पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/६८

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उदो ५६२ उद्गार उदोर्ण--वि० [स०] १. कथित । ३ विकसित । ३ पैदा किया हुमा । उदोत (g)-वि० १ प्रकाशित। दीप्त। ३०-कबहु न मूति विलग दोउ ४ ग्रीविष्ट। उत्तजित । ५ उदार । उत्तम । ६ प्रस्तुत । होती। दिन दिन करती क ना उदोती --रघुनाथ (शब्द॰) । तत्पर (मस्त्रसधानार्थ) । ७ महान् । श्रेष्ठ । ६ अभिमानी । २ शुभ्र । उत्तम् । उ०-- एक ब्राह्मणी रवै एक धोती। वर्ष गवष्ठ [को॰] । दिवस महँ अतिहि उदोती ।--रघुनाथ (शब्द०)। उदु वर-सज्ञा पुं० [सं० उदुम्बर] [वि० श्रौदु बर] १ गूर | २ उदोतकर-वि० [सं० उद्योतकर] १ प्रकाश करनेवाला । प्रकाशक । देहली । यौढ़ी। नपुसक । ४ एक प्रकार का कोढ़। ५ | २ चमकानेवाला । उज्वल करनेवाला । उ०—प्रोपधि बर ताँबा । ६ अस्सी रत्ती की एक तौल । वश उदोत कर सूर सूरतः लोप रत । गोपाज (शब्द॰) । पर्या॰—उडुबर । उद्वल ।। उदोती--वि० [सं० उद्योत] [स्त्री० उदोतिनी] प्रकाश करनेवाला । उद् बरपर्णी-संज्ञा स्त्री॰ [स० उदुम्बरपर्णी] दती। दांनी । एक वृक्ष ।। उदय करनेवाला । विकासक । उ०—अट्टहास की रोरनि उदु बल - वि० [सं० उदुम्बल] शक्तिशाली । ताकतवर [को॰] । चिंतित मन की द्योतिनि, कलित किलकिला मि त मोद उर उदुप्रासज्ञा पुं० [सं० ऋतु, पा ० प्रा० उतु= एक प्रकार की भोजन] भाव उदो तिनि ।—अधिर पाठक (शब्द॰) । | एक प्रकार का मोटा जड हुन । उदी--सच्चा पु० [स० उदय दे० 'उदय' । उदुष्ट-वि० [सं०] लाल (को॰) । उद्गघि--वि० [सं० उद्गन्च] १ तीखी गधाला । २ मुग्ध उद्खल-सज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'उलूखल' । | युक्त [को॰] । उदूढ--वि० [स०] १ विवाहित । २ प्राप्त । स्वायत्त । ३ लवा। उद्गत-वि० [सं०] १ निकला हुआ । उद्भूत । उत्पन्न । २ प्रकट । ऊँचा । ४ भारी 1 वजनी । ५ स्थूल । पीन । ६ सारवान्। जाहिर। ३ फैला हुआ । व्याप्त । ४ वमन किया हुआ। सारयुक्त । ७ वहूत अधिक। छदित । ५ प्राप्त 1 लब्छ । ६ गया है। गमित (को॰) । उर्दूल-सज्ञा पुं० [अ०] अवज्ञा । नाफर्मानी ! अवहेलना [को०} 1 उगता--सज्ञा स्त्री० [सं०] एक वृन का नाम [को॰] । उदुलहू कमी---सुज्ञा स्त्री० [अ० उबूल +हुक्म +फा० ई (प्रत्य॰)] उदगतार्थ-सज्ञा पुं० [सं०] वह पदार्थ या धरोहर जिसका पडे पडे ही अाज्ञा न मानना । अाज्ञा का उल्लंघन । भोग आदि बढ़ने से दाम चढ गया हो । उदेग –सच्चा पुं० [सं० उच्च ग] उद्वेग । उचाट । उ०--देश काल वेल उद्गतासु-वि० [सं०] निष्प्राण । मृत [को०)। ज्ञान लोभ करि हीन है । स्वामि काम में लीन सुसील कुलीन उद्गति--सच्चा स्त्री॰ [सं०] १ ऊपर की ओर जाना । अारोह । २, है । बहु विधि बरने बानि हिये नहि भै रहै । पर उर करे उदेग | वमन । छदि । ३ उदय ।