि० सी० [सं० उन्मनस्] दे॰ 'उन्मन' । उ०—शकाएँ जायसी (शब्द॰) । थी विकल करत काँपता था कलेजा, खिन्ना दींना परम उन्मयो-सज्ञा पुं० [सं० उन्मन्य] कान का एक रोग जिसमें कान की मलिना उन्मना राधिका यी--प्रिय ०, पृ० ५१ ।। लवें सूज अाती हैं और उनमें खाज होती है। यह रोग कान के लव के येद को आपण अादि पहनने के निमित्त वहुत उन्मनी--संज्ञा स्त्री० [स०] खेचरी, भूचरी अादि हठयोग की पांच मुद्राओं में से एक । इसमें दृष्टि को नाक की नोक पर गडाते बढाने से होता है। | हैं और माँ को उपर चढाते हैं । उन्मथक'--वि० [सं० उन्मन्यक] १ मयनेवाला । २. गति देने- | उन्मयूख-वि० [सं०] चमकता हुआ । प्रकाशवान् । तेजस्वी [को०] बाला कौ० ।। उन्मर्द-सज्ञा पुं॰ [सं०] दे॰ 'उन्मर्दन' [को० । उन्मथक-सज्ञा पुं० कान का फूलना [को०] । उन्मर्दन--सज्ञा पुं० [सं०] १. मलना । २ रगड़ना । ३. एक सुगधित उन्मथक-वि० १ मयन करनेवाला । २. गति देनेवाला (को॰] । उन्मकर-सुज्ञा पुं० [सं०] मकर की प्राकृतिवाला कान का एक . द्रव्य जिसे शरीर में मलते हैं । ४ वायु का शुद्धीकरण [को०] । उन्माद—स० पुं० [सं० उद् +पद्, 'चित दिप्रयी'] [वि० उन्नादक, भूपण (को० । । उन्मादी] १ पागलपन । वावनापन । विक्षिप्तता । चित्त- उन्मज्जक'--सज्ञा पुं० [सं० [ एक प्रकार का तपस्वी [को०] । उन्मज्जक-वि० [सं०] पानी में डुबकी लगानेवाला । पानी से बाहर विभ्रम। वह रोग जिसमे मन और बुद्धि का कार्यक्रम बिगड जाता है। । आनेवाला (वे] । विशंप–वैद्यक के रनुसार भाँग, धतूरा अदि मादक द्रव्य तथा उन्मुज्जन—संज्ञा पुं० [सं०] [वि० उमज्जनीय, उन्मज्जित] मज्जन प्रकृतिविद्ध पदार्थों के सेवन तथा मय, हर्ष, शोक, अादि की या डूबने का उल्टा । निकलना । उठना । अधिकता से मन वातादि दोपयुक्त हो जाता है और उसकी उन्मत्त-वि० [स०] [सज्ञा उन्मत्तता] १ मतवाला । मदाघ । २ धारणा शक्ति जाती रहती है । वुद्वि ठिकाने न रहना, शरीर जो अापे में न हो । ३ पागल 1 बावला । सिडी । विक्षिप्त । का वल घटना, दृष्टि स्थिर न रहना प्रादि उन्माद के पूर्वरूप यौ०--उपग्रलयत, उन्म १ प्रलाप = पागलों की बातचीत । कहे गए हैं। उन्माद के छह मुख्य भेद माने गए हैं-बातो- अडपड और निरर्थक वचन । न्माद, पिोन्माद, कफी-माद, सन्निपातोन्माद, शो कोन्माद चौर उन्मत्त-सज्ञा पुं० १ घतृ । २ मुचकुद का पेड़ । विपोन्माद ।