पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/७१

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उद्देशक ५८५ उद्धर्ता उद्देशक-संज्ञा पुं० १ दृष्टात । उदाहरण । २ निर्देशक व्यक्ति । ३. अविनीत । जैसे,—वह उद्धत स्वभाव का मनुष्य है। २. प्रगल्म ।। प्रश्न (गणित)। जैसे, वह अपने विपय का उद्धत विद्वान् है ३ अभिमानी । उद्देशन--सू। पु० [सं०] दिखलाने या बताने की क्रिया ]ि । गरवीला (को०)। क्षुब्ध । उत्तेजित (को०) । ५ अत्यधिक। उद्देश्य–वि० [सं०] १ लक्ष्य इप्ट । २ स्पष्ट करने योग्य (को०)। अतिशय (को०)। ६. ऊपर उठा हुआ (को०)। ७ राजसी । उद्देश्य-सज्ञा पु० १ वह वस्तु जिसपर ध्यान रखकर कोई बात कही राजकीय (को॰) । या की जाय । अभिप्रेत अर्थ । इप्ट । जैसे,—किस उद्देश्य से तुम उद्धत-संज्ञा पुं० १ ४० मात्राओं का एक छद जिसमें प्रत्येक दमवी यह कार्य कर रहै हो। २ वह जिसके विपय में कुछ विधान | मात्रा पर विराम होता है और अत में गुरु लघु होते हैं । किया जाय । वह जिनके मुवंघ में कुछ कहा जाय । बिशेष्य । । । जैसे- विभु पूरन रघुवर, सुदर हरि नरवर, विभु परम धुरंधर, विधेय का उल्टा । जैसे,- वह पुरुप दड़ा वीर है' इस वाक्य मे | राम जे सुख सार । मम ग्राशय पूरन, बहु दानव मारन, “वह पुरुप' या 'पुरुष' उद्देश्य है और 'वीर हैं' या 'वीर' दीनन जन तारन, कृष्ण जू हर भार। २ राजा का पहल- विधेय है। वान् । राजमहल । यौ॰—उद्दश्य-विधेय-भाव = उद्देश्य और विधेय का संवध । विशे- उद्धतपन---सच्चा पु० [सं० उद्धत +f० पन (प्रत्य०) ] उजड्डपन । इणि विशेप्य का भाव । उग्रता । उद्देप्टा- वि० [सं० उद्दष्ट्र] १ सकैत करनेवाला । २ किसी लक्ष्य के उद्धतमनस्क--वि० [सं०] ३० ‘उद्धतभना' ।। | अनुसार काम में प्रवृत्त होनेवाला को०) ।। उद्धतभना-वि० [सं० उद्धतमनस्] गवप्ठ । अभिमानी (को०)। उद्देस-- सच्चा मुं० [सं० उद्देश दे० 'उद्देश्य' । उ०--कवन सु फल उद्धति-सझा स्त्री० [सं०] १ अक्खड़पन । उजड्डपन । २ प्रfमान । काके उद्दस । कवन देवना नैस सुरेस ।-नद० ग्र०, पृ० गर्ने । ३ उत्थान । उठान ! ४ अाघात । चोट । मारना को०)। ३०५ । । उद्धना - क्रि० प्र० स० उद्धरण] ऊपर उठना । उड़ना । उद्देहिका- सज्ञा स्त्री० [स०] दीमक [को०)। छितराना । विखर न।) उ०----जरे वाँस हो काँस उद्धे उद्दत पु-वि० [३० उद्योत] प्रकाश । उ०—बन ते घर अावे नही फुल गा। नई भूमि को पूत के कोटि अगा}सूदन (शब्द॰) । घर ते वन नहि जाइ, नुदर रवि उद्दोत ते तिमिर वहा उद्धम- सच्चा पु० [सं०] १ ध्वनित करना । बजाना। २ जोर जोर से रहराइ ।