पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/७६

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५६० [ 1] सुधीर उद्वाहों उद्वाही–१० स० उद्वाहिन्] १ ढोनेवाला । २ दूर ले जाने वाला । उद्बोढा--संज्ञा पुं० [सं० उद्वौतु] पति । 'भर्ता (को॰] । ३ ऊपर ले जानेवाला । ४ विवाहेच्छु (पुरुष) [को०] । उधडना-क्रि० अ० [सं० उद्दरण = उन्मूलन, उखडना] खुलना। उद्विग्न–वि० [मु.] १ उद्वेगयुत । कुल । घबराया हुआ । २ उखड ना। विखरना, तितर विनर होना । जैसे,—(क) कुछ व्यग्र । ३ प्रतिकित (को०] । दिन में इस में पड़े का सूत उद्यड़ जायगा । (ख) इस पुस्तक के पन्ने पन्ने उघड गए । उद्विग्नता----संज्ञा स्त्री॰ [ ४० 1 ग्राकुलता । घबराहट । व्यग्रता । यौ---सिलाई उधड़ना= सिलाई का टांका टूट जाना या खुन उद्विद्ध–वि० [सं०] १ क्षुब्ध। २ ऊपर उठा हुआ । उछलता हुआ जाना । [को०] । २ उचडना। पते से अलग होना जैसे,—पानी में भीगने से उद्वौक्षण-संज्ञा पुं० [सं०] १ ऊपर देखना। २ दृष्टि । अखि। दफ्ती के ऊपर का कागज उघड गया। ३ अवोकन । देखना । यौ०--चमड़ा उधड़ना= शरीर से चमड़े का अलग होना । उद्वीजन-संज्ञा पुं॰ [सं०] पखा डुलाना। पखा झलना [को॰] । जैसे,—ऐसी मार मारेंगे कि चमडा उड़ जायगा । उद्वत्त-वि० [सं०] १ असभ्य । २१ अभिमानी । ३ वृद्धिप्राप्न। उवम –सज्ञा पुं० (हि० ऊबन) दे० 'ऊपम' ।। ४ धोम से भरा हुआ। ५ उठा हुअा [को०] । उबर----क्रि० वि० [सं० उतर अथवा पु० हिं० ॐ (वह)+चर उद्वेग-सज्ञा पुं० [सं०] [बि० उद्विग्न] १ वित्त की अाकु नता। (प्रत्य० स० चल) ] उस शोर। उस तरफ। दूसरी तरफ । घबराहट । २ मनोवेग । चित्त की तीव्र वृत्ति । आवेश । जैसे,—उधर भूलकर भी मत जाना। जोश । जैसे,—मन के उद्वेगो को दबाए रखना चाहिए। ३ उवरना -क्रि० अ० [सं० उरण] १ उद्धार पाना । मुक्त झोक जैसे,--क्रोध के उद्वेग में उसने यह काम किया है। होना । छुटकारा पाना । उ॰—-पाव जन समार मे शीतल ४ रस की दस दशाग्रो में से एक । वियोग समय की वह चदन वाक्ष, दादू केते उधरै जे ग्राए उन पास ।—दादू व्याकुलता जिसमें वित्त एक जगह स्थिर नही रहता । ५ वानी, पृ० २६१ । २ दे० 'उधड ना' । विस्मय, आश्चर्य (को०)। ६ भय । इर। (को०) ! ७. , उधरना-क्रि० स० उद्धार करना मुक्त करना । उ०--सोक कनक- सुपारी। पूगीफल (को॰) । लोचन, मति छोनी । हुरी विमा गुन गन जग जोनी । भरते उद्वेग-वि० १ शात ।२ धैर्यवान् । घोर । ३ दे० 'उद्वाहु' । ४ शीघ्र विवेक वराह विसाला । अनायास उधरी तेहि काला ॥ जानेवाला । ५ आरोहणकर्ता [को॰] । मानस, । २ । २९६ । (ख) छोर समुद्र मुष्प ते यो कहि दीरघ उद्वेगजनक–वि० उद्वेग पैदा करनेवाला । बेचैन करनेवाला । वचन उचारा हो । उघ घरनि असुर कुन मा धरि नर उद्वेगी--वि० [सं० उद्वगिन्] १ पीडा या कष्ट में पड़ा हुआ। तनु अवतारा हो ।—सूर । (शब्द॰) । दुखी । ३ चिंताजनक को०] । उधरान –क्रि० अ० [सं० उद्धरण] १ हवा के कारण छित- उद्वेजक–वि० [सं०] उद्वेग करनेवाला । उद्वेगजन हो । राना । खडे खडे होकर इधर उवर उडन । तितर बितर होना। उद्वेजन-संज्ञा पुं० [म०] [वि॰ उद्वजक, उद्जनीय, उढे जित] विखना । जैसे,—(क) रूई हवा में मत रखो, उधरा उद्वेग में होने या करने की क्रिया। आकुन होने या करने का जायगी। उ०—मन के भेद नैन गए माई । लुये जाइ श्याम काम । घबराना । सुदर-रसे करी न कछु भलाई । व्याकृल फिरति भवन बन उद्वेजयिता--वि० [सं० उद्बजयितृ] उद्वेग उत्पन्न करनेवाला । जहें तहँ तूल आक उधराई ।—सूर०, १०] २८४७ । २ क्षोभकारी (को॰] । मदाध होना । ऊधम मचाना । सिर पर दुनिया उठाना। उद्वे-सज्ञा पुं० [सं०] कंपकपी । केपन को॰। उवाड-सज्ञा पुं० [सं० उद्धार] कुश्तों का एक पेंच । उखाड । उद्वेल--वि० [सं०] तट या किनारा छापकर बहने वाला 1 मर्यादा का । विशेषजब दोनो लडनेवाला के हाथ दोनो की कमर पर रहते अतिक्रमण करनेवाला । अतिशय । उ०—उद्वेल हो उठो । हैं और पॅच करनेवाले की गर्दन विपक्षी के कधे पर होती है। | भाटे से, बढ़ जाम्रो घाटे घाटे से 1–आराधना, पृ० २।। जव बहू (पेंच करनेवाला) अपना बाँया हाय अपनी गरदन उद्वेलन-संज्ञा पुं० [सं०] १ उफान 1 किनारा लांघकर वहना। २ पर से ले जाता है और उससे विपक्षी का लगोट पकडता हैं। | मर्यादा लांघ जाना [को०] ! और दाहिना पैर बढ़ कर उसको बगल में फेंक देता है। इस उद्वेलित--वि० [स०] १ अमर्यादित । २ वाघ या तट को पारकर पेंच को उधाड या उखाड कहते हैं । बहता हुग्रा [को०)। उवार-सज्ञा पुं० [स० उद्धार = बिना ब्याज का ऋण] १ कर्ज । उद्वेल्लित--वि० [सं०] उफनता हुआ 1 सीमा को लांघकर बहता ऋण । जैसे,—उसने मुझसे १००) उधार लिए । दुमा [को०] । क्रि० प्र०—करना । जैसे,--त्रह १०) वनिए का उच्चार कर उद्वेष्टन--सज्ञा पुं० [सं०] १ वाढ़ या घेरा 1 २. घेरने की क्रिया या गया है ।—खाना ='ऋण लेना । ऋण लेकर काम चलाना । | भाव । ३ पीठ की ग्रोर होनेवाला दर्द (को०] । —देना ।—लेना। उद्वेष्टनीय--वि० [सं०] खोनने योग्य । मुक्त करने योग्य [को॰] । मुहा०----उधार खाए बैठना=(१) किसी अपने अनुकूल होने उद्वेष्टित--वि० [सं०] घिरा हुआ [को०] । | बाली वात के लिये अत्यंत उत्सुक रहना । जैसे,—कभी न