४ उत्स । मूल [को॰] । दूत तास लहै --सूदन (शब्द॰) । उद्गम--सज्ञा पुं० [स०] १ उदय । अविभव । २ उत्पत्ति की उदेजय--वि० [स०] १ कपित करनेवाला के आनेवाला । २ स्थान 1 उद्भवस्थान । निकास 1 मखरज । ३. वह स्थान जहाँ | भयकर । इरावना। [को॰] । से कोई नदी निकलती हो । ४ वमन (को०)। ५ जाना । उदेल-सज्ञा पुं० [अ० ऊद] लावान । निकलना । जैसे, प्राणोद्गम (को०) । ६ खडा होना । भर- उदेस'—संज्ञा पुं० [सं० उद्देश] खोज। अनुसवान् । उ०---य मराना । जैसे, रोमोद्गम (को०) । ७. अकुर । अँखु (को०) । | कै उदेश न पायो के से क जिय ठहराय ।--गुलाल० बानी ८, जन्म । पैदाइश । उरपति (को०)। ६ अवलोकन 1 दृष्टि पृ० ६२ । (को॰) । देश -संज्ञा पुं० [स० विदेश, प्रा० विएस,विदेस बिदेस अथवा उद्गमन–सा पुं० [स०] उगना । प्रकट होना [को०] । स० उत् = उद्वत + देश] अन्य देश । परदेश । उ०-- कमर उदगमनीय-सधा पुं० [सं०] १ स्वच्छ या धुने हुए वस्त्रो का जोड़ा। वधि खोजन चले, पलटू फिरे उदेस । षट दरसन सब पचि मुए, २ धुला वस्त्र (को॰] । | कोऊ न कहा सदेस ।--पलटू० वानी, भा० ३, पृ० ११५। उदगाढ़--वि० [सं०] १ गहरा २ अतिशय । अधिक । ३ प्रचंड उदेषु-सञ्ज्ञा पुं० [सं० उदय दे० 'उदय'। उ०—पूरन ससि प्राची उदै विहरनि रुचि कीनी ।--घनानद, पृ० ४५५ । उद्गाता--सज्ञा पुं० [सं० उद्गा!] यज्ञ में चार प्रधान ऋस्विजों मे उदेही -सच्चा स्त्री० [स० उद्द हिका] दीमक । उ०--वाँ की फिर एक जो सामवेद के मुत्रो का गान करता है और सामवेद | अगह वली, अग उदेही जाम ।--पृ० रा० १।११० । संवधी कृत्य कराता है । उदो - सज्ञा पुं० [सं० उदय] दे॰ उदय' ।। उद्गातृ---संज्ञा पुं॰ [स०] दे॰ 'उद्गाता' । उ०—एक उद्गातृ चाहिए उदोत', उदोति-- संज्ञा पुं॰ [स० उद्योत] प्रकाश । दीप्ति । था जो सोम गाए ।—हिंदु० सभ्यता, पृ० ४२ ।। उ०- गग नीर विधु रुचि झलक मृदु मुसुकानि उदोति । उदगाथा-सच्या स्त्री० [सं०] भार्या या गाया छद का एक प्रकार कनक भौन के द प ल जगमगति तन जोति --मति० ग्र०, [को॰] । | पृ० ४२१ । २३ अभिवृद्धि । बढती । उन्नति । उदगार--सा पुं० [स०] [वि० उद्गारी, उद्गारित] १ तरल यौ••• उदोतकर । पदार्थ के वेग से बाहर निकलने या ऊपर उठने की क्रिया । क्रि० प्र०—करना ।--होना। उवाल। उफान २, मुह से निकल पड़ने की क्रिया। " (को०)।