पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/६१

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५७५ उदैगरने उद१–उप० [१०] ऐक उपसमें जो शब्दो के पहले लगकर उनमे इन देखि लोगन को हन्यो कुलिश सुरराई । गड्यौं न तनु मे उदकि अर्थों की दिशपता उत्पन्न करता है- ऊपर, जैसे-उद्गमन, गयो मुरि शक्र भज्यो भय पाई ।--रघुराज (शब्द॰) । अतिक्रमण, जैले,--उत्तीर्ण, उत्क्रात, उत्कर्ष, जैसे-उद्वोधन, उदकपरीक्षा-सज्ञा १०[स] प्राचीन काल में शपथ का एक भेद जिसमे उद्गति, प्रावल्य, जैसे-उद्वेग, उद्वल, प्राधान्य, जैसे- पय करनेवाले को जल में अपने वचन की सत्यता प्रमाणित उद्देश, अभाव जैसे--उत्पथ, उद्वसन, प्रकाश, जैसे- करने के लिये डूबना पड़ता था । उच्चारण, दोप, जैसे-उन्मार्ग। उदकप्रमेह-संज्ञा पुं० [सं०] प्रमेह रोग का एक भेद । उद्-संज्ञा पुं० १. मोक्ष । २ ब्रह्म । ३ सूर्य । जन । विशेप-इसमें वीर्य अत्यंत पतला हो जाता है और मूत्र के साथ उद्—संज्ञा पु० [सं०] जल । पानी। समास आदि या अत में प्रयुक्त, निकला करता है । मूत्र सफेद रग का चिकना गाढा गधरहित जैसे अच्छोद, क्षीरोद,उदकुभ, उदकोष्ठ, उदपात्र= जलपूर्ण घट। और ठडा होता है। इस रोग में पेशाब बढ्त होता है । उदउ५ संज्ञा पुं० [सं० उदय] दे॰ 'उदय' । उ०-उदउँ करहु जनि उदकमेह—संज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'उदक प्रमेह' । रवि रघु कुल गुर, अवध विलोकि सून होइहि उर --मानसे, उदकल-वि० [सं०] अलवाला। जलसवधी [को०)। २।३७ ।। उदकशाति--सज्ञा स्त्री॰ [स० उदयशान्ति] व्याधि दूर करने के लिये उदक-सज्ञा पुं॰ [स०] उत्तर दिशा । उद –क्रि० वि० [सं०] १ ऊपर की ओर । २ उत्तर की ओर रोगी पर अभिमंत्रित जल छिडकना [को०)। | वे०] । उदकशुद्ध-वि० [स०] स्नात् । नहाया हुआ (को०] । उदक-वि० [सं०] [अन्य रूप-उदङ, उद] [वि॰ स्त्री० उदीची] उदकस्पर्श--संज्ञा पुं० [सं०] १ शरीर के विभिन्न अंगों को जल से १ ऊपर की योर गतिशील । २ उत्तर का । उत्तरी । ३. स्पर्श करना। २ शपय, दान, प्रतिज्ञा अादि के समय जल का पवर्ती। वाद का । ४. ॐा कौ] ।। स्पर्श करना । उदक-सज्ञा पुं० [सं०] १. उत्तर दिशा । २ जल । पानी । उदहार–संज्ञा पुं॰ [सं०]पनिहार [को॰] । यौ०---उदककार्य । उदककू भ । उदककीड़न । उवकक्रीड़ा। उदकात--संज्ञा पुं० [सं० उदकान्त] किनारा। पुलिन (को॰] । उदके ग्रहण = ज न लेना । उदकद । उदकदानिक = दे० उदकाघार--संज्ञा पुं॰ [सं०] कू । हौज (को०] । ‘उददाता' । उदकधर = मेघ । उदक प्रतीकाश = उदकविद् । उदकोथी-वि० [सं० उबकायन्] तृपित | प्यासी । जल चाहनेवाला उदकशाक । उदकादि । गगोदक । | [को०] । विशेप-समस्त पदो के आदि में कभी कभी उदक के स्थान में । उदकीय-सज्ञा पुं० [सं०] करज का वृक्ष और फन (को॰] । | उत् हो जाता है। जैसे—उत्कुम । उदकेचर--सज्ञा पं० [सं०] जलचर । पानी का जतु । उदकेविशीर्ण-वि० [सं०] जल में सुखाया हुअा अर्थात कमी न सुना उदक्र अद्रि --सज्ञा पुं० [स० उदगद्रि] दे० 'उदगद्रि' । हुा । अस मच (को०] । उदककर्म--सज्ञा स्त्री॰ [सं०] दे० 'उदकक्रिया' । उदकक्रिया---सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ तिलाञ्जलि । जलदान । उदकदान ।। उदकोदचन--सज्ञा १० [स० उदकोदञ्चन] जल भरने का घडा । प्रेत का तर्पण । उदकोदर--सज्ञा पुं० [सं०] जलोदर । विशेप---यह क्रिया मृतक के शव का दाह हो जाने पर उसके उदकोदन-सज्ञा पू[स० उदक+श्रोदन]पानी में पकाया हुआ चावल । | भात [को॰] । गोवालो को दस दिन तक करनी पड़ती है । २ तर्पण ।। उदक्त–वि० [सं०] १ ऊपर की ओर मोडा या उठाया हुआ । २. उदककृच्छ—संज्ञा पुं॰ [सं०] विष्णुस्मृति के अनुसार एक ब्रत जिसमे ऊपर जाता हुआ । ३ कथित [को०] । एक मास तक जी का सत्तू और जल पीने का विधान है। उदक्य-वि० [सं०] १ जलवाला । जलीय । २ जिसको पवित्रता उदगाह-सज्ञा पुं॰ [सं०] स्नान करना । नहाना [को॰] । के लिये स्नान की आवश्यकता हो । अपवित्र । अशुचि। ३. उदकगिरि- संज्ञा पुं० [सं०] जलाशयो से पूर्ण पर्वत (को०] । | जलेच्छु (को॰) । उदकचरण-सज्ञा पुं० [सं०] कौटिल्य के अनुसार वह चोर या घातक उदय-सज्ञा पु० पानी में होने वाला अन्न, जैसे, घान । जो स्नान करने हुए मनुष्य को पानी के भीतर खीच ले जाय । उदया--सज्ञा स्त्री० [सं०] रजस्वला नारी । पनडुब्वा । वुडे । उदग्-सज्ञा पुं० [सं०] ‘उद' शब्द का समास प्रयुक्त रूप । उददाता--संज्ञा पुं० [सं० उदकदातृ] १ वह व्यक्ति जो पितरो का उदगद्रि--संज्ञा पुं० [सं०] हिमालय । तर्पण करता हो। २ उत्तराधिकारी । हकदार (को०] । उदगयन-संज्ञा पुं॰ [सं०] उत्तरायण । उदकदान-सज्ञा पुं० [सं०] जलदान । तर्पण । उदगरमा-क्रि० अ० [सं० उद्गरण]१ उगरना । नि। लेना। बाहर उदकना-क्रि० अ० [ स० उद्= ऊपर+क= उदक या उद्+ होना। २. प्रकाशित होना। खुल पडना । प्रकट होना । ३. yञ्ज ] कूदना | उछलना । छटकना । उ०—माण करत उभड़ना । मडकना।