—सुदर ग्र०, भा॰ २, पृ० ११ । सौम लेना (को०] । उद्दोत- वि० १ प्रकाशित । चमकीला । २ उदित । उपन्न । उ०-- उद्धरण-संज्ञा पुं० [ स० ] [ वि० उद्धरय, उद्धत ] २ ऊपर काहू को न भयो कहू ऐसो सगुन न होत, पुर पैठत श्रीराम उठना।२ मुक्त होने की क्रिया । छुटकारा । ३ बुरी अवस्था के भयो मित्र उद्दत ।-केशव ( शब्द०)। से अच्छी अवस्था में ग्राना। ४ पुढे हुए पिछले पाठ का उद्दतिताई--सुज्ञा स्त्री० [सं० उद्योतित + हिं० आई (प्रत्य॰)]. अभ्यास के लिये फिर फिर पढ़ना । ५ किसी पुस्तक या लेख चमकीलापन । प्रकाश ।। के किसी अश को दूसरी पुस्तक या लेख में ज्यो का त्यो उद्दोत'- वि० [सं० उद्योत] प्रकाशित । ज्योतियुक्त । कातियुक्त [को०] । रखना। उद्दोत--संज्ञा पु० १ प्रकाश । उजाला । उ०-ज्ञान उद्योत करि हृदय क्रि० प्र०—करना ।---होना । गुरु वचन धरि जोग संग्राम के खेत अार्वं ।—गुलाल०, वानी ६ उन्मूलन । उखाडना । ७ उठाना। उत्यापन । ८ परोसना। पृ० १०६।२ चमक ! झलक । ग्राभा । ३ प्रकाशन | व्यक्ती- ६ वमन । १० निकालना 1 भीतर से बाहर करना (को॰) । करण । आविष्करण (को०) । ४ ग्रथ का विभाग । अध्याय | - ११ वमन किया हुमा पदार्थ (को०) । या परिच्छेद (को०) । ५ महाभाष्य, काव्यप्रदीप और रत्ना- उद्धरणो-मज्ञा स्त्री॰ [स० उद्धरण+हि० ई (प्रत्य०) ] पढे हुए वली की टीका का नाम (को०) । | पिछले पाठ को अभ्यास के लिये वार बार पढ़ना । उहोतन-संज्ञा पुं० [सं०उद्द्योतन][वि० उद्योतक, उद्योतनीय, उद्योर्तित क्रि० प्र०—करना ।--होना । | १ प्रकाशित करने या होने की क्रिया । चमकने या चमकाने उद्धरना - क्रि० स० [सं०उद्धरण] उद्धार करना। उवारना । का कार्य । २ प्रकट करने की क्रिया व्यक्त करने का कार्य । उ००-अव ह्याँ कौन जतन अनुसरो, इहि मा] अपने उद्दोलित-वि० [सं० उद्दयोतित] प्रकाशित । प्रज्वलित । द्योतित 1 [को०] । उद्धौं ।-नद० ग्रं॰, पृ० २६१ । उदुद्राव'- वि० [सं०] दौड़ता या 'भागता हुआ (को॰] । उद्धरना-क्रि० ० बचना । छूटना । मुक्त होना । उ०-सुम सदा उद्द्राव-वि० पुं० अपमरण । पलायन [को॰] । ही उद्धरै दाता जाय नरक, कहै कबीर ये साख सुनि मति उद्द्त वि० [सं०] पलायनशील ! भागनेवाला (को०] । । कोइ जाय सरक -कवीर (शब्द॰) । उद्ध –क्रि० वि० [सं० ॐवं, पा० प्रा०, उद्ध= ऊँचा] ऊपर। उ- उद्धर्ता'-वि० [ सं० उद्धत्त 1 १ उद्धार करने वाली संकट से मिली परस्पर डीठ वीर पग्गिय रिस लग्गिय । जग्गिय जुद्ध बचानेवाला । उठानेवाला। २ जायदाद में हिस्सेदार। ३ विरुद्ध उद्ध पलचर खग खग्गिय --सूदन (शब्द॰) । सपति को बचानेवाला । ४ उद्धरणी करने या दुहरानेवाला। उद्धत-वि० [सं०] [सच्चा औद्धत्य] १, उग्र! प्रचंड । अक्खड़ ! ४, उद्धरण देनेवाला [को०]। , 33