पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/६६

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उदासोन मित्र उदारघो। ५८० उदासना —क्रि० स० [सं० उदासन] १ उजाइन। नष्ट करना । उदारधी-सज्ञा ० उत्तम गुण । उत्कृष्ट वुद्धि (को०)। उ०—केशव अफल प्रकाश वायु नि देश उदास ।--केशव उदारना—क्रि० ऋ० [स ० उद्दारण] १ फाडना । विदीर्ण करना । (शब्द०)। २ (वि स्तर) समेटना या बटोरना। (फैजा- उ०—भने रघुराज जैसे अतिथि से अदर को, सासु ही अनादर हुप्रा पिस्तर) पटना। उदायो करि पीर को ।।--रघुराज (शब्द०) । २ गिराना। उदागिता–वि० [म० उदासितृ] उदासीन । तटस्थ । निरपे । [] तोडना । ढाना । छिन्न भिन्न करना । उ०--रावण से गहि उदासिल -वि० [ग० उवास + हिं० इल (9(य०)] उदासीन। कोटिक मारो। कहुई तो जननि जानकी ल्याऊँ कहो तो लक उदास । उ०—देवता तुमको चहैं निज प्राण सो मरलाइ है। उदारो। कहो तो अवही पैठि सुभट हुति अन न सकल पुर अाप ही उनते उदामिल कौन सो गुण पाए के । गुमान जारो --सूर (शब्द॰) । (शब्द॰) । उदाराशय-वि० [स०] उदार अाशय का । जिसका उद्देश्य उच्व हो । उदामी--- वि० [न० उदासिन) वटस्य | अलग । निरपेक्ष [को०)। जिसके विचार सुकूवित न हो। उदासी- मज्ञा पुं० [सं० उदास + हि० ई (प्रत्य॰)] [झी० उदासिन] उदावत्सर संज्ञा पुं० [म] वषविशेर । कालविशेप का निर्गण करने १ विरक्त पुरुष । त्यागी पुए । सुन्याती । उ०—(क) होय। | वाले पाँच वर्षों में से एक [को॰] । गह पनि होम उदाती। अकील दोन विश्वानी । -यसी उदावर्त-सज्ञा पुं० [स०] गुदा का एक रोग जिसमे काँच निकन प्रती (शब्द॰) । (ख) ग्रोहि १५ जाइ जो होय उदासी । जोगी | है और मलमूत्र रुक जाता है । गुदाग्रह । काँच ।। जती तगा न्यारा ।-जायसी ] ०, पृ० ५०। (ग) प्रमुदित विशेप-वैद्यक शास्त्र के अनुसार यह रोग वायु के बिगडने से होता तर यराज निवासी । वैपानस, बट गृही उदासी ।—मानस, है । यह वायु अधोवायु, मल, मूत्र, जंभाई, असू (रोवाई), २।२०५।२ नानकशाही साधु का ए भेद। ये साधु शिवा छीक, डकार, वमन, काम, भूख, प्यास, नीद के वेग को नहीं रणने । ये ग-योगियों के मान मिर घुमात योर लंगोट रोकने से तया श्वासरोग से कुपित हो जाती है। पनते हैं । उदावर्ता- सज्ञा स्त्री॰ [म०] स्त्रियो का एक रोग जिसमें रजोधर्म या उदासी३-- सज्ञा भी० [सं० उदारा + हि० ई (प्रत्य॰)] १ विनती ।- जाता है और ऋतुकाल में पीड़ा के साथ योनि से फेनयुक्त उत्साह । अनद का प नदि । दु । जैसे—(क) नादि शाह रुच्चिर या रज निकलता है। के अक्रिमण के बाद दिल्ली में चारों ओर उदामी बरसती थी। उदावसु-संज्ञा पुं० [सं०]विदेइजि जनक के एक पुत्र का नाम [को०] । उदास--व० [स० उत् + आस]१ जिसका चित्त किसी पदार्थ से हट (ख) राम के वनवास से अयोध्या में उदासी छा गई । उ.- गया हो । विरक्त । उ०—(क) घरही महू रहु मई उदासा । विनु दशरय स7 नलै तुरत ही कोगन पुर के वामी । अाए अंचल खप्पर शृगी खासा --जायसी (शब्द॰) । (ख) तेहि रामचंद्र मुख देख्यौ तवको मिटी उदासी !- सूर (शब्द०)।, क्रि० प्र० ---छाना । टपकना । बरसना --होना । ५ के वचन मानि विश्वासा। तुम्ह चाहहु पति सहज उदासा । . | उदासीन--वि० [सं०][ वि० ० उदासीना, सज्ञा उदासीनता] १ । मानस, १७९] (ग) नि किचन जुन मैं मम वास । नारि । विरक्त । जिसका चित्र हट गया हो । प्रचशुन्य । २ झगडे सग ते रहों उदास ।---सूर, १०४१६५। २ झगड़े से अलग । वखेडे से अलग । जो किसी के लेने देने में न हो। ३ जो दो निरपेक्ष । तटस्थ । जो किसी के लेन देन मे न हो । उ०—(क) विरोधी पक्षों में से किसी की ओर न हो। निष्पक्ष । तटस्थ । एक भरत कर समत कही । एक उदास 'माय सुनि रहीं । ४ रूखा। उपेक्षायुक्त । जैसे,--हम उनसे मिलने गए पर —मानस, २५४८ । ३ खिन्नचित्त । दुखी । रजीदा। उ०— उन्होने बड़ा उदासीन भाव धारण किया । (क) साघु, भंवरा जग कली, नि सि दिन फिरे उदास । टुक उदासीन..-सज्ञा पुं० १ बारह प्रकार के राजाम में वह राजा जा इक तहाँ विलविया जई शीतल शव्द निवास । ---कबीर दो राजान्नी के बीच युद्ध होते समय किसी की अोर न हो, (शब्द॰) । (ख) हाई जरै ज्यो लाकडी केश जरै ज्यो घास । किनारे रहे । २ वह पुरुष जिसे किसी अभियोग या मामले

