पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/६७

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| भिमुख दसिौवाजी बैदरिंत उदासीवाजा--सुज्ञा पुं० [हिं० उदाही +फा ० वाजा] एक प्रकार का उदितयौवना—संज्ञा स्त्री० [सं०] मुग्धा नायिका के सात भेदो में से भो । यो फूक कर वजाया जानेवीला वाजा । एक जिसमें तीन हिस्सा यौवन और एक हिस्सा लडकपन हो । उदास्थित-वि० [सं०] नियुक्ति । काम पर लगाया हुशा [को॰] । उ०—-तीन अश जोवन जहाँ लरिंकाई इक अस। उदितयौवना उदास्थित--सृज्ञा पुं० १ द्वारपाल । २ चर। ३ अधीक्षक । निरी- सो वहीं वरनत कबि अवतस ---रघुनाथ (शब्द०)। क्षक । ४, सन्यास आश्रम का त्यागकर गुप्तचर का काम करने- उदिताचल-भज्ञा पु० सि ०] दे॰ 'उदयाच' । | वाला व्यक्ति की । उदिति--सज्ञा भी० [सं०] १ (सूर्य का) चढना या ऊपर उठना । २ उदाहट -- संज्ञा पु० [हिं० ऊदा+हट (प्रत्य॰)] ललाई मिला हुआ। सनिवेश । निवेशन 1 ३ ग्रस्त होना । ४ वक्तव्य [को०] । नीलापन । ऊदापन । उदिम --सज्ञा पु० [सं० उद्यम]२० ‘उद्दिम' । उ०-दादू उदिम ओगुण उदाहरण-संज्ञा पु० [म ०][वि० उदाहरणीय, उदाहार्य, उदाहुत]१. को नहीं, जे करि जाणे कोइ । उदिम में शानद है, जे साँई सेती दृष्टात । मिसाल । न्याय में वाक्य के पांच अवयवों में से हाइ |–दादू० वनि, पृ० ३३३ ।। तीसरा जिसके साथ साध्य का साधम्र्प या वैधम्र्य होता हैं। उदियान--सज्ञा पुं० [सं० उदयान] दे० 'उद्यान । विशेप उदाहरण दो प्रकार का होता है, एक 'अन्वय' अौर उदियाना--क्रि० प्र० स० उद्विग्न] चवदाना । उद्विग्न होना । दूसरा व्यतिरेकी' । जिससे सात्र्य के साथ साधर्म्य होता है वह उदक्षिण–संज्ञा पु० [सं०] १ देखना 1 तजवीजना । २ ऊप. की अन्वयी है, जैसे ----शब्द अनित्य है, उत्पत्ति धर्मवाला होने से ग्रोर देखना [को०] । घट की तरह । यहाँ घट अन्वयी उदाहरण है । व्यतिरेकी वह उदीची-सज्ञा स्त्री० [सं०] [वि॰ उदीचीन, उदीच्य, अदिच्य] उत्तर है जिसका साध्य के साथ वैवम्य हो, जैसे—ब्द अनित्य हैं दिशा । । • उत्पत्ति धर्मवाला होने से । जो उत्पत्ति धर्मवाला नहीं होता, उदीचीन--वि० [सं० तुल० अवे० उदोचीन (= उत्तरी)] १. वह नित्य होता है, जैसे, प्रकाश, अदमा आदि । | उत्तर दिशा का। उत्तर का । २ उतर की अोर । उत्तरा- ३ आरम (को०)। ४. एक प्रकार का अयलकार जिनमे भिमुख को॰] । प्रस्तुतार्थ के समर्थन के लिये उसी की समता के प्रस्तुत को उदीप-वि० [अ०] १ उत्तर दिशा का रहनेवाला 13 उत्तर दिशा उदाहरणस्वरूप उपस्यित कर देते हैं (को॰) । | का 1 उत्तर की ओर का।। उदाहार--संज्ञा पुं॰ [ स ० ]१ उदाहरण । दृष्टात । २ वक्तव्य का उदीच्य–सज्ञा पु० १ एक देश जो सरस्वती के उत्तर पश्चिम | आरंभ [को॰] । ओर है। २ किसी यज्ञ आदि कर्म के पीछे दान दक्षिणादि उदाहित–वि० [स०] ऊपर उठाया हुअा (को॰] । कृत्य । ३ एक सुगधित पदार्थ (को०)। ४ ब्राह्मणों को उदाहृत-वि० [स०] १ कथित । उक्त । २ उदाहरण या दृष्टांत के एक शाखा । रूप में प्रयुक्त (को०] ।। उदीच्प-सज्ञा पु० [सं०] वैनाली छद का एक भेद जिमके विपम उदाहृति-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ नाट्यशास्त्र के अनुसार किसी प्रकार प्रयत् पहले और तीसरे चरण में दूसरी पौर तीसरी मात्राएँ का उत्कर्षंयुक्त वचन कहना, जो गर्मसधि के १३ अगो में से मिलकर एक गुरु वर्ण हो जाएँ । जैसे—हरि हि भज जाम एक है। जैसे -रत्नावली मे विदूक का यह कथन-(हर्ष से) आठहु । जज नहि तजिकै करौ यहो । तन मनै दें लगा सवै आज मेरी बात सुनकर प्रिय मित्र को जैसी हर्ष होगा, पाइहौ परम धाम ही सही। वैसा तो कौशावी का राज्य पाने से भी न हुआ होगा। उदीतना--क्रि० स० [सं० उद्दीप्त, 9T०उद्दित] प्रकाशित करना। अच्छा, अव चलकर यह शुम सवाद सुनाऊ र उदाहरण । उ०—दादू जी दयाल गुर अतर उदीयो है।—सदर दष्टात [को०]। | ग्र॰, भा॰ १, पृ० ६० ।। उदान --संज्ञा पुं० [० उद्यान] दे॰ 'उद्यान' । उदी--वि० [सं०] वाढ़ के जल से प्लावित [को०)। उदिअाना–क्रि० अ० [सं० उद्विग्न] उद्विग्न होना । घबडाना। उदीप-सज्ञा पु० पानी की वाढ । जलावन (को॰] । हैरान होना । उ०—-मर रे कौन कुमति हैं लोनी । परदा उदोन--सज्ञा पु० [स० उद्दीपन] ३० ‘उद्दीपन' । निर्दिया रस रचि, और रामभगति नहिं कीन्ही । ना हरि । | उदोपित भज्यों ने गुरुजन सैयो नहि उपज्यो कछ, ज्ञाना । घट ही माहि -वि० [सं० उद्दीपित ] दे० 'उद्दीपित', 'उद्दीन' । उदीयमान–वि० [सं०] १ उगता निरजन तेरे ते खोजत उदिग्रानी तेगाहाटुर (शब्द०) ।। हुा । २ विकासोन्मुख । उदित–वि० [स०] [स्त्री॰ उदिता] १ जो उदय हुआ हो । निकला। | होनहरि [को०। हुअा । २ प्रकट । जाहिर । ३ उज्वल । स्वच्छ । ४ । उदीरण-सम्रा पुं० [सं०] १ कथन । उच्चारण । २. बोलना । कहना । ३. फेकना । क्षेपण (प्रस्य का) को । प्रफुल्लित । प्रसन १५ कहा हु । कथित । ६ उच्च । ऊँचा । उदीरित-वि० [सं०] १. कवित। कहा हु।। २ सय । प्रयमित । (को०)। ७ उत्पन्न । पैदा हुमा (को०)। ८. तप्तर । सनद्ध। तैयार (को॰) । उत्तेजिते । ३ विकसित । प्रफुल्लित । ४. अभिवृद्धि। उदित-सुज्ञ पु० १. एक प्रकार की सुगध । २ एक प्रकार का समुन्नन [को॰] । उच्चारण को । यौ4-उदीरितध= कुशाग्रबुद्धि। तीक्ष्णबुद्धि ।