पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/६

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प्रकाशिका


'हिदी शब्दसागर' अपने प्रकामान काल से ही कोण के क्षेत्र में और वैज्ञानिक युग के विद्यार्थियों के लिये भी साधरणन” पर्याप्त हो । भारतीय मापात्रों के दिशानिर्देशक के रूप में प्रतिष्ठित है। तीन मैं अापके निश्चयों का स्वागत करती हैं। भारत सरकार की ओर से दशकों तक हिंदी की चिर्घन्य प्रतिभाओं ने अपनी सतत तपस्या से शब्दसागर का नया संस्करण तैयार करने में सहायतार्थ एक लाख इसे सन् १९३८ ई० में मूर्त रूप दिया था। तब से निरक्षर यह ग्रंथ सूपए, जो पाँच वर्षों में बीस बीस हजार करके दिए जाएँगे, देने का इन क्षेत्र में गंभीर कार्य करनेवाले विद्वतुनमाज में प्रकाशस्तभ के रूप निश्चय हुआ है । मैं आशा करता हैं कि इस निश्चय से आपका काम में नूदित हो हिंदी की गौरवगरिमा का पान करता रही हैं । कुछ सुगम हो जाएगा और चाप इस काम में अग्रसर होगे । अपने प्रकाशन के कुछ समय बाद ही इसके खंड एक एक कर

राष्ट्रपति डा० राजेंद्रप्रसाद जी की इस घोपणा ने शन्दसागर अनुपलब्ध होते गए और अप्राप्त गर्य के रूप में इसका मूल्य लोगों को | के पुन संपादन के लिये नवीन उत्साह तथा प्रेरणा दी। सभा द्वारा सहन्न मुद्राओं से भी अधिक देना पडी। ऐसी परिस्थिति में प्रभाव प्रेपित योजना पर केंद्रीय सरकार के शिक्षामत्रालय ने अपने पत्र स० की स्थिति का लाभ उठाने की दृष्टि से अनेक कोशों का प्रकाशन हिंदी एफ 1४-३५४ एच० दिनाक १११५।५४ द्वारा एक लाख रुपया लगत् में हुग्रा, पर वे सारे प्रयत्न इसकी छाया के ही दल जीवित पाँच वर्षों में, प्रति वर्ष वीस हजार रुपए करके, देने की स्वीकृति दी । थे । इसलिये निरतर इसकी पुन अवतारणा का गमीर अनुभव हिंदी जगत् और इनकी जननी नागप्रचारिणी सभा करती रही । किंतु | इस कार्य की गरिमा को देखते हुए एक परामर्श मंडल का गठन साधन के अभाव में अपने इन कर्तव्य के प्रति सजन रहठी हुई भी किया गया, इस संबंध में देश के विभिन्न क्षेत्रों के अधिकारी विद्वानों वह अपने इस उत्तरदायित्व का निर्वाहि न वर चकने के कारण की भी राय ली गई, किंतु परामर्शमहल के अनेक सदस्यों का भर्मातक पीड़ा का अनुभव कर रही थी । दिनोत्तर उसपर उत्तर योगदान सभा को प्राप्त न हो सका और जिस विस्तृत पैमाने पर दायित्व का ऋण चक्रवृद्धि सूद की दर से इसलिये और भी बढता सुमो विद्वानों की राय के अनुसार इस कार्य का संयोजन करना गया कि इस कोश के निर्माण के बाद हिदी की थी का विकास वड़े चाहती थी, वह भी नहीं पन्नब्ध हुआ। फिर भी, देश के अनेक व्यापक पैमाने पर इा। साथ ही हिंदी के राप्र पा पद पर प्रतिन्ति निप्णीत अनुभवसिद्ध विद्वान तथा परामर्शमडल के सदस्यो ने होने पर उसकी अब्दसपदा का कोश भी दिनोत्तर गतिपूर्वक वढवे गभीरतापूर्वक मेमा के अनुरोध पर अपने बहुमूल्य सुझाव प्रस्तुत किए। जाने के कारण सम का यह दायित्व निरतर गहन होता गया। सभी ने उन सुचको मनोयोगपूर्वक मंयकर शब्दसागर के संपादन देत सभा की हीरक जयती के अवसर पर, २३ फाल्गुन, २०१० । लिद्धात स्थिर किए जिनसे भारत सरकार को शिक्षामयालय भी वि० को, उसके स्वागताध्यक्ष के रूप में हा० सपूर्णानंद जी ने सहमत हुआ । राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जी एव हिदी जगत् का ध्यान निम्नाकित उपयुक्त एक लाख रुपए का अनुदान बीम वीस हजार रुपए घाब्दों में इस शोर प्राकृप्ट किया-- ‘हिदी के राष्ट्रमापा बोषित हो प्रति वर्ष की दर से नितर पाँच वर्षों तक केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय जाने से सभा का दायित्व वहुत बढ़ गया है । ‘हिंदी में एक अच्छे देता रहा और कोश के सशोधन, सवर्घन और पुन संपादन का कार्य कोश र व्याकरण की कमी खटकती है । समी ने अज से कई लगातार होता रहा, परत इस अवधि में सारा कार्य निपटाया नहीं वर्ष पहने जो हिंदी शब्दसागर प्रकाशित किया था उसका वृहत् जा सका । मंत्रालय के प्रतिनिधि श्री डा० रामघन जी शर्मा ने सुस्कएँ निकालने की आवश्यकता है ।" अावश्यकता केवल इस बड़े मनोयोगपूर्वक यहां हुए कार्यों का निरीक्षण परीक्षण करके बात की है कि इस काम के लिये पर्याप्त धन व्यय किया जाय और इसे पूरा करने के लिये अागे और ६५०००) अनुदान प्रदान करने केंद्रीय तथा प्रादेशिक सरकारों का सहारा मिलता रहे ।' की संस्तुति की जिसे सरकार ने कृपापूर्वक स्वीकार करके पुन उक्त इसी अवसर पर सभा के विभिन्न कार्यों की प्रशसा करते हुए ६५,०००) का अनुदान दिया। इस प्रकार संपूर्ण कोश की सशोधन राष्ट्रपति ने कहा---'वैज्ञानिक तथा पारिभाषिक शब्दकोश सभा का संपादन दिसंबर, १९६५ में पूरा हो गया । महत्वपूर्ण प्रकाशन है। दूसरा प्रकाशन हिदी ब्दिसागर है जिसके | इस ग्रंथ के संपादन का संपूर्ण व्यय ही नहीं, इसके प्रकाशन के निर्माण में सभी ने लगमग एक लाख रुपया व्यय किया है। आपने | इयभार का ६० प्रतिशत वोझ भी भारत सरकार ने वहन किया शव्दनागर का नया संस्करण निकालने का निश्चय किया है । जव से है। इसीलिये वह ग्रय इतना सस्ता निकालना संभव हो सका है । पहला संस्करण छपा, हिंदी में बहुत बातों में और हिंदी के अलावा ।

उसके लिये शिक्षा मंत्रालय के अधिकारियो को प्रशमनीय सहयोग हो संसार में बहुत बातों में बड़ी प्रगति हुई है। हिंदी मापा भी इस प्राप्त है और तदये हमें उनके अतिशये प्रामारी हैं । प्रगति से अपने को वचित नहीं रख सकती । इसलिये शब्दसागर जिस रूप में यह ग्रेय हिंदी जगत् के समुख उपस्थित किया ज का रूप भी ऐसा होना चाहिए जो यह प्रगति प्रतिबिंबित कर सके है, उसमें अद्यतन विकसित कोशशिल्प का ययाचामृय उप