  • यह सब जलता देखि के भया कवीर उदास |--कवीर में दो पक्षों में से किसी के सवध में न हो। ३ पच । तीसरा ।

(शब्द०)। रामचद्र अवतार कहत हैं सुनि नारद मुनि पास । ४. कौटिल्य के अनुसार दूरवर्ती राष्ट्र का बह राजा जो शक्ति- 'प्रकट भयो निश्चर मारन को सुनि वह भयो उदास । शाली तथा निग्रह अनुग्रह में समर्थ हो । ५ अजनवी (को०) । —सूर (शब्द०)। उदासीनता--संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ विरक्ति। त्याग । निरपेक्षता । उदास --सज्ञा पु० १ दु ख । खेद । रज । उ०----कहहि कवीर। निद्वंद्वता । ३ उदासी । खिन्नता। दोसन के दास । काहुहि सुख दे काहुहि उदास ।—कबीर उदासीन मित्र--संज्ञा पुं० [सं०] वह मित्र राजा जिसके सवध में यह | (शब्द०। निश्चय नै हो कि वह सहायता मे कुछ करने का कष्ट उठाएगी। उदास-संज्ञा पुं॰ [सं०] १ ऊपर उठना l उठना । २ तटस्थता। विशेप-कौटिल्य के अनुसार जिस राजा के पास बहुत अधिक विरक्ति । सुन्यास [को०] । उपजाऊ जमीन होगी, जो वलवान संतुष्ट तया मालसी होगा उदासना-क्रि० अ० [ स० उदास से नामिक धातु ] खिन्न या विरक्त और कप्ट से दूर भागनेवाला होगा, उसे सहायता के लिये कुछ होना। दुखयुक्त होना।। करने की कम परवा होगी।