पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/७९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उन्नीस ५६३ | उनहारि अंगन में यौवन सुभग लसूत कुसुम उनहार --शकत ना, उन्नतिशोल--वि० [सं०] उन्नति के लिये प्रयत्न करनेवाला । जिसके | उन्नति करने की पूरी पूरी आशा हो को] । पृ० १५५। उहारि- सुज्ञा स्त्री० [सं० अनुहार] समानता । सादृश्य । एक- उन्नतोदर--संज्ञा पुं० [सं०] १ चाप या वृत्तखड के ऊपर का तल । २ वह पदार्य जिसका वृत्तखडे ऊपर की ओर उठा हुआ हो । पता । उ०—(क) अपनी स्त्री की उनहारि सो हरिदास को जैसे, उन्नतोदर शीशा ।। पहिचाने 1--दो सौ वावृन, मा० १, पृष्ठ २७० । (ख) गिरा उन्नद्ध--- वि० [स०] १. खूव वेघा हुअा ! २ फूला हुअा । ३. वढ़ा गग उनहारि काव्य रचना प्रेमकिर |--थीभक्ति० पृ० । हुआ। ४. अभिमानी । ५. अत्यंत [को॰] । ५५५ । (ग) रचक कहि वलि पिय उनहारी ।---नर्द० ग्र०, उन्नवी-सुज्ञा पु० [सं०] सकीर्ण राग का एक भेद । पृ० १२८ ।। उनमन--संज्ञा पु० [सं०] १ उठाने का कार्य। उठाना । ऊपर ले उनाना(j)-क्रि० म० [सं० अव+नम, ग्रा० ओणन = नमाना, अवनत जाना । ३ उन्नयन । उत्कर्ष । अभ्युदय [को०] । करना] १ कुछ नि । २. लगाना । मुहा०—कान उनाना = सुनने के लिये कान लगाना । उ०—पामा उन्नमित वि० [सं०]१ उत्कर्पित । उन्नति किया हुआ । २ वढाया हुग्रा। वधित कि॰] । सारि कुअर सव वेलहि श्रीनद गत उनाहि, चैन चाव तस देखा उन्नम्र-वि० [सं०] उठा हुआ । ऊँचा। उच्च [को॰] । जनु गढ़ छेका नाहिं—जायसी (शब्द॰) । उन्नयन--वि० [सं०] १ ॐखें ऊपर को करनेवाला 1 २ उन्नति- ३ सुनना । ध्यान देना 1 उ०---]ख करोरहि वस्तु विकाई, शाल । नेतृत्व करने वाला कि०] ।। सहसन केर न कोउ उनाई ।--जीवी (शब्द॰) । ४ प्राज्ञा उन्नस–वि० [सं०] ऊँची नासिकावाला । ऊँची नाकवाला [को०] । मानना ! कहने पर कोई काम करना । उन्नाद--संज्ञा पुं० [सं०] १ उत्कर्ष । विकासे । उन्नति । २ ऊपर उनाना--क्रि० स० [हिं० उतरता] १ वईना । २ खिमकाना। ले जाना । उठाना । ३ जोर का नाद या व्द [को०] । ३ उठाना ! उन्नहन-वि० [स०] निर्वाध । अवाघ [को॰] । उनासी -वि० [सं० वाशीती] दे० 'उन्नासी । उन्नाव--सज्ञा पुं० [अ०] एक प्रकार का बर जो अफगानिस्तान से उनि--सर्व० [हिं०] दे० 'उन' । उ० --नहि निकमत लाई बारा, | मुखा हुअा अाता । और हकीम नुस्खो में पड़ता है । उनि अावत ही फुफकारा -दर० ग्र०, भा० १, पृ० १४२। उन्नावी–वि० [अ० उन्नाव+हि० ई (प्रत्य॰)] १ उन्नाव के रग उनिहार -वि० [सं० अनुहार]० 'उनहार'। उ०-इनमें कृष्ण की। का । कालापन लिए हुए लाल । स्याही निए दु' सुत्रं । सालो। उनिहार है 1---दो सौ बावन, मा० २, पृ० १३ । । उन्नाय---सज्ञा पुं॰ [सं॰] [वि० उलाय] १ उच्चता । उत्यान । उनीदा-वि० [सं० उन्निद्र] [स्त्री॰ उनींदी] वहुत जागने के कारण २. वितुकं । सोच विचार । ३ निष्कर्ष । परिणाम । ४. अलसाया हुशा। नींद से भरा हुआ। नींद में माता हुया । सादृश्य । सामान्यता । तद्रूपता (को०] । ॐधता हुआ । उ०—(क) श्याम उनींद जानि मानु रचि सेज उन्नायक–वि० [सं०] [औ० उन्नायिका[ १. ऊंचा करनेवाला । विछायो, ताप पौढ़ लाल अविह मन हरख बढ़ायो ।—सूर | उन्नत करनेवाला । २. वढानेवाला । तरक्की देनेवाला। (शब्द॰) । (ख) उठी सखी हैसि मिस करि केहि मृदु वैन, मिय। उन्नासी-वि० [स० ऊनाशीति, प्रा० अउपासीति] सत्तर और नौ। रघुवर के भए उनीदे नैन ।—तुलसी ग्र०, पृ० २० । (ग) । एक कम अस्सी । लटपटी पाग सिंर साजत, उनींदे अग द्विजदेव ज्यो त्यो के उन्नासो-मज्ञा पु० सत्तर और नौ की सव्या या अक । भारत सवै वदन }--द्विजदेव (शब्द॰) । उन्नाह--मज्ञा पु० [सं० उत्-नह] १ उभार । अग्र भाग की ओर उनैना--क्रि० अ० दे० [सं० अवनमन या अवलम्बन] १ झुकना । बढाव ! अतिवृद्धि । जैसे - स्तनोन्नाह 1 प्रतिशता । प्राधिक्य । २ छा जाना । उ०—ाई उने मुह मे हँसी, कोहि तिया पुनि २ अागे की अोर निकला हुग्रा । ३ वाँधना । ४ अभिमान । चाप सी महु चढाई --इतिहास, पृ० २५४ ।। चमड़ । भाजी कि] । उन्नईस--वि०, सज्ञा पू० [सु० ऊर्नावश, प्रा० अउणवीस] ३० उन्निद्र'---वि० [सं०] १ निद्रारहित । २. जिसे नींद न आई हो । । जैसे—उन्निद्ररोग । ३ विकसित, खिला हुआ । 'उन्नीस' ।। उन्निद्र--संज्ञा पुं० नींद न आने का रोग [को॰) । उन्नत--वि० [सं०] १. ऊँचा। ऊपर उठा दूग्रा । २ वृद्धि प्राप्त । बढी | उन्नीस- वि० [त० एकोनवशति या ऊनवश प्रा० एकोनवौसा, | हुआ । समृद्ध । ३. श्रेष्ठ । वडा । महत् ।। एकूनवीसा प्रा० अउणवीस] एक कम वीस । दस और नौ । उन्नतकोकिला-सज्ञा स्त्री० [सं०] एक वाद्ययत्र [को॰] । उन्नताश- सुज्ञा पुं० [सं०1 दूज के चद्रमा की वह छोर जो दूसरे उन्नीस—संज्ञा पुं० दस और नौ की सन्या या अक । | से ऊँचा हो। महा०—उन्नीस विम्वे (१) एक वीवे, बीच विस्वे का उन्नीस विशेष—फलित ज्योतिष में इसका विचार होता है कि चंद्रमा । भाग । (२) अधिकतर बहुत अधिक स भव । उ०--उन्नीस का बाँया छोर उन्नत है या दाहिना । विस्वे तो उनके आने की ग्राम है । (३) अधिकाश । प्राय , उन्नति–संज्ञा स्त्री० [सं०] १. ऊँचाई । चढाव । २ वृद्धि । समृद्धि । जैसे, यह बात उन्नीस विस्वे ठीक है । उन्नीस होना = (१) रक्की । बढ़ती । मात्रा में कुछ कम होना ) थोडा घटना जसे, उसका दर्द