पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/७३

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चट्ठले १८७ उदद 1 उद्ल-वि० [सं०] शक्तिशाली । मजवुते । ताकतवर [को०] । यौ०-दोषोभावना । उद्वाष्प-वि० [स०] अधुपुर्ण । बाप्परित [को०] । २ उत्पत्ति । उद्वाहु-वि० [सं०] हाथ ऊपर उठाए हुए । उध्वंबाहु (को०) । उभावयिता--वि० [सं० उभावयितु] दे॰ 'उमाबक’ [को०] । उदृवृद्ध---वि० [सं०] १ विकृति । फूला हुआ । २. प्रबुद्ध । चैतन्य । उभास-सज्ञा पुं० [सं०][वि० उद्भासनीय, उद्भासित, उद्भासुर] १. जिसे वोध या ज्ञान हो गया हो। ३. जगा इंग्र। ४ स्मृत । । प्रकाश । दीप्ति । आभा। २ हृदय मे किसी बात का उदय । स्मरण किया हुआ (को०) । ५ उद्दीप्त (को॰) । प्रतीति । उदबद्धा--सज्ञा स्त्री० [सं०] अपनी ही इच्छा से उपपति से प्रेम करने- उद्भासित-वि० [सं०] १ प्रकाशित । उद्दीप्त । २. प्रकट । जैसे, | वाली परकीय नायिका । उसकी प्रकृति से क्रूरता उमासित होती है । ३ प्रतीत । उद्बोध-सझा पु० [सं०] १. योडा बहुत ज्ञान । २ जागना । प्रबुद्ध । विदिन । जैसे,—हमे तो ऐसा उद्भासित होता है कि इस वर्ष होना ले० । ३ स्मरण होना । याद आना (को०)। वृष्टि कम होगी। उद्बोधक'–वि० [सं०] [स्त्री० उद्बोधिका] १. वध करानेवाला 1 उभासी--वि० [सं० उद्भासिन्] [वि॰ स्त्री० उद्भासिनी] १. चेतानेबाला । खयान रखनेवाला । २ प्रकाशित करनेवाली । दमकवाला ! चमकीला । २ प्रकट होनेवाला । ३ प्रकट करने प्रकट करनेवाला 1 सुचित करनेवाला। ३ उद्दीप्त करनेवाला । या चमकानेवाला [को०)। उत्त बिन करनेवा I४ जगानेवाला । | उद्भासुर-वि० [सं०] ज्योतिष्मान् । तेजवान् । चमकीला [को॰] । उदबोधक-सच्चा पुं० सूर्य (को०] ।। उभिज-सच्ची पु० [स०] दे॰ 'उभिज्ज' । उद्बोधन–सज्ञा "० [स] [वि॰ उदबोधनीय, उद्बोधक, उदवोचित उद्भिज्ज-सज्ञा पुं॰ [सं०] वृक्ष, लता, गुल्म आदि जो भूमि फोडकर १ बोध कराना । चेताना 1 खयाल रखना ! २. उद्दीपन | निकलते हैं। वनस्पति । करना । उत्तेजित करना । ३. जगाला। विशेप-सृष्टि में ये चार प्रकार के प्राणियों में से हैं। मनु इत्यादि उद्वविता--सज्ञा स्त्री० [सं०] वह परकीया नायिका जो उपरति के ने वक्ष को अतसत्व कहा है अर्थात् उनने ऐसी चेतना या चतुराई द्वारा प्रस्ट किए हुए प्रेम को समझकर प्रेम करे ।। सुवेदना वतलाई है जिन्हे वे प्रकट नही कर सकने । आधुनिक उमटवि० [स०] [सा उमटता] १ प्रल ! प्रचंड । वैज्ञानिको का भी यही मत है। यौ०-रोदभट । उद्भिज्ज’--वि० भूमि फोडकर बाहर निकलनेवाला ( पौधा २ श्रेष्ठ। असाधारण । जैसे,—-ईश्वरचंद्र संस्कृत के एक उद्भट। ग्रादि ) (को० । । विद्वान् थे । ३. उच्चाशय ।। उभिसा पुं० [सं०] दे॰ 'उदि भद' । उद्भट... सच्चा पुं० १ सूप । २ कच्छप । ३ मुक्तक । स्फुट रचना । उभिद'-सच्चा पु० [सं०] १ वृक्ष, लता, गुल्म अदि जो भूमि फुटकल छ । उ०----मुवत या उद्भट मे जो रस की रस्म | फोडकर निकलते हैं । वनस्पति । २ अँखा । कल्ला । ३. अदा की जाती है उसमें शील दशा का समावेश नहीं होता । समुद्री नमक । -रस०, पृ० १८९ | उभिद-वि० उगनेवाला । उठने या निकलनेवाला। दे० 'उमिज्ज उद्भव--संज्ञा पुं॰ [स०] [वि॰ उद्भूत] १. उत्पत्ति । जन्म । सृष्टि ।। [को०] । य०.–उद्भत्रकर= उत्पादक । पैदा करनेवाला । उद्भव क्षेत्र, उद्र उदृभिन्न----वि० [सं०] १ तोडकर कई भागो में किया हुअा। फोडा उद्भवस्थान = उत्पत्तिस्यान । हुआ । २. उपन्न । व्यक्त । खुला या निक ना हुमा (को०)। । २ वृद्धि 1 वढती । जैसे-हम दूसरे के उद्भव को देख क्यों जलें । ४. विकसित । खिला हुआ (को०)। ५ जिससे विश्वासघात किया गया हो (को॰) । ३ मूल । उद्गम । बुनियाद (को०) 1 ४ विष्णु का नाम (को॰) । | उद्भज -सज्ञा पुं० [सं० उद्भिज] दे० 'उभिज' । उ०——उदै मुज उभारसद्मा पु० [सं०] वादल । मेघ (को०) । सतेज जेरज अडा, सुपनप वरतै ब्रह्मा ।—दरिया उद्भाव-सया पुं० [सं०] १ उद्भव । उत्पत्ति । २ कल्पना। वानी, पृ० २७। उद्भावना। ३ उदारता (को०] । उद्भूत--वि० [स०] १ उत्पन्न । निकला हु ।। २ गोचर । युक्त उद्भावक--वि० [सं०] १ उत्पन्न करनेवाला । २. कल्पना या (को०)। ऊँचा । उच्च (को०)। उद्भावना करनेवाला (को॰] । उदभेद--संज्ञा पुं० [सं०] १ फोड़कर निकलना (पौधो के समान) । उद्भाबन-सक्षा पुं० [स][को० उद्भावना, वि० उद्भावनीय, उभा २ प्रकाशन । उद्घाटन । ३ प्राचीनो के मत से एक वित, उद् भाव्य] १ कल्पना करना । मन में लाना। २ काव्यालकार जिसमे कौशल से छिपाई हुई किसी बात का उत्पन्न होना । उत्पादत । ३ कहना। वोलना (को०) 1४. किसी हेतु से प्रकाशित या लक्षित होना बर्णन किया उपेक्षा या तिरस्कार करना (को॰) । जाय । जैसे—वातापन गत नारि प्रति नमस्कार मिस भान, उद्भावना-सा लौ० [स०] १ कल्पना । मन की उपज । सो कटाच्छ मुसुकीन सो जान्यो सखी सुजान । यही सूर्य को